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Success Story: फेरीवाले के बेटे ने पास की आईआईटी परीक्षा, जानिए क्यों नहीं लिया एडमिशन

Success Story:  जरूरी नहीं कि संपन्न परिवार में ही तेज बुद्धि वाले जन्म लेते हैं या यूं कहें कि अभाव भी परिश्रम के सामने मायने नहीं रखते हैं।

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Bansal news
Success Story: फेरीवाले के बेटे ने पास की आईआईटी परीक्षा, जानिए क्यों नहीं लिया एडमिशन

Success Story:  जरूरी नहीं कि संपन्न परिवार में ही तेज बुद्धि वाले जन्म लेते हैं या यूं कहें कि अभाव भी परिश्रम के सामने मायने नहीं रखते हैं। नोएडा के एक फेरीवाले के बेटे ने यह बात साबित करके दिखाई है। नोएडा के बलवंत सिंह आजकल बहुत खुश हैं। उनके बेटे ने बड़ी कामयाबी हासिल की है।

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उनके बेटे ने आईआईटी प्रवेश परीक्षा पास कर ली है। बलवंत सिंह पिछले 28 साल से फेरी लगाकर तौलिये बेचते हैं। अब उनकी मेहनत सफल हो गई है। आइए जानिए इनकी सक्सेस स्टोरी(Success Story)

आईआईटी पास किया लेकिन एडमिशन नहीं लिया

बलवंत सिंह ने बताया कि उनके बेटे ने आईआईटी में एडमिशन नहीं लिया है। उन्होंने कहा, "वह कंप्यूटर साइंस से बीटेक करना चाह रहा है। उसे आईआईटी दिल्ली में सिविल इंजीनियरिंग मिल रही थी। इस वजह से उसने आईआईटी छोड़ दी है और दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में बीटेक करने का फैसला किया है। अब वहीं दाखिला ले रहा है।"

'वह दिन-रात बड़ी लगन से खुद करता था पढ़ाई'

बेटे की सफलता से बलवंत काफी खुश हैं और गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। बलवंत बताते हैं, ‘मुझे मालूम था कि मेरा बेटा क़ाबिल है। वह देर रात तक पढ़ाई करता था और जल्दी सुबह उठकर पढ़ने लगता था। मैं जब रात में 2-3 बजे पानी पीने के लिए उठता था, तब भी वह पढ़ाई कर रहा होता था।

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मैं कई बार उसे टोक देता था। इतना दबाव मत लो। सब ठीक हो जाएगा। तुम पास हो जाओगे लेकिन उसने अपना रूटीन नहीं बदला।’ वह आगे कहते हैं, "हर मां-बाप अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा देने के लिए यथासंभव प्रयास करते हैं। मैंने भी किया लेकिन मेरे पास ज्यादा कुछ नहीं था।"(Success Story)

'उसे कामयाब देखना चाहता हूं, मेरा काम मुझे पसंद'

बलवंत कहते हैं, "मैं अब अपने बेटे को बड़े पद पर काम करते देखना चाहता हूं। मेरा काम मुझे पसंद है। इससे मेरा परिवार चल रहा है। हमें इसी काम से रोटी मिलती है। हम दिन-रात बस इसिलिए मेहनत करते हैं कि बच्चा पढ़ लिखकर क़ाबिल बन जाए।

गरीब मां-बाप के लिए संघर्ष तो और भी कठिन हो जाता है, क्योंकि इन महंगे शहरों में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का खर्चा उठाना उनके लिए आसान नहीं होता है। ऐसे में जब उनका बच्चा पढ़ लिखकर अच्छा मुकाम हासिल कर लेता है तो सबसे ज्यादा खुशी मां-बाप को ही होती है।"(Success Story)

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