MP High Court Female Judge Firing Case: सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात के बाद महिला जज की बर्खास्तगी मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित मानदंडों के खिलाफ कड़ी टिप्पणी की है। जिसमें हाईकोर्ट ने गर्भपात के कारण जज की मानसिक और शारीरिक बीमारी को ध्यान में नहीं रखा।
स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एनके सिंह की पीठ कर रही है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होगी।
पहले मामले को जान लेते हैं
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा मामलों के निपटान की उनकी दर का उदाहरण देते हुए कहा गया कि न्यायिक अधिकारियों ने एक साल में केवल दो सिविल मुकदमों का निपटारा किया। इस मामले में एक साथ छह न्यायिक अधिकारियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने 4 महिला न्यायिक अधिकारियों को बहाल करने पर सहमति जताई। इसलिए 2 महिला अधिकारी बर्खास्तगी का मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष है।
बेंच को यह भी दी गई जानकारी
COVID काल में न्यायिक अधिकारियों के प्रदर्शन के मूल्यांकन के लिए यूनिट मानदंड निलंबित कर दिया गया, लेकिन उसकी निपटान दर औसत से कम रही। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के वकील एडवोकेट अर्जुन गर्ग ने कहा कि चूंकि COVID-19 अभी-अभी गुजरा है।
इसलिए मानदंड यह है कि जो भी अर्जित किया जाएगा वह दोगुना हो जाएगा, लेकिन फिर भी उसकी निपटान दर वैसी ही रही। फिर वर्ष 2021 में याचिकाकर्ता ने केवल 1.36 यूनिट अर्जित की।
खराब प्रदर्शन की कोविड और गर्भपात रही वजह
जस्टिस नागरत्ना ने रिकॉर्ड देखा तो पाया कि महिला न्यायिक अधिकारी का गर्भपात हो गया था। वह अपने खराब मानसिक स्वास्थ्य के कारण प्रदर्शन करने में सक्षम नहीं थी।
सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह (याचिकाकर्ता के लिए) ने कहा कि उन्हें कोविड भी था। इतना ही नहीं, उसके सगे भाई को कैंसर था। जिसके कारण ये स्थिति बनी।
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने की सख्त टिप्पणी
“मुझे उम्मीद है कि पुरुष जजों पर भी ऐसे मानदंड लागू किए जाएंगे। मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है। महिला, वह गर्भवती हो गई है और उसका गर्भपात हो गया! एक महिला की मानसिक और शारीरिक बीमारी जिसका गर्भपात हो गया। यह क्या है? मैं चाहती हूं कि पुरुषों को मासिक धर्म हो। तब उन्हें पता चलेगा कि यह क्या है। हमें खेद है।
यह एक हाईकोर्ट है, जो महिला न्यायिक अधिकारी से निपट रहा है। उसने यहां काले और सफेद लिखा कि गर्भपात के कारण। पुरुष जजों के लिए भी इसी तरह के मानदंड हैं! हम देखेंगे कि आप कितने लोगों को समाप्त करने जा रहे हैं। जज केवल सहायक प्रणाली नहीं हैं। यह क्या है? मिस्टर वकील आप कहते हैं, प्रदर्शन देखें!
इस मामले से निपटने के बाद कितने वकील कह सकते हैं कि न्यायालय धीमा है? कि हम निपटान नहीं कर रहे हैं? हम इस न्यायालय में सूची पूरी नहीं कर सकते हैं, लेकिन क्या हम धीमे हैं? लक्ष्य या इकाइयों का क्या अर्थ है? बर्खास्त करो और घर जाओ कहना बहुत आसान है! जिला न्यायपालिका के लिए सड़ा हुआ बात। यह मत कहो कि वह ऐसा नहीं किया है।
रिकॉर्ड देखिए! जब वे काम नहीं कर रहे हों तो उन्हें घर भेज दीजिए। लेकिन जब वे शारीरिक और मानसिक रूप से पीड़ित हों तो यह मत कहिए कि वे काम नहीं कर रहे हैं, खासकर महिलाओं के मामले में। हम संदेशवाहक को गोली नहीं मार रहे हैं, बल्कि हम यह व्यक्त कर रहे हैं।”
आगे बहस नहीं करेंगे हाईकोर्ट के वकील
सुप्रीम कोर्ट द्वारा इतनी सख्त राय व्यक्त किए जाने के बाद हाईकोर्ट के वकील ने कहा कि वे इस मामले में आगे बहस नहीं करेंगे। दोनों एमिक्स क्यूरी सीनियर एडवोकेट गौरव अग्रवाल और एडवोकेट जयसिंह ने कहा कि महिला न्यायिक अधिकारी के खिलाफ दायर शिकायतों को स्थगित रखा गया।
इस पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला गया। हालांकि, इन शिकायतों को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की फुल बेंच ने विचार में लिया और कहा कि उन्हें बहाल नहीं किया जा सकता।