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Superme Court on Reservation: सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण पर बड़ा फैसला, कहा राज्यों के पास सब-कैटेगिरी बनाने का आधिकार

Superme Court on Reservation: उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में कोटा के मामले में एक बड़ा सुनाया है।

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aman sharma
Superme Court on Reservation: सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण पर बड़ा फैसला, कहा राज्यों के पास सब-कैटेगिरी बनाने का आधिकार

Superme Court on Reservation: उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में कोटा के मामले में एक बड़ा और निर्णायक फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत की 7 जजों की बेंच इस ममाले की सुनवाई कर रहे थे।

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इस दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि जनजाति के कोटे में भी कोटा हो सकता है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 7 जजों की बेंच ने 2004 के सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच का फैसला पलट दिया है। दरअसल, साल 2024 में चिन्नैया केस में शीर्ष अदालत ने अनुसूचित जातियों के बीच कोटे के प्रावधान को खारिज कर दिया था।

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अनुसूचित जाति (SC) एक सजातीय ग्रुप नहीं है और सरकारें इसके 15 प्रतिशत के आरक्षण में अधिक उत्पीड़न और शोषण का सामना करने वाली जातियों को फायदा पहुंचाने के लिए इसमें उप-वर्ग बना सकती हैं।

2004 का फैसला पलटा

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में कोटा के मामले में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस सतीश सी. शर्मा की बेंच ने शीर्ष अदालत 2004 के फैसले पलट दिया है। बता दें कि 2004 के चिन्नैया मामले में शीर्ष अदालत ने अनुसूचित जाति के आरक्षण में सब-कैटेगिरी के खिलाफ अपना ये फैसला दिया था।

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उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुसूचित जातियों के बीच सब कैटेगिरी उनके उत्पीड़ने के आधार पर किया जाना चाहिए। इसका प्रावधान राज्य शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी नौकरियों में उनके प्रतिनिधित्व से जुड़े आंकड़ों के आधार पर कर सकते हैं।

6-1 से हुआ आरक्षण का फैसला

सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। इसमें 6 जजों ने आरक्षण के पक्ष में अपना फैसला सुनाया, तो वहीं, 1 जज ने इसपर अपनी सहमति नहीं जताई। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इस मामले पर असहमति जताई थी। मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी राज्य के द्वारा अनुसूचित जाति की किसी भी जाति को आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है।

6-1 से हुआ आरक्षण का फैसला

सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। इसमें 6 जजों ने आरक्षण के पक्ष में अपना फैसला सुनाया, तो वहीं, 1 जज ने इसपर अपनी सहमति नहीं जताई। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इस मामले पर असहमति जताई थी। मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी राज्य के द्वारा अनुसूचित जाति की किसी भी जाति को आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है।

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शीर्ष अदालत ने कहा कि कोटे में कोटा असमानता के खिलाफ नहीं है। सभी राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में सब-कैटेगिरी बना सकती हैं। हालांकि राज्यों का यह फैसला न्यायिक समीक्षा के अधीन होंगी।

क्या है मामला

साल 1975 में पंजाब सरकार ने आरक्षित सीटों को 2 श्रेणियों में बांटकर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण नीति पेश की थी। एक वाल्मिकी और मजहबी सिखों के लिए और दूसरी अनुसूचित जातियों के लिए। तीस साल तक इस नियम के तहत आरक्षण नीति चलती रही थी।

मगर साल 2006 में इस मामले पर पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने दोबारा सुनवाई की थी। सुनवाई के दौरान ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया था।

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इसके बाद पंजाब सरकार का फैसला रद्द हो गया है। चिन्नैया फैसले पर अदालत ने कहा था कि अनुसूचित जाति की कैटेगिरी में सब- कैटेगिरी की अनुमति नहीं है, क्योंकि यह समानता के अधिकारों को पूरी तरह से उल्लंघन करता है।

जबकि 2006 में पंजाब सरकार ने वाल्मिकी और मजहबी सिखों को फिर से कोटा देने के लिए नया कानून बनाया गया था। इसे भी हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। कोर्ट ने पंजाब सरकार के इस फैसले को भी रद्द कर दिया। फिर इसके बाद मामला शीर्ष अदालत पहुंचा था।

उस समय पंजाब सरकार ने 1992 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया था। इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ के फैसले में अन्य पिछड़ा वर्ग के भीतर सब-कैटेगिरी बनाने की अनुमति थी। पंजाब सरकार का तर्क था कि अनुसूचित जाति के अंदर भी इसकी अनुमति होनी चाहिए।

वहीं, इसके बाद साल 2020 में शीर्ष अदालत की पांच जजों की बेंच ने पाया कि ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के फैसले पर एक बार फिर से विचार किया जाना चाहिए। इसके बाद सीजेआई की अगुवाई वाली सात जजों की बेंच का गठन किया गया और जनवरी 2024 में उच्चतम न्यायालय ने तीन दिनों तक मामले में दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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