तिरुवनंतपुरम। Surya Mission Aditya L1 देश के पहले सूर्य मिशन ‘आदित्य एल1’ को अंजाम देने में यहां इसरो की एक प्रमुख शाखा द्वारा विकसित तरल प्रणोदन प्रणाली अहम भूमिका निभाएगी। सूर्य के अध्ययन के लिए उपग्रह शनिवार को श्रीहरिकोटा से विश्वसनीय रॉकेट पीएसएलवी के जरिए प्रक्षेपित किया जाएगा।
उपग्रह को धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर संबंधित बिंदु ‘एल1’ तक पहुंचने में 125 दिन लगेंगे। तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी) 1987 में अपनी स्थापना के बाद से इसरो के सभी अंतरिक्ष अभियानों में सफलता का एक सिद्ध केंद्र रहा है।
जानिए कितना है आवश्यक
तरल और क्रायोजेनिक प्रणोदन प्रणालियाँ भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं की रीढ़ रही हैं, जो पीएसएलवी और जीएसएलवी रॉकेट दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसके अलावा, एलपीएससी द्वारा विकसित ‘लिक्विड अपोजी मोटर’ भारत की प्रमुख अंतरिक्ष उपलब्धियों में उपग्रह/अंतरिक्ष यान प्रणोदन में महत्वपूर्ण रही है, चाहे वह तीनों चंद्रयान मिशन हों या 2014 का मंगल मिशन।
It will give solid heartburn to woke commies!
ISRO scientists visited Tirumala Sri Venkateswara Temple to pray for the success of the Aditya-L1 Mission.❤️ pic.twitter.com/jxbTblKQWL
— Mr Sinha (@MrSinha_) September 1, 2023
एलपीएससी के उपनिदेशक डॉ. ए के अशरफ ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘अब हम ‘आदित्य एल1’ मिशन-आदित्य अंतरिक्ष यान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इसमें एलएएम (लिक्विड अपोजी मोटर) नामक एक बहुत ही दिलचस्प, अत्यंत उपयोगी थ्रस्टर है, जो 440 न्यूटन का ‘थ्रस्ट’ प्रदान करता है।’’ उन्होंने कहा कि आदित्य अंतरिक्ष यान को पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर स्थित ‘लैग्रेंजियन’ कक्षा में स्थापित करने में एलएएम काफी सहायक होगी।
यान के प्रणोदन का संभालेगा कार्यभार
आदित्य-एल1 को सूर्य परिमंडल के दूरस्थ अवलोकन और एल1 (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु) पर सौर हवा के वास्तविक अवलोकन के उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया है। इसे इसरो द्वारा ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) सी 57 के जरिए प्रक्षेपित किया जाएगा। जब प्रक्षेपण यान की भूमिका समाप्त हो जाएगी तो एलएएम आदित्य अंतरिक्ष यान के प्रणोदन का कार्यभार संभाल लेगी।
#WATCH | Preparations underway at Sriharikota for Aditya-L1 Mission launch by Indian Space Research Organisation (ISRO)
Aditya-L1 launch is scheduled for tomorrow, 2nd September. pic.twitter.com/Q1voY7DUk4
— ANI (@ANI) September 1, 2023
एलपीएससी द्वारा विकसित एलएएम अत्यधिक विश्वसनीय है, और इसका 2014 में मंगल ग्रह के अध्ययन से संबंधित ‘मार्स ऑर्बिटर मिशन’ (मॉम) के दौरान 300 दिन तक निष्क्रिय रहने के बाद सक्रिय होने का प्रभावशाली रिकॉर्ड है।
125 दिन बेहद है जरूरी
एलपीएससी के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ”उस समय यह एक तरह का आश्चर्य था।” उन्होंने कहा कि मॉम (मंगल मिशन) के समान ही आदित्य मिशन में एलएएम 125-दिन की उड़ान के अधिकांश समय निष्क्रिय स्थिति में रहेगी।
वैज्ञानिक ने कहा, ‘एलएएम की भूमिका अंतरिक्ष यान को लैग्रेंजियन बिंदु तक ले जाने की है। एलएएम थ्रस्टर का उपयोग पूरी तरह से प्रणोदन के लिए किया जाता है। इसमें कोई ‘ब्रेकिंग’ शामिल नहीं है, क्योंकि हमें कोई ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ नहीं करनी है।’ मुख्य एलएएम के अलावा, एलपीएससी ने आठ की संख्या में 22-न्यूटन थ्रस्टर और चार की संख्या में 10-न्यूटन थ्रस्टर की आपूर्ति की है।
जब एलएएम का उपयोग कक्षीय सुधार के लिए किया जाता है, तो ऊंचाई परिवर्तन के लिए छोटे थ्रस्टर का उपयोग किया जाता है।
आदित्य मिशन के लिए क्या है खास
आदित्य मिशन में पीएसएलवी उड़ान के दूसरे और चौथे चरण, जिन्हें पीएस-2 और पीएस-4 के रूप में जाना जाता है, में पूरी तरह से एलपीएससी द्वारा आपूर्ति की जाती है। अशरफ ने कहा, ‘इसके अलावा, एलपीएससी द्वारा एसआईटीवीसी (सेकंडरी इंजेक्शन थ्रस्ट वेक्टर कंट्रोल) और आरसीएस (रोल कंट्रोल सिस्टम) जैसी नियंत्रण प्रणाली पूरी तरह से स्वदेशी रूप से विकसित की गई हैं और प्रक्षेपण यान के लिए इनकी आपूर्ति की गई है।’
एसआईटीवीसी प्रणाली वह है जो पीएसएलवी का संचालन प्रबंधित करती है और आरसीएस प्रक्षेपण यान को इसके नियोजित प्रक्षेपवक्र पर बनाए रखने में मदद करने के लिए बाहरी गड़बड़ी को कम करती है।
सूर्या मिशन के लिए यह है आवश्यक
अशरफ ने कहा कि सूर्य मिशन की सफलता के लिए पीएस2 और पीएस4 का प्रदर्शन बहुत महत्वपूर्ण है। एलपीएससी ने प्रक्षेपण यान के लिए कई प्रवाह नियंत्रण घटकों की भी आपूर्ति की है। अशरफ ने कहा, ‘किसी भी प्रणाली में कोई भी छोटी सी समस्या इस पूरे मिशन के लिए बहुत बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है।
इसलिए हम प्रत्येक प्रणाली को वितरित करने में अत्यधिक सावधानी बरत रहे हैं। जहां तक आदित्य एल1 मिशन का सवाल है, सभी थ्रस्टर्स बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसलिए हम बाधामुक्त संचालन के साथ 100 प्रतिशत प्रदर्शन सुनिश्चित कर रहे हैं।’ इन वैज्ञानिकों का आत्मविश्वास बढ़ाने वाली बात यह है कि इसके पास सिद्ध तकनीक है जिसका उपयोग आदित्य मिशन में किया जा रहा है।
पीएसएलवी का है 59वां मिशन
यह पीएसएलवी का 59वां मिशन है और अब तक के लगभग सभी अभियानों में प्रौद्योगिकी ने त्रुटिहीन तरीके से काम किया है। वैज्ञानिक ने कहा, ‘‘उपग्रह थ्रस्टर्स सभी उपग्रह मिशन के लिए खुद को साबित करने की क्षमता से लैस हैं। इसलिए हम आश्वस्त हैं।’’
यद्यपि आदित्य अंतरिक्ष यान सूर्य का अध्ययन करने जाएगा, लेकिन तापमान परिवर्तन या उपयोग की जाने वाली चीजों की सुरक्षा के बारे में चिंता करने वाली कोई बात नहीं है। इसरो के एक अधिकारी ने कहा, ‘तापमान अंतरिक्ष के तापमान के समान है।’
ये भी पढ़ें
CSIR PRIMA ET11: CSIR-CMERI ने कॉम्पैक्ट इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर किया विकसित, जानें इसकी खासियत
MP News: सागर जिले के इस अभयारण्य में आ सकते हैं चीते, NTCA ने बताया उपयोगी
Google launches SynthID Feature: AI-जेनरेटेड इमेज के लिए वॉटरमार्क फीचर पेश, आंखें खा जाएगी धोखा
isro, adityal1, surya mission, isro, suryamission, adityal1, isrosurya mission, sun mission, isro scientist, adityal1 mission,sun misssion aditya l1,isro aditya l1 mission