हाइलाइट्स
- सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद कमेटी को दो हफ्ते में जवाब देने को कहा।
- विवादित कुआं मस्जिद परिसर से बाहर होने की रिपोर्ट पर बहस जारी।
- कोर्ट ने स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दोहराया।
Sambhal Jama Masjid Dispute: उत्तर प्रदेश के संभल में स्थित मुगलकालीन शाही जामा मस्जिद परिसर के समीप एक विवादित कुएं को लेकर चल रहे विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार 29 अप्रैल को मस्जिद प्रबंधन समिति को दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। यह आदेश उस वस्तु स्थिति रिपोर्ट के संदर्भ में दिया गया है जिसमें कहा गया है कि विवादित कुआं मस्जिद से “पूरी तरह बाहर” स्थित है।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश को दोहराते हुए मामले की अगली सुनवाई तक किसी भी पक्ष को कोई भी नया कदम न उठाने की हिदायत दी है। मस्जिद कमेटी के वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने समिति के अध्यक्ष ज़फ़र अली के जेल में होने का हवाला देते हुए तीन सप्ताह का समय मांगा, जिसे पीठ ने अस्वीकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “कोई और भी जवाब दाखिल कर सकता है, कृपया इसे दो सप्ताह में ही करें।”
विवाद की पृष्ठभूमि
मामले की शुरुआत उस समय हुई जब संभल जिला प्रशासन ने शहर के पुराने मंदिरों और कुओं के जीर्णोद्धार का अभियान चलाया। मस्जिद कमेटी का आरोप है कि प्रशासन ने जिन 19 कुओं को धार्मिक उद्देश्यों के लिए चिह्नित किया है, उनमें से एक कुआं मस्जिद परिसर के निकट स्थित है। मस्जिद कमेटी का कहना है कि यह कुआं आंशिक रूप से मस्जिद परिसर के भीतर और आंशिक रूप से बाहर है, और ऐतिहासिक रूप से इसका उपयोग मस्जिद में पानी की आपूर्ति के लिए होता रहा है।
सर्वेक्षण और हिंसा
संभल के सिविल जज द्वारा 19 नवंबर 2024 को मस्जिद का सर्वेक्षण करने के आदेश दिए गए थे। जिसे मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। मस्जिद कमेटी का आरोप है कि यह आदेश एक ही दिन में याचिका पर बिना सुनवाई के पारित किया गया। इसके विरोध में 24 नवंबर को इलाके में हिंसा भड़क उठी, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और कई घायल हुए। इस हिंसा के सिलसिले में मस्जिद समिति के अध्यक्ष ज़फर अली को गिरफ्तार किया गया।
हिंदू और मुस्लिम पक्षों के तर्क
हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन का कहना है कि कुआं मस्जिद से बाहर है और यह हमेशा से धार्मिक कार्यों में इस्तेमाल होता रहा है। वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह स्थल ‘हरि मंदिर’ नहीं बल्कि मस्जिद का एक अभिन्न हिस्सा है और इसका ऐतिहासिक महत्त्व है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि जब तक वह कोई अंतिम निर्णय नहीं लेता, तब तक विवादित स्थल पर यथास्थिति बनी रहेगी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बिना अनुमति के इस स्थल से संबंधित कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती।
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