भोपाल। कहते हैं बच्चे उस कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं जिसे जिस सांचे में ढाल दिया जाए वह ढल जाते हैं। ऐसे में समाज को गढ़ने वाले शिक्षक पर जिम्मेदारी बढ़ जाती है। ये जिम्मेदारी सिर्फ स्कूल में पढ़ाने वाले एक टीचर की है, या फिर आप और हम भी एक अच्छे गुरू बन सकते हैं। वहीं एक शिक्षक जिसकी जिंदगी में अंधेरे के अलावा कुछ भी नहीं है। अंधकार उसका साथी बन गया है लेकिन वो अपने छात्रों के जीवन को शिक्षा की रोशनी से रोशन कर रही है। हम बात कर रहे हैं रायगढ़ की टीचर संध्या पांडेय की। संध्या देख नहीं सकतीं लेकिन वो शिक्षा के जरिए बच्चों के भविष्य को रोशन करने में जुटी हैं।
शिक्षा के जरिए बच्चों के भविष्य को कर रही रोशन
रायगढ़ के सरईभद्दर की टीचर हैं संध्या पांडेय। संध्या के जीवन में घनघोर रात जैसा अंधेरा है लेकिन वो शिक्षा के जरिए बच्चों के भविष्य को रोशन करने में जुटी हैं। संध्या देख नहीं सकतीं लेकिन वो अपने बच्चों के बेहतर भविष्य का सपना देखती हैं। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान अचानक आई बीमारी ने आंखों की रोशनी छीन ली लेकिन संध्या ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी मेहनत से शिक्षक बन गईं और तमाम परेशानियों और संघर्ष के बीच शिक्षा की अलख जगाने में जुटी हैं।
मां से बड़ा साथी और शिक्षक कोई नहीं होता
कहते हैं मां से बड़ा साथी और शिक्षक कोई नहीं होता। संध्या की मां भी उनके साथ हर कदम साथ चलती हैं। मां साथ में स्कूल आती हैं और जब बोर्ड पर लिखना होता है तो ये काम भी वही करती हैं ताकि संध्या को अपना मकसद पूरा करने में परेशानी ना हो। मां का कहना है कि पहले सभी को अंदेशा था कि एक ब्लाइंड टीचर कैसे अपनी जिम्मेदारी निभाएगी लेकिन स्कूल की प्रिंसिपल कहती हैं कि संध्या इतनी शिद्दत से अपनी जिम्मेदारी निभाती हैं कि लगता ही नहीं कि वो दिव्यांग हैं।
प्रिंसिपल ने की तारीफ
संध्या के जज्बे की जितनी तारीफ की जाए कम है। शिक्षक के तौर पर उनका हौसला काबिले-तारीफ है। जो तमाम दुश्वारियों के बीच छात्रों के भविष्य को गढ़ने का काम कर रही है और शिक्षा की रोशनी से हर तरफ उजियारा कर रही हैं। आंखों की रोशनी जाने के बाद भी शिक्षिका संध्या पाण्डेय अपनी विकलांगता को दर किनार कर नौनिहालों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने में जुटी हुई है। रायगढ शहर के सरईभद्दर में संचालित शासकीय स्कूल में पदस्थ शिक्षिका संध्या पाण्डेय की पढ़ाई के दौरान बीमारी की वजह से आंख की रोशनी चली गयी थी। दिखाई नही देने के बावजूद सन्ध्या ने हिम्मत नहीं हारी और जीवन मे कुछ करने की ठानी। वही शिक्षा विभाग में विकलांग कोटे से शिक्षक के पद की वैकेंसी निकलने पर उसने आवेदन दिया और सौभाग्य से उनकी नौकरी लग गई। यहां से एक नया जीवन शुरू करते हुए संध्या पाण्डेय ने अपने ज्ञान को बच्चों में बांटना शुरू किया। इस काम मे उनकी माँ का उन्हें साथ मिल रहा है।