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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में जातीय जनगणना पर रोक लगाने से किया इनकार, राज्य सरकार को दिया नोटिस

बिहार के जातीय जनगणना के आंकड़े पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने बिहार सरकार को नोटिस जारी किया है ।

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Bansal news
क्या ड्राइविंग लाइसेंस देने की व्यवस्था के लिए कानून में बदलाव जरूरी है, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा

Supreme Court: बिहार के जातीय जनगणना के आंकड़े पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने बिहार सरकार को नोटिस जारी किया है और अगले साल जनवरी तक जवाब देने कहा है। बिहार सरकार ने अपने स्तर पर जनगणना करने का फैसला किया था। इसके विरोध में केंद्र सरकार की दलील थी कि जनगणना पर सभी तरह के फैसले लेने का अधिकार केंद्र के पास और राज्य की सरकारें इस संबंध में कोई फैसला नहीं ले सकती।

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जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि बिहार सरकार ने डेटा एकत्र कर लिया गया है। डेटा को जारी भी कर दिया गया है। हाई कोर्ट ने मामले में विस्तृत आदेश जारी किया था। याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि मामले पेंडिंग थे और इस बीच सरकार ने डेटा जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण में एकत्र किए गए डेटा को अपलोड करने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

जाति पुछकर नीतीश कुमार ने निजता का किया उल्लंघन?

कोर्ट में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि बिहार की नीतिश सरकार ने लोगों की जाति पूछकर उनके निजता के मौलिक अधिकारों का हनन किया है। लोगों को अपनी जाति का खुलासा करने के लिए मजबूर करने के भी आरोप लगे। हालांकि, इस मामले पर सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट इन दलीलों को सिरे से खारिज किया था।

बिहार में जाति जनगणना के आंकड़े जारी

लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले, सर्वेक्षण से पता चला कि अन्य पिछड़ा वर्ग और उनके बीच अत्यंत पिछड़ा वर्ग राज्य की आबादी का 63% है, जिसमें ईबीसी 36% है जबकि ओबीसी 27।13% है। बिहार सरकार ने तर्क दिया था कि यह एक “सामाजिक सर्वेक्षण” था। राज्य सरकार के वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि सर्वेक्षण के आंकड़ों का इस्तेमाल कल्याणकारी उपायों को तैयार करने के लिए किया जाएगा।

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क्या है केंद्र सरकार की दलील?

पटना हाई कोर्ट ने 1 अगस्त को सर्वेक्षण की वैधता को बरकरार रखा था। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि बिहार के पास ऐसा सर्वेक्षण करने का कोई अधिकार नहीं है, जो केंद्र की शक्तियों को हड़पने की एक कोशिश है। उन्होंने तर्क दिया कि सर्वेक्षण ने संविधान की अनुसूची VII, जनगणना अधिनियम, 1948 और जनगणना नियम, 1990 का उल्लंघन किया है। याचिकाओं में कहा गया है कि जनगणना को संविधान की सातवीं अनुसूची में संघ सूची में शामिल किया गया था। दलीलों में तर्क दिया गया कि जून 2022 में सर्वेक्षण अधिसूचना जनगणना अधिनियम, 1948 की धारा 3, 4 और 4ए के साथ-साथ जनगणना नियम, 1990 के नियम 3, 4 और 6ए के दायरे से बाहर थी।

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