Paryushan Parv 2024: पर्युषण पर्व जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण और पवित्र उत्सव है, जिसे आत्मशुद्धि, तपस्या, और आत्मावलोकन (overview)के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप जैन धर्म के दो प्रमुख संप्रदायों, श्वेतांबर और दिगंबर, दोनों के द्वारा मनाया जाता है
हालांकि इनके मनाने के तरीके और समय में थोड़ा अंतर हो सकता है। श्वेतांबर जैनों में यह पर्व 8 दिनों तक चलता है, जिसे ‘अष्टाह्निका’ कहते हैं, जबकि दिगंबर समुदाय इसे 10 दिनों तक ‘दशलक्षण पर्व’ के रूप में मनाता है।
पर्युषण का अर्थ
पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है ‘पास आना’ या ‘निकटता प्राप्त करना’। इसका मतलब, यह आत्मा की परमात्मा के पास जाने और सांसारिक बंधनों से दूर होने की प्रक्रिया को बताता है।
पर्युषण पर्व के दौरान जैन अनुयायी अपने जीवन के गहरे आत्मिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं और अपने कर्मों को काटने पर ध्यान करते हैं। यह पर्व त्याग, तप, और संयम का प्रतीक है, जिसमें व्यक्ति को अपनी आत्मा की शुद्धि के लिए प्रयास करने की प्रेरणा दी जाती है।
पर्युषण पर्व के दौरान की जाने वाली चीजें
पर्युषण पर्व के दौरान जैन अनुयायी विशेष रूप से उपवास, प्रार्थना, और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। उपवास का महत्व इस पर्व में बहुत अधिक है, जिसमें लोग जल या बिना जल के उपवास करते हैं।
उपवास की अवधि एक दिन से लेकर पूरे आठ या दस दिन तक हो सकती है, जो व्यक्ति की सामर्थ्य और श्रद्धा पर निर्भर करती है।
इसके अलावा, जैन अनुयायी ‘प्रतिक्रमण’ करते हैं, जिसमें वे अपने किए गए पापों और गलतियों के लिए पश्चाताप करते हैं और क्षमा मांगते हैं। यह आत्मिक शुद्धिकरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जहां व्यक्ति अपने दोषों को स्वीकार करता है और उनसे मुक्ति पाने का संकल्प लेता है।
मनाए जाते हैं दस लक्षण पर्व
पर्युषण पर्व को दशलक्षण पर्व भी कहा जाता है। ये जैन धर्म के दिगंबर संप्रदाय में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है। जो दस दिनों तक चलता है। इस पर्व में जैन अनुयायी दस प्रमुख धर्मों या गुणों का पालन और चिंतन करते हैं, जिन्हें “दशलक्षण” कहा जाता है।
ये दस धर्म हैं: क्षमा (क्षमा धर्म), मृदुता (मार्दव धर्म), सरलता (आर्जव धर्म), शुद्धता (शौच धर्म), सत्यनिष्ठा (सत्य धर्म), संयम (संयम धर्म), तपस्या (तप धर्म), त्याग (त्याग धर्म), वैराग्य (आकिंचन्य धर्म), और ब्रह्मचर्य (ब्रह्मचर्य धर्म)।
क्षमापर्व का महत्व
पर्युषण पर्व के अंत में क्षमापना का विशेष महत्व होता है। जैन अनुयायी एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं और उन्हें क्षमा करते हैं। यह क्षमापना सभी जीवों के प्रति करुणा और दया का प्रतीक है। ‘मिच्छामि दुक्कड़म’ शब्दों के साथ, जैन अनुयायी अपने सभी ज्ञात और अज्ञात पापों के लिए क्षमा मांगते हैं।
जैन धर्म में महत्व
पर्युषण पर्व जैन धर्म में आत्मशुद्धि, संयम, और मोक्ष की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह पर्व व्यक्ति को अपनी आंतरिक दुनिया की ओर ध्यान केंद्रित करने और अपने जीवन को नए सिरे से शुरू करने का अवसर प्रदान करता है।
पर्युषण के माध्यम से जैन अनुयायी अपने जीवन में सत्य, अहिंसा, और धर्म के अन्य गुणों को प्रकट करते हैं, जिससे वे मोक्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर हो सकें। यह पर्व जीवन में आत्मिक उन्नति और शांति की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है।