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दिवाली पर धान की झालर: छत्‍तीसगढ़ के बाजार में सजी बाली की झूमर लुभा रही, जानें घर में क्‍यों है इन्‍हें सजाने की परंपरा

CG Diwali Dhan Jhalar-Jhoomar: छत्‍तीसगढ़ के बाजार में सजी बाली की झूमर लुभा रही, जानें घर में क्‍यों है इन्‍हें सजाने की परंपरा

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Sanjeet Kumar
CG Diwali Dhan Jhalar-Jhoomar

CG Diwali Dhan Jhalar-Jhoomar

CG Diwali Dhan Jhalar-Jhoomar: देशभर में दिवाली का त्‍यौहार उत्‍साह से मनाया जाता है। इसको लेकर लोग खूब तैयारी कर रहे हैं। वहीं घरों की साफ-सफाई के साथ ही सजाया भी जा रहा है। यही त्‍यौहार देश के साथ ही छत्‍तीसगढ़ के लिए भी खास है। छत्‍तीसगढ़ अपनी खास परंपराओं के लिए भी देशभर में प्रसिद्ध है। यहां हर त्‍यौहार (CG Diwali Dhan Jhalar-Jhoomar) के मौके पर कुछ खास रहता है। इसी तरह दिवाली पर विशेष रूप से धान की बालियों से बने झूमर और झालर घर में लगाए जाते हैं। यह सदियों पुरानी परंपरा है।

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इस सदियों पुरानी परंपरा को लेकर बाजार में भी धान की बालियों से बनी खास झालर बाजार में सज गई है। बाजार में भी लोग जमकर खरीदारी कर रहे हैं। इन झालरों की बिक्री बाजार में धनतेरस के साथ ही शुरू हो जाती है। बाजार में भी इसकी खूब डिमांड हो रही है। अब आइये आपको बताते हैं क्‍यों ये धान की बाली की झालर, झूमर घर में लगाते हैं-

दिवाली की खास परंपरा आज भी बरकरार

Paddy ear chandeliers in Diwali market

बता दें कि छत्तीसगढ़ (CG Diwali Dhan Jhalar-Jhoomar) में दिवाली पर्व के मौके पर कई पुरानी सांस्कृतिक परंपरा आज भी जारी है। इसी तरह इन परंपराओं का निर्वहन करते हुए लोग अपने घरों के गेट पर धान की झालर लगाते हैं और यह रस्‍म निभा रहे हैं। दिवाली पर्व पर जब खेत में नई फसल पक जाती है तो ग्रामीण नरम धान की बालियों से कलात्मक झालर, झूमर तैयार कर लेते हैं। इतना ही नहीं इसकी चूड़ियां भी बनाई जाती है।

पक्षियों के माध्‍यम से देते हैं मां लक्ष्‍मी को बुलाते हैं

छत्तीसगढ़ (CG Diwali Dhan Jhalar-Jhoomar) में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। लोग अपने घरों को धान की झालल लगाते हैं। इससे घर बहुत ही सुंदर और आकर्षक लगता है। यह एक तरीके से भगवान का आभार भी मानने के लिए लगाई जाती है। यह आभार सुख-समृद्धि के लिए व्‍यक्‍त करते हैं।

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इसी के साथ ही झालर की बालियों के अन्‍न को पक्षी खाते हैं। ऐसी मान्‍यता है कि घर में झालर लगाकर दिवाली के दिन मां लक्ष्‍मी को बुलाया जाता है। मां लक्ष्‍मी को निमंत्रण पक्षियों के माध्‍यम से भेजा जाता है। पक्षी झालर में दाने खाते हैं और माता लक्ष्‍मी को उनके घर का निमंत्रण देकर आते हैं।

शहरी क्षेत्र में कम हो रही परंपरा

CG Paddy ear chandeliers in Diwali market

बाजार में अब झालर, झूमर रेडीमेड (CG Diwali Dhan Jhalar-Jhoomar) उपलब्‍ध है। हालांकि शहरी क्षेत्रों में लोग इस प्राचीन परंपरा को भूलते जा रहे हैं। हालांकि प्रदेश में अभी भी धान के झूमरों की डिमांड है और बाजार में ये झूमर, झालर आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। बाजार में छोटे आकार के झूमर खूब बिक रहे हैं, जिनकी कीमत औसतन 50 रुपए से लेकर 250 रुपए तक बताई जा रही है।

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बस्‍तर-सरगुजा में सबसे ज्‍यादा निभाते हैं परंपरा

बता दें कि राज्‍य की लोक सांस्‍कृतिक परंपरा को छत्‍तीसगढ़वासी (CG Diwali Dhan Jhalar-Jhoomar) बखूबी निभा रहे हैं। यहां के लोग राज्य की लोक संस्कृति प्रकृति के साथ अपनी खुशियां बांटते हैं, उसे संरक्षित करते हैं। प्रदेश में बस्तर और सरगुजा समेत प्रदेश के लगभग सभी घरों में, आंगन और दरवाजों पर धान की झालर लटकाई जाती है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस झालर, झूमर को पहटा या पिंजरा भी कहते हैं।

नई फसल के स्‍वागत के लिए परंपरा

छत्तीसगढ़ में दिवाली त्‍यौहार (CG Diwali Dhan Jhalar-Jhoomar) तक खरीफ सीजन की हर फसल आ जाती है। हालांकि प्रदेश की सबसे प्रमुख फसल धान की फसल है। जहां धान की बाली के झूमर को घर में लटकाने की परंपरा नई फसल के स्वागत के लिए भी है। साथ ही अन्न के पूजन का प्रतीक भी इसे माना जाता है। जो सदियों से ग्रामीण और शहरी इलाकों में अपनी पहचान बनाए रखें हैं।

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