Laxmaneshwar Mahadev Temple In Chhattisgarh: भारत में भगवान के प्रति लोगों की सबसे ज्यादा आस्था होती है। महादेव को हिंदू धर्म में सबसे ज्यादा महत्व दिया है।
महादेव को देवों के देव कहा जाता है। महादेव को केवल देवता ही नहीं पूजते हैं बल्कि राक्षस भी भगवान शिव की अराधना करते हैं।
भारत की बात की जाए तो यहां कोने-कोने में महादेव के ऐसे अद्वितिय मंदिर मौजूद हैं। इन मंदिरों का इतिहास रामायाण और महाभारत के समय का बताया है।
आज हम आपको भारत के एक बड़े राज्य छत्तीसगढ़ में स्थित लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर की पूरी जानकारी देने जा रहे हैं।
कहां हैं ये प्राचीन मंदिर
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 किमी दूर एक खरौद शहर है इसे छत्तीसगढ़ के काशी के नाम से भी जाना जाता है।
इस शहर में खरौद स्थित लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर अपने आप में बेहद अनूठा है। इस मंदिर के गर्भगृह एक शिवलिंग स्थित है जिसे लक्ष्मणेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
इस शिवलिंग का संबंध रामायणकाल के समय से जुड़ा हुआ है। इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र (छेद) हैं।
पौराणिक कथाओं की मानें तेा इन एक लाख छेदों में से एक छेद ऐसा है जिसका रास्ता पाताल तक जाता है। कथाओं की मानें तो इस मंदिर का निमार्ण छठी शताब्दी के समय हुआ था।
एक छिद्र है पाताल का रास्ता
पौराणिक कथाओं के अनुसार महादेव के इस अद्भुत शिवलिंग में एक ऐसा छिद्र है जो पाताल तक जाता है।
इस छिद्र में जितना भी पानी भक्त डालते हैं वह पूरा सोख लेता है। इसके पीछे मान्यता है कि वह छिद्र पाताल गामी है, उसमें जितना भी पानी डालो वह पाताल में चला जाता है।
इस शिवलिंग का नाम क्यो पड़ा लक्षलिंग
महादेव का यह मंदिर अपने आप में बेहद अद्भुत और अनेक आश्चर्यों से भरा हुआ है। कथाओं की मानें तो इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र (छेद) है।
इन छिद्र के कारण ही इसका नाम लक्षलिंग या लखेश्वर महादेव (Laxmaneshwar Mahadev Temple In Chhattisgarh) पड़ गया है। हर साल लाखों की संख्या में लोग इस अद्भुत शिवलिंग का दर्शन करने आते हैं।
भक्तों का कहना है कि इस शिवलिंग का दर्शन करने से मन में शांति का एहसास होता है।
क्या है इस मंदिर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं की मानें तो रावण का वध करने के बाद लक्ष्मणजी ने भगवान श्री राम जी से इस मंदिर की स्थापना करवाई थी।
लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में मौजूद शिवलिंग की स्थापना स्वयं लक्ष्मण ने की थी। कथा के अनुसार शिवजी को जल अर्पित करने के लिए लक्ष्मण जी पवित्र स्थानों से जल लेने गए थे।
एक बार जब वे आ रहे थे तब उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। कहते हैं कि शिवजी ने बीमार होने पर लक्ष्मण जी को सपने में दर्शन दिए और इस शिवलिंग की पूजा करने को कहा।
पूजा करने से लक्ष्मणजी स्वस्थ हो गए। तभी से इसका नाम लक्ष्मणेश्वर है।
इस मंदिर मे चढ़ता है लक्ष चावल
इस मंदिर में महाशिवरात्रि और सावन माह पर शिवलिंग में सवा लाख छिद्र होने के कारण सवा चावल चढ़ाने का विशेष महत्व माना जाता है।
जो भी व्यक्ति मनोकामना पूरा करने के लिए चावल के सवा लाख दानों को कपड़े की थैली में भरकर चढ़ाते हैं। इन चावलों को लाख चाउर या लक्ष चावल भी कहा जाता है।
इस मंदिर पर महाशिवरात्रि और सावन में लाखों की संख्या में बहुत भीड़ आती है। पंडितों की मानें तो यहां श्रद्धालु यहां दूर- दूर से दर्शन करने आते हैं।
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