पिछले 15 दिनों में पांच छात्रों की मौत से तमिलनाडु सहम हुआ है। ये दुखद घटनाएं हैं जिनकी शुरुआत 13 जुलाई को हुई जब 12 वीं कक्षा के एक छात्र की मौत ने कल्लाकुरिची में बहुत गुस्सा पैदा किया। हालांकि विशेषज्ञ कई कारकों की ओर इशारा करते हैं जो छात्रों को इस घटना की ओर मोड़ते हैं।लेकिन इन छात्रों पर कुछ मनोवैज्ञानिक दबाव भी होता है। उन्हें समाज ,परिवार और साथी छात्रों का भी बहुत दबाव सहना पड़ता है। बंसल न्यूज ने आत्महत्या रोकथाम पॉलिसी की एडवोकेसी कर रहे मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी से चर्चा की, जिन्होंने ऐसे मामलों के संभावित कारणों पर प्रकाश डाला।
डॉ सत्यकांत त्रिवेदी (Psychiatrist in Bhopal) कहते हैं कि इस तरह की घटनाओं के लिए सामाजिक,शैक्षणिक, मनोवैज्ञानिक कारक जिम्मेदार हैं। हालांकि छात्रों के परिपेक्ष में अकादमिक दबाव प्रबंधन में समस्या प्रमुख कारण हो सकता है।
कोविड कॉल की बात करें तो महामारी के कारण स्टडी पैटर्न में बड़ा बदलाव आया था। हमारे यहाँ शुरू से ही प्रतिशत कई कारणों से महिमामंडित रहा।बात चाहे अच्छे महाविद्यालयों में प्रवेश की हो या कक्षा 11 में विषय आवंटन की हो,सब तरफ से प्रतिशत ज्यादा से ज्यादा लाने का दबाव रहता है ।साथ ही साथ बच्चे के प्रतिशत के आधार पर उसके प्रति धारणा भी बनाई जाती है इसलिए बच्चा बेहद असुरक्षित रहता है।कोविड काल से खेल के मैदान में बच्चों का जाना कम हुआ है जिससे वास्तविक सोशल कनेक्शन भी कम हुए । मोबाइल फोन और इंटरनेट का बढ़ता उपयोग एक निश्चित सीमा तक अच्छा रहा है, लेकिन जब यह अत्यधिक हो गया तो यह नकारात्मक प्रभाव डालने लगा।
तमिलनाडु सरकार का फैसला, छात्रों को मनोवैज्ञानिक परामर्श देंगे 800 डॉक्टर
तमिलनाडु में बढ़ते आत्महत्या के मामलों को देखते हुए प्रदेश सरकार ने फैसला लिया है स्कूली छात्रों को मनोवैज्ञानिक परामर्श देने के लिए 800 डॉक्टरों की नियुक्त किए जाएंगे। इस परियोजना को आधिकारिक तौर पर मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने बुधवार को लॉन्च किया। शिक्षा मंत्री अंबिल महेश पोय्यामोझी ने कहा, यह परियोजना छात्रों को किशोरावस्था के मुद्दों, पढ़ाई के दबाव के साथ ही साथियों के दबाव और बच्चों में व्यवहार परिवर्तन से संबंधित मुद्दों पर तनाव के बीच मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद करेगी।
आत्महत्या रोकथाम नीति लागू किये जाने की जरूरत
डॉ सत्यकांत त्रिवेदी (Psychiatrist in Bhopal) कहते हैं कि एक शोध की मानें तो भारत में एक आत्महत्या की घटना होती है तो वहीं दूसरी आरे ऐसे 200 लोग होते हैं जो इसके बारे में सोच रहे होते हैं। वहीं 15 लोग इसका प्रयास कर चुके होते हैं। यानी सूचना सीधे-सीधे उन्हें प्रेरित कर रही होती है। साल 2015 के एक शोध में सामने आया था कि देश में 18 वर्ष से ऊपर आयु वर्ग के लगभग 30 मिलियन लोगों ने अपना जीवन समाप्त करने के बारे में सोचा, जबकि 2.5 मिलियन ने आत्महत्या का प्रयास किया। ये आंकड़े बहुत कम या लगभग समाप्त किए जा सकते हैं, अगर देश में ऐसी कोई सुसाइड प्रिवेंशन पॉलिसी लागू की जाए।उन्होंने ने बताया कि वर्ष 2020 में उन्होंने एक ट्विटर कैंपेन के माध्यम से प्रधानमंत्री जी से अभी इस बात की अपील की थी जिसे काफी लोगों में सपोर्ट किया था। मध्यप्रदेश में उन्होंने ने अपना आत्महत्या रोकथाम नीति लाने सुझाव पत्र महामहिम राज्यपाल और चिकित्सा मंत्री को भी सौंपा है।
क्या हों पॉलिसी के मुख्य बिंदु
– हाई रिस्क ग्रुप यानी वो छात्र जो बोर्ड की पढ़ाई कर रहे हैं। प्रतियोगी परीक्षार्थी, काम की तलाश में दूसरे शहर गए युवा या किसानों का समय-समय पर मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण हो। इससे मानसिक रोग जैसे डिप्रेशन आदि की पहचान पहले से हो सके। इससे उनके इलाज में सुविधा मिलेगी।
– परिवार का सपोर्ट सिस्टम मजबूत हो, जिससे लोग संवेदनशील बने। इससे अप्रिय घटना होने पर खराब मानसिक स्वास्थ्य में संबल प्रदान कर सकें।
– समाजशास्त्री और धर्मगुरु इसकी रोकथाम में महती भूमिका निभा सकते हैं, उन्हें भी सपोर्ट ग्रुप में रखा जाए।
– स्कूली पाठ्यक्रम में शुरू से मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी अध्याय जिसमें मानसिक स्वास्थ्य की अवधारणा, जीवन प्रबंधन,साइकोलॉजिकल फर्स्ट ऐड को शामिल किया जाना चाहिए।
– आत्महत्या संबंधी खबरों का महिमामंडन नहीं होना चाहिए, इसमें विक्टिम के बारे में अतिभावनात्मक प्रतिक्रिया देने से बचना चाहिए।
– घरों में खतरनाक हथियार ,कीटनाशक या ऐसे संसाधन रखने में विशेष सावधानी होनी चाहिए, अगर विशेष जरुरत न हो तो इससे बचना चाहिए।
– नशे की रोकथाम संबंधी कार्यक्रम, अधिक से अधिक काउन्सलिंग सेंटर, मानसिक रोग विशेषज्ञ की उपलब्धता को बढ़ाने हेतु नीति निर्माताओं को ध्यान देना होगा।
– दूरस्थ स्थानों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाने हेतु टेली साइकाइट्री शुरू करना भी महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
– मानसिक रोगों के प्रति जागरूकता लाने हेतु व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है, संक्रामक रोगों के प्रति जागरूकता लाने संबंधी मॉडल का अनुसरण करते हुए सेलिब्रिटी का भी सहयोग लिया जाना चाहिए।