हाइलाइट्स
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RTI के दायरे में सरकारी कर्मचारी के जाति प्रमाण पत्र को लेकर बड़ा निर्णय
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जिस आधार पर नौकरी-प्रमोशन मिलता है, उस जानकारी को व्यक्तिगत होने के आधार पर रोकना अवैध
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सहकारिता आयुक्त को RTI आवेदिका को ₹1000 क्षतिपूर्ति राशि अदा करने के आदेश
State Information Commissioner Decision: शासकीय नौकरी में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के कई मामले उजागर होते रहते हैं। ऐसे में मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में सरकारी नौकरी में दिए गए जाति प्रमाण पत्र को पब्लिक डॉक्यूमेंट माना है।
सिंह (State Information Commissioner Decision) ने इस आदेश मे साफ किया जिस आधार पर नौकरी और प्रमोशन मिलता है, उस जानकारी को व्यक्तिगत होने के आधार पर रोकना अवैध है।
सिंह ने प्रकरण में हुई लापरवाही के लिए सहकारिता आयुक्त को जबलपुर की RTI आवेदिका को ₹1000 क्षतिपूर्ति राशि अदा करने के आदेश भी जारी किए हैं।
यह है पूरा मामला
मामला जबलपुर के सहकारिता विभाग का है। यहां कार्यरत ममता धनोरिया ने इसी कार्यालय में काम करने वाली एक अन्य सहयोगी हेमलता हेडाऊ की जानकारी RTI में मांग ली।
हेमलता ने ममता के SC-ST Act में FIR भी दर्ज करा रखी है। इस मामले में जानकारी रोकने के उपायुक्त सहकारिता विभाग जबलपुर के निर्णय को राहुल सिंह ने विधि विरुद्ध ठहराया है।
आयोग में RTI मे हेमलता ने अपनी जानकारी को ममता को उपलब्ध कराने का विरोध किया। पर जब सिंह (State Information Commissioner Decision) ने हेमलता से पूछा की जाति की जानकारी शासकीय कार्यालय में व्यक्तिगत कैसे हो सकती है तो हेमलता कोई सही जवाब नहीं दे पाई।
हेमलता ने जबलपुर हाईकोर्ट का एक निर्णय लगाते हुए जानकारी को व्यक्तिगत बताते हुए रोकने के लिए कहा। सिंह ने जबलपुर हाई कोर्ट के निर्णय को इस मामले पर प्रभावी न होने के आधार पर हेमलता की दलील को खारिज कर दी।
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राज्य सूचना आयोग के फैसले की बड़ी बातें
A) सिंह ने माना कि शासकीय नौकरी में जाति के आधार पर नियुक्ति/ प्रमोशन आदि की व्यवस्था नियम- कानून अनुरूप होती है, यह विभाग में सभी के संज्ञान में होता है ऐसे में जानकारी व्यक्तिगत होने का आधार नहीं बनता है।
B) आयुक्त के मुताबिक फर्जी जाति प्रमाणपत्र के रैकेट प्रदेश में उजागर होते रहे हैं, ऐसी स्थिति में RTI के तहत प्रमाणपत्रों देने से इनकी प्रमाणिकता की पारदर्शी व्यवस्था और भर्ती प्रक्रिया में जवाबदेही भी सुनिश्चित होगी।
C) सिंह ने कहा कि “अगर जाति प्रमाणपत्र संदिग्ध है तो ऐसी स्थिति में हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जानकारी रोकने के अन्य निर्णय यहां प्रभावी नहीं होंगे क्योंकि यहां जानकारी देने में लोकहित स्पष्ट है”
D) राहुल सिंह ने कहा कि इस प्रकरण में RTI आवेदिका ने जिस व्यक्ति की जानकारी मांगी है। उसने SC-ST Act के तहत FIR दर्ज करायी है। ऐसे में पीड़ित को यह जानने का अधिकार है कि आरोप लगाने वाले कौन सी जाति के हैं।
E) सिंह ने आदेश में इस जाति प्रमाण पत्र को लेकर एक खुलासा भी किया कि छिंदवाड़ा तहसील कार्यालय ने एक अन्य RTI में हेमलता के जाति प्रमाणपत्र संदिग्ध बताया है, ऐसी स्तिथि में भी जाति प्रमाणपत्र RTI में देना चाहिए।
F) आयुक्त ने अपने निर्णय मे स्पष्ट किया कि धारा 11 तीसरे पक्ष से आपत्ति लेने की प्रक्रिया मात्र है सिर्फ आपत्ति के आधार पर ही जानकारी को रोकना गलत है। PIO को देखना है कि व्यक्तिगत जानकारी का आधार बनता है या नहीं।
व्यक्तिगत दस्तावेज बताकर जानकारी को रोकना गलत
राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह (State Information Commissioner Decision) ने अपने आदेश में कहा कि शासकीय नौकरी में नियुक्ति के समय लगाए गए जाति प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज RTI Act की धारा 2 के तहत पब्लिक दस्तावेज है। इसे अक्सर अधिकारी धारा 8(1) (j) के तहत व्यक्तिगत दस्तावेज बता कर रोक देते हैं।
सिंह ने ये भी स्पष्ट किया कि RTI Act की धारा 8 (1) j में व्यक्तिगत जानकारी का आधार बनता है पर इसी धारा के अनुसार जो जानकारी विधानसभा या संसद को देने से मना नहीं कर सकते हैं वह जानकारी अधिकारी किसी व्यक्ति को देने से मना नहीं कर सकते हैं।