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Supreme Court: जेल में जाति के हिसाब से काम के बंटवारे पर आज फैसला सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट, 17 राज्यों से मांगा था जवाब

Supreme Court: जेल में जाति के हिसाब से काम के बंटवारे पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा। 17 राज्यों से जवाब मांगा था।

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Rahul Garhwal
Supreme Court will give its verdict today on the distribution of work in jail according to caste

Supreme Court: जेल में कैदियों की जाति के आधार पर काम के बंटवारे पर आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला आएगा। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की तीन सदस्यीय बेंच ने 10 जुलाई को इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा था। यह मामला पत्रकार सुकन्या शांता द्वारा उठाया गया था, जिन्होंने दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने कहा कि देश के लगभग 17 राज्यों में जेलों में कैदियों के साथ जाति के आधार पर भेदभाव हो रहा है।

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सुप्रीम कोर्ट ने 17 राज्यों को नोटिस भेजकर मांगा था जवाब

इस मामले की पहली सुनवाई जनवरी 2024 में हुई। कोर्ट ने 17 राज्यों को नोटिस भेजकर जवाब मांगा। छह महीने के भीतर केवल उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ने अपना जवाब कोर्ट में पेश किया।

किसने उठाया था भेदभाव का मुद्दा ?

सुकन्या शांता एक पत्रकार हैं। वह मानवाधिकार और सामाजिक न्याय के विषयों पर लेखन करती हैं। उन्होंने अपनी खबरों के माध्यम से जेलों में जातिगत भेदभाव का मुद्दा उठाया। इस पर 2020 में एक रिसर्च रिपोर्ट भी बनाई। रिपोर्ट में बताया गया कि भारत के 17 राज्यों में कैदियों को उनकी जाति के आधार पर काम दिया जाता है। सुकन्या की यह रिपोर्ट एक प्रसिद्ध न्यूज वेबसाइट पर प्रकाशित हुई थी।

रिपोर्ट में 3 राज्यों का उदाहरण

राजस्थान

राजस्थान में अगर कोई कैदी नाई है, तो उसे बाल और दाढ़ी बनाने का काम दिया जाता है। ब्राह्मण कैदी को खाना बनाने का काम मिलता है, जबकि वाल्मीकि समाज के कैदी सफाई का काम करते हैं।

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केरल

केरल में आदतन अपराधियों और दोबारा दोषी ठहराए गए अपराधियों के बीच भेद किया जाता है। आदतन डकैत या चोर को अलग श्रेणी में रखा जाता है। इन्हें अन्य अपराधियों से अलग किया जाता है।

उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश जेल मैनुअल, 1941 में कैदियों के जातिगत भेदभाव को बनाए रखने और जाति के आधार पर सफाई, देखभाल और झाड़ू लगाने का प्रावधान है।

10 महीने में पूरी हुई थी सुनवाई

इस केस में दिसंबर 2023 में याचिका दायर की गई। सुप्रीम कोर्ट ने 10 महीने के भीतर सुनवाई कर ली थी। 10 जुलाई को अंतिम सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उत्तर प्रदेश जेल नियमों के कुछ हिस्सों को भी पढ़ा।

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मैला ढोने वालों की जाति क्यों लिखी ?

CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा था कि नियम 158 में मैला ढोने के कर्तव्य (जिम्मेदारी) का जिक्र है। यह मैला ढोने का कर्तव्य (जिम्मेदारी) क्या है? इसमें मैला ढोने वालों की जाति क्यों लिखी गई है। इसका क्या मतलब है?

जेल के नियम बेहद तकलीफदेह

CJI की अध्यक्षता वाली बेंच ने पश्चिम बंगाल के वकीलों से जेल के नियमों को पढ़ने के लिए कहा। इन नियमों में यह भी लिखा था कि सफाई कर्मचारी कौन होना चाहिए। जब बेंच ने इसे पढ़ा, तो पूछा कि क्या इसमें कोई समस्या नहीं दिखती? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये जेल के नियम बहुत ही परेशान करने वाले हैं।

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केंद्र सरकार ने कहा- भेदभाव गैर कानूनी

केंद्र सरकार ने फरवरी में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक नोटिस जारी किया था। इसमें बताया गया कि मंत्रालय को पता चला है कि कुछ राज्यों के जेल मैनुअल में कैदियों को जाति और धर्म के आधार पर विभाजित किया जाता है और इसी आधार पर उन्हें काम दिया जाता है। जाति, धर्म, नस्ल और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव किया जाता है, जो कि भारत के संविधान के खिलाफ है। इसमें कहा गया है कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके जेल नियमों में कोई भी भेदभावपूर्ण प्रावधान न हो।

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