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Surya Gochar 2023: मिथुन संक्रांति पर क्यों नहीं करना चाहिए सिलबट्टे का उपयोग, क्या होगा सूर्य गोचर का असर

इस साल मिथुन संक्रांति 15 जून को हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सिलबट्टे (silbatta) का उपयोग नहीं करना चाहिए। पर इसके पीछे का कारण क्या है चलिए जानते हैं।

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Preeti Dwivedi
Surya Gochar 2023: मिथुन संक्रांति पर क्यों नहीं करना चाहिए सिलबट्टे का उपयोग, क्या होगा सूर्य गोचर का असर

नई दिल्ली। June Surya Gochar 2023: नवग्रहों में खास सूर्य देव 15 जून को अपना राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं। मिथुन में सूर्य का गोचर (mithun me surya gochar) जब होता है तो उसे मिथुन संक्रांति (Mithun sankrantri) भी कहते हैं। साल में 12 संक्रांति होती हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित राम गोविंद शास्त्री के अनुसार इस साल मिथुन संक्रांति 15 जून को हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सिलबट्टे (silbatta) का उपयोग नहीं करना चाहिए। पर इसके पीछे का कारण क्या है चलिए जानते हैं।

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इसलिए नहीं होता सिलबट्टे का उपयोग

ऐसा माना जाता है कि मिथुन संक्रांति (Mithun sankrantri) के दिन सिलबट्टे की पूजा की जाती है क्योंकि इस दिन धरती मां का सिलबट्टे में वास होता है। हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार, माना जाता है कि मिथुन संक्रांति का दिन ही है जिस दिन से धरती मां को मासिक धर्म शुरू हुए थे, जो तीन दिन तक चले थे। एक दूसरी मान्यता के अनुसार इन 3 दिनों तक पृथ्वी के विकास के लिए धरती मां को मासिक धर्म होते हैं।

मिथुन संक्रांति से 3 दिन के बाद यानि मासिक धर्म के बाद चौथे दिन धरती मां का दूध से स्नान होता है। जिसे वसुमति गढ़वा कहा जाता है। यही कारण है कि इन 3 दिनों तक सिलबट्टे का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। चौथे दिन इसके उपयोग करने या इस पर कुछ पीसने से पहले सिलबट्टे पर जल और दूध से अभिषेक करके उपयोग करना चाहिए। फिर सिंदूर, फूल ,फल और चंदन से इनकी पूजा करने की मान्यता है।

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मिथुन संक्रांति के उपाय

ऐसा माना जाता है कि मिथुन संक्रांति के दिन गुड़, घी, अनाज जैसे जौ, गेहूं आदि दान करने से व्यक्ति की सभी मुरादें पूरी होती हैं। साथ ही मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस दिन यदि निसंतान महिलाएं और जिन लड़कियों के विवाह में बाधा आती हैं, ये मकर संक्रांति का उपाय करेंगी तो लाभ होगा।

बारिश की शुरूआत मिथुन संक्रांति के उपाय

मिथुन संक्रांति के दिन सूर्य गोचर (Surya Gochar 2023)  पर सूर्यदेव की पूजा का विधान है। माना जाता है कि इसी दिन से वर्षा ऋतु की शुरूआत हो जाती है। साथ ही लोग इस दिन अच्छी फसल के लिए भगवान से अच्छी बारिश की मनोकामना करते हैं। इसे रज संक्रांति भी कहा जाता है।

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