उल्लू एक ऐसा पक्षी है जिसे मांस खाने वाले भी नहीं मारते हैं, क्योंकि इसे शकुन-अपशकुन से जोड़कर देखा जाता है। रात के समय उल्लू का बोलना अपशकुन और दुर्भाग्य भरा माना जाता है। कहा जाता है कि महमूद गजनी (971 – 1030) के क्रूर आक्रमणों और अत्याचारों को देखते हुए एक दिन उनके एक बेहद अक्लमंद मंत्री ने सोचा कि क्यों न सुल्तान को ये समझाने की कोशिश की जाए कि वो क्या कर रहे हैं।
दिवाली पर उल्लू की चर्चा
दरअसल, दिवाली के त्योहार पर कई सारे उल्लू अंधविश्वास की भेंट चढ़ जाते हैं। भारत में उल्लुओं को लेकर यह अंधविश्वास फैला हुआ है कि अगर दीपावली के मौके पर इस पक्षी की बलि दी जाए तो धन-संपदा में वृद्धि होती है। ऐसे में कई लोग अपने इस अंधविश्वास के अधीन होकर उल्लुओं की बलि दे देते हैं, जिसके कारण हर साल काफी संख्या में इस प्रजाति को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है।
भारत में उल्लू
भारत में उल्लू की कुल 36 प्रजातियां पायी जाती हैं। इन सभी प्रजातियों को भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत शिकार, कारोबार या फिर किसी भी प्रकार के उत्पीड़न से संरक्षण प्राप्त है। उल्लू की कम से कम 16 प्रजातियों की अवैध तस्करी और कारोबार किया जाता है। इन प्रजातियों में से खलिहानों में पाया जाने वाला उल्लू, ब्राउन हॉक उल्लू, कॉलर वाला उल्लू, काला उल्लू, पूर्वी घास वाला उल्लू, ब्राउन फिश उल्लू, जंगली उल्लू, धब्बेदार उल्लू, पूर्वी एशियाई उल्लू, चितला उल्लू आदि शामिल हैं।
क्या कहता है कानून?
भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 को इसके जरिए देश के वन्यजीवों को सुरक्षा प्रदान करने और अवैध शिकार, तस्करी और अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के लिए लागू किया गया था। इस कानून के में 66 धाराएं हैं और 6 अनुसूचियां हैं। इसकी अलग-अलग अनुसूचियों में अलग-अलग सजा का प्रावधान है। इसमें 10000 रुपये जुर्माना से लेकर 10 साल की सजा तक का भी प्रावधान है।
मुग़लों ने भी दी थी बलि?
उत्तर प्रदेश के इब्राहिमपट्टी में जन्मे इब्राहिम भाई के अनुसार, उल्लू की बलि से बहुत से तांत्रिक क्रियाएं जुड़ी हुई हैं। उल्लू वैभव की देवी लक्ष्मी का वाहन है और लोग जल्द से जल्द पैसा कमाना चाहते हैं ऐसे में लोग वो सबकुछ करते हैं जो तांत्रिक उन्हें करने को कहता है।
राजस्थान के धौलपुर के एक पुराने बाशिंदे का दावा है कि जिस समय मुग़ल वंश ख़त्म हो रहा था उस दौरान भी उल्लुओं का बलि दिए जाने से जुड़े कुछ सुबूत मिलते हैं।
वो मोहम्मद शाह रंगीला और उनसे भी पहले मइज़ुद्दीन जहांदार शाह और मोहम्मद फर्रुकसेयर का ज़िक्र इस संबंध में करते हैं। वो लाल कंवर का ज़िक्र करते हुए बताते हैं, वो शुरू में विवाहित नहीं थीं लेकिन आगे चलकर जहांदार शाह ने उन्हें बेगम इम्तियाज़ महल बना दिया और उनके भी पीरियड्स के दौरान के कपड़ों का इस्तेमाल तंत्र के लिए किया गया था।
इब्राहिम भाई कोई इतिहासकार नहीं थे और बहुत अधिक पढ़े-लिखे भी नहीं थे। उन्होंने अपने बुजुर्गों से ये हैरान कर देने वाली कहानियां सुनी थीं और इसमें कोई संदेह नहीं कि उनके पुरखों ने उन्हें ये कहानियां सुनाई होंगी। पीढ़ी दर पीढ़ी ये कहानियां और अजीब होती चली गईं।
कांजे नाम का एक शख़्स, जिसे ये नाम उसकी नीली आंखों की वजह से मिल था। उसकी मां को द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान एक अमरीकी सैनिक से उसे प्यार हो गया। कांजे उन्हीं की संतान था। कांजे की मां सालों तक रानीगंज में उल्लुओं को पालती थी और फिर दिवाली आने पर उन्हें बेच देती थी।
कांजे को चेतावनी मिली हुई थी कि उसका अंत बहुत बुरा होगा। कांजे, उनकी पत्नी और चार बच्चे सभी की अल्पायु में टीबी से मौत हो गई। तो क्या ये उल्लुओं की बलि देने की वजह से हुआ?
ये भी पढ़ें:
US Visa: अमेरिकी वीजा की खातिर साक्षात्कार नियुक्ति के लिए 37 दिन की प्रतीक्षा, पढ़ें पूरी खबर
Rajasthan Elections 2023: गहलोत सरकार के 5 साल को बताया काला अध्याय, जानें पूरी खबर
JEE Mains 2024 Syllabus: फिजिक्स, केमेस्ट्री व मैथमेटिक्स का सिलेबस में हुई कटौती, ये हुआ बदलाव
IIT-BHU Protest: BHU कैंपस में छात्रा के साथ छेड़खानी का मामला, सीएम योगी ने दिए ये निर्देश