भोपाल। देश मे आज राजनीति की जो स्थिती है उसमें नेता एक दूसरे के उपर ना जानें कितने लांक्षण, इल्जाम और झींटा-कशी करते हैं। लेकिन कभी वो भी दौर हुआ करता था जब नेताओं के बीच मतभेद तो जरूर होते थे। लेकिन कभी भी मनभेद नहीं था। राजनीतिक अखाड़े में विरोधी जरूर होते थे। लेकिन इसके इतर वो अपने निजी जीवन में एक दूसरे के बीच आत्मीय संबंध रखते थे। आज हम आपको एक ऐसा ही किस्सा बताने जा रहे हैं। जिसे जान कर आप भी शायद कहेंगे कि आज के राजनेताओं को इनसे कुछ सिखना चाहिए।
पराजित प्रत्याशी ने पहनाया माला
हम बात कर रहे हैं। साल 1980 में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की। इस चुनाव में गंगाराम बांदिल (Gangaram Bandil) भाजपा के टिकट पर लश्कर पूर्व विधानसभा क्षेत्र (ग्वालियर) से चुनाव जीत गए थे। जीत के बाद उन्होंने विजय जुलूस निकालने का फैसला किया। बांदिल कुछ ही दूर आगे बढ़े थे, तभी उन्हें कांग्रेस के पराजित प्रत्याशी चन्द्रमोहन नागोरी (Chandramohan Nagori) दिखे। नागोरी ने पहले से ही उनके लिए एक माला मंगवा लिया था। गंगाराम बांदिल उन्हें देख कर गाड़ी से नीचे उतर गए और दोनों नेताओं ने एक-दूसरे को माला पहनाया। हार-जीत किसी की भी हो लेकिन उनके इस आत्मीय स्वभाव में लोकतंत्र की जीत हुई थी।
जेब में लेकर चलते थे लेटर पैड
बांदिल मध्य प्रदेश के उन नेताओं में से थे जो हमेशा जनता के लिए तैयार बैठे रहते थे। आज कल राजनेता जनता दरबार लगाकर लोगों की समस्याएं सुनते हैं। लेकिन बांदिल उन नेताओं में से थे तो खुद जनता के पास जाते थे और उनकी समस्याओं को सुनते थे। उनके जेब में हमेशा एक सील और पैड पड़ा रहता था। मौके पर अगर किसी को आवेदन की जरूरत पड़ती थी। तो बांदिल वहीं पर सील लगा देते थे। आज के दौर में जहां चुनावी प्रचार में करोड़ों रूपये खर्च किए जाते हैं और नेता बीना हेलीकॉप्टर के बड़ा नहीं बन पता। वहीं बांदिल उस दौर में महज एक स्कूटर से चुनाव प्रचार कर लेते थे।
पार्टी बड़ी होती है व्यक्ति नहीं
गंगाराम वांदिल को लेकर कई किस्से हैं। कहा जाता है कि उन्होंने कभी भी अपने निजी हित को राजनीति में नहीं आने दिया। वो हमेशा पार्टी के लिए खड़े रहते थे। आपातकाल के दौरान जनता पार्टी के लगभग सारे नेता जेल में कैद थे। ऐसे में ग्वालियर सेंट्रल जेल में ही 1977 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों के नाम तय किए गए। जहां लश्कर पूर्व सीट से गंगाराम बांदिल का नाम तय किया गया। लेकिन अंत समय में किसी कारण से उनके स्थान पर नरेश जौहरी के नाम की घोषणा कर दी गई। इस बात से उनके समर्थक नाराज हो गए और बांदिल पर दबाव बनाने लगे कि वो निर्दलीय चुनाव लड़ें, लेकिन वांदिल ने ये साफ कर दिया कि वो ऐसा कुछ नहीं करने वाले जिससे पार्टी को नुकसान होगा।
कांग्रेस की लहर होने के बावजूद जीत गए थे
उन्होंने अपने समर्थकों को समझाया कि अब हमें नरेश जौहरी के लिए काम करना है। कोई भी पार्टी बड़ी होती है ना कि व्यक्ति। तब जा कर उनके समर्थक नरेश जौहरी के लिए काम करने को तैयार हुए। उस चुनाव में वांदिल की मदद से जौहरी ने कांग्रेस के जोगेन्द्र सिंह को हराया था। जौहरी को उस चुनाव में 24843 वोट मिले थे। जबकि जोगेन्द्र को महज 7618 वोट मिले थे। गंगाराम बांदिल की लोकप्रियता उस क्षेत्र में इसी बात से आंकी जा सकती है कि वे 1980 और 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जबर्दस्त लहर के बावजूद जीत गए थे।