Raisen Ka Kila : भारत में राजाओं के किलों का इतिहास आज भी लोगों को अलौकिक करता है। देश में ऐसे कई किले है जिनकी नक्काशी आज भी उस जमाने के कलाकारों के बारे में सोचने पर मजबूर कर देती है। राजाओं के किले एक तरफ देश की शान है तो वही दूसरी तरफ किलों में सिमटे रहस्य अपनी अलग पहचान रखते है। आज हम आपको एक ऐसे ही रहस्यों से भरे वीरान किले के बारे में बताने जा रहे है। हम बात कर रहे है मध्यप्रदेश के रायसेन के किले की।
हम जिस किले की बात कर रहे है उस किले का निर्माण सन् 1200 ईस्वी में हुआ था। रायसेन में यह किला पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। यह किला आज भी कई शताब्दियां बीत जाने के बाद भी शान से उसी तरह खड़ा है, जैसा पहले था। इसे का निर्माण बलुआ पत्थर से किया गया है। इस किले की दीवारों के नौ द्वार और 13 बुर्ज हैं। रायसेन का इतिहास काफी शानदार रहा क्योंकि यहां कई राजाओं ने शासन किया था। उन्हीं राजाओं में से एक राजा शेरशाह सूरी भी थें।
राजा ने काटा था पत्नी का सिर
राजा शेरशाह सूरी को लेकर कहा जाता है कि राजा ने रायसेन के किले को जीतने के लिए तांबे के सिक्कों से तोपें बनवाई थी। 1543 ईस्वी में शेरशाह ने किले को जीतने के लिए धोखे का सहारा लिया था। उस समय इस किले पर राजा पूरनमल का शासन था। राजा पूरनमल को जब पता चला की उनके साथ धोखा हुआ है तो उन्होंने दुश्मनों से अपनी पत्नी रानी रत्नावली को बचाने के लिए उनका सिर खुद ही काट दिया था।
राजा के पास था पारस पत्थर
रायसेन के किले को लेकर यह भी कहा जाता है कि किले के राजा राजसेन के पास एक पारस पत्थर भी था जो लोहो को सोना बना देता था। उस पारस पत्थर को लेकर कई युद्ध हुए थे। जब राजा राजसेन युद्ध हार गए तो उन्होंने उस पारस पत्थर को किले में बने एक तालाब में फेंक दिया था। इसके बाद कई राजाओं ने पारस पत्थर को खोजने के लिए किले में कई बार खुदाई करवाई थी। लेकिन पारस पत्थर नहीं किला। बताया जाता है कि आज भी कई लोग तांत्रिको को लेकिर किले में पारस पत्थर की खोज में आते है। लेकिन कोई आज तक पत्थर नहीं ढूंढ पार्या कई लोग तो पारस पत्थर की खोज में अपना अपना मानसिक संतुलन खो चुके है। क्योंकि पारस पत्थर की रक्षा एक जिन्न करता है। पुरातत्व विभाग का कहना है कि किले में ऐसे कोई सबूत नहीं मिले है जिससे पता चल सके की किले में पारस पत्थर हो।
किले में बना है एक शिव मंदिर
रायसेन के किले में एक शिव मंदिर भी बना हुआ है। इस शिव मंदिर का निर्माण 10 वीं शताब्दी में परमार राजा उदयादित्य ने कराया था। राजवंश के लोग शिवमंदिर में नियमित पूजा पाठ करते थे। सन 1543 तक मंदिर में पूजा होती रही। लेकिन जब राजा पूरणमल युद्ध में शेरशाह से हार गए तो किला शेरशाह के पास चला गया। जिसके बाद शेरशाह ने मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने का फरमान जारी कर दिया। इसके बाद कारीगरों ने चतुराई के साथ शिवलिंग को हटाकर मस्जिद बना दी। लेकिन गर्भ ग्रह के ऊपर गणेश की प्रतिमा लगी छोड़ दी। आजादी के बाद रायसेन में इस मंदिर को लेकर एक बड़ा आंदोलन हुआ। उस समय मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। मुख्यमंत्री थे प्रकाश चंद्र सेठी, सेठी ने खुद मंदिर जाकर ताले खुलवाए थें। लेकिन बाद में फिर इस मंदिर में ताला लगा दिया गया इस मंदिर में 10 वीं शताब्दी का शिवलिंग स्थापित है। शिवलिंग की देखभाल आज भी पुरातत्व विभाग करता आ रहा है।