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SC On Acquittal of Culprit: सुप्रीम कोर्ट ने पलटा पटना HC का फैसला, बच्ची से रेप के मामले में बरी हुए थे दोषी, सजा बहाल

Acquittal of Culprit: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामूली विरोधाभास या शक के आधार पर दोषी को बरी करना न्याय प्रणाली पर धब्बा डालता है।

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Bansal news
SC On Acquittal of Culprit: सुप्रीम कोर्ट ने पलटा पटना HC का फैसला, बच्ची से रेप के मामले में बरी हुए थे दोषी, सजा बहाल

हाइलाइट्स

  • सुप्रीम कोर्ट ने मामूली शक के आधार पर दोषी को बरी करना गलत बताया
  • पटना HC का नाबालिग के साथ दुष्कर्म मामले में फैसला SC ने रद्द किया
  • SC ने कहा- इस तरह के फैसले आपराधिक न्याय व्यवस्था पर धब्बा
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Supreme Court On Patna High Court: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (1 सितंबर) को कहा कि किसी दोषी को 'उचित संदेह से परे (Beyond Reasonable Doubt)' यानी केवल मामूली शक या छोटी-छोटी गलतियों के आधार पर बरी करना गलत है। इस थिअरी का गलत इस्तेमाल करके किसी दोषी को बरी करना जस्टिस सिस्टम पर बुरा प्रभाव डालता है। कोर्ट ने कहा कि मामूली विरोधाभासों (contradictions) या छोटे प्रमाणों (evidence) की कमी को बड़ा शक मानकर बरी करना गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने बरी किए गए आरोपियों की सजा बहाल कर दी है।

[caption id="attachment_888148" align="alignnone" width="1119"]publive-image सुप्रीम कोर्ट ने बरी किए गए आरोपियों की सजा की बहाल।[/caption]

पटना हाई कोर्ट का फैसला पलटा

सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट का वह फैसला रद्द कर दिया, जिसमें नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म के आरोपी को मामूली विरोधाभासों के आधार पर बरी कर दिया गया था। हाई कोर्ट ने आरोपी को बरी करते समय पीड़िता की उम्र, घटना का समय, गर्भावस्था और गर्भपात के प्रमाण, आरोप तय करने में त्रुटि और संयुक्त ट्रायल की वैधता जैसी चीजों का हवाला दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सभी कारणों को खारिज किया।

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न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा कि छोटी‑मोटी प्रक्रियागत गलतियां देखकर पीड़िता की लगातार गवाही और मेडिकल सबूतों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। बेंच ने आगे कहा कि अदालतें जमीनी हकीकत के प्रति संवेदनशील रहें ताकि कानून का मकसद कमजोर न पड़े और दोषी तकनीकी खामियों का फायदा उठाकर न बच निकलें।

POCSO के तहत 18 से कम उम्र साबित होना काफी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की उम्र 12 से 15 साल के बीच क्यों बताई गई, इससे फर्क नहीं पड़ता क्योंकि POCSO एक्ट के तहत केवल यह साबित होना जरूरी है कि पीड़िता 18 साल से कम थी। घटना की तारीख और समय को याद करने में मामूली गलती पूरे मामले को कमजोर नहीं करती। गर्भावस्था और गर्भपात के मेडिकल रिकॉर्ड को नजरअंदाज करना भी गलत था।

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[caption id="" align="alignnone" width="1200"]publive-image कोर्ट ने कहा- POCSO एक्ट के तहत केवल यह साबित होना जरूरी है कि पीड़िता 18 साल से कम थी।[/caption]

सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए आदेश दिया कि आरोपी नंबर 1 और 2 को दो सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट में सरेंडर करना होगा और बाकी बची सजा भुगतनी होगी।

यह न्याय व्यवस्था पर धब्बा

कोर्ट ने कहा कि इस सिद्धांत का गलत इस्तेमाल काफी खतरनाक है, क्योंकि इससे कई बार असली दोषी कानून से बच निकलते हैं। ऐसे ही अपराधी के बरी होने से समाज की सुरक्षा की भावना को चोट पहुंचती है। यह आपराधिक न्याय व्यवस्था पर धब्बा है।

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[caption id="" align="alignnone" width="1536"]publive-image दोषियों को दो सप्ताह के भीतर करना होगा समर्पण।[/caption]

FAQs

Q. सुप्रीम कोर्ट ने किस बात पर चेतावनी दी?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामूली विरोधाभास या शक के आधार पर दोषी को बरी करना गलत है। "पूरी तरह निश्चित होने तक" के सिद्धांत का गलत इस्तेमाल दोषियों को बचा सकता है।

Q. यह फैसला किस मामले से संबंधित है?

यह फैसला पटना हाई कोर्ट के उस मामले से जुड़ा है, जिसमें नाबालिग के साथ दुष्कर्म के आरोपी को मामूली विरोधाभासों के आधार पर बरी किया गया था।

Q. सुप्रीम कोर्ट ने क्या आदेश दिया?

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का फैसला रद्द करते हुए आदेश दिया कि आरोपी नंबर 1 और 2 को दो सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट में आत्मसमर्पण करना होगा और शेष सजा भुगतनी होगी।

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