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Sindoor Khela: बंगाल में कितनी खास होती है सिंदूर खेला की रस्म ? महिलाएं एक-दूसरे को लगाती है सिंदूर

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Bansal News
Sindoor Khela: बंगाल में कितनी खास होती है सिंदूर खेला की रस्म ? महिलाएं एक-दूसरे को लगाती है सिंदूर

Sindoor Khela in Durga Puja: माता दुर्गा के नौ दिनों यानि नवरात्रि का त्योहार जहां आज विजयादशमी के साथ समाप्त हो गया है वहीं पर नवरात्रि के अंतिम दिन पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा(Bengal Durga Puja 2022)की गई तो वहीं पर इस खास मौके पर आपने सिंदूर खेला की रस्म देखी होगी, तो क्या आपने सोचा है आखिर विसर्जन के दिन क्यों खेला जाता है सिंदूर खेला और क्या होती है इसकी मान्यता।

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नवरात्रि के अंतिम दिन खेला जाता है सिंदूर

आपको बताते चलें कि, बंगाल में सिंदूर खेला आमतौर पर विसर्जन के दिन खास रस्म में से एक मानी जाती है जिस मौके पर मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित किया जाता है,  जिसके बाद महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और शुभकामनाएं देती हैं. बंगाल में इस अवसर पर कई स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों भी आयोजन होता है जिसे सिंदूर खेला कहा जाता है। इस खास मौके पर सुहागन महिलाओं के अलावा विधवा, तलाकशुदा, किन्नर और नगरवधुओं को अब शामिल करने लगे है। आपको बताते चलें कि, विसर्जन के दिन होने वाली सिंदूर खेला की रस्म में महिलाएं पान के पत्ते से मां के गालों को स्पर्श करती हैं, जिसके बाद मां दुर्गा की मांग में सिंदूर भरती हैं और माथे पर सिंदूर लगती हैं. यह करने के बाद मां दुर्गा को पान और मिठाई का भोग लगाया जाता है. विधि-विधान से मां की पूजा अर्चना कर सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और देवी दुर्गा से लंबे सुहाग की कामना करती हैं। कहा जाता है कि, बंगाल में यह रस्म 450 साल से निभाया जा रही है सुहागन महिलाओं के द्वारा इस रस्म को निभाने से सुहाग को लंबी उम्र का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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जानें क्या कहती है धार्मिक मान्यता

मान्यता कहती है कि, सिंदूर खेला की रस्म के बाद मां दुर्गा की विदाई के समय देवी बॉरन की प्रथा निभाई जाती है. बंगाल में यह मान्यता है कि नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा मायके आती हैं और 10 दिनों तक रुकने के बाद पुनः ससुराल चली जाती हैं. इसलिए जिस तरह मायके आने पर लड़कियों की सेवा की जाती है, वैसे ही नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा की पूजा और सेवा की जाती है. इसलिए जैसे बेटियों को विदा करते समय खाने-पीने की चीजें और अन्य प्रकार की भेंट दी जाती है, वैसे ही मां दुर्गा के विदाई के दिन भी उनके साथ पोटली में श्रृंगार का सामाना और खाने-पीने की चीजें रख दी जाती हैं. देवलोक तक पहुंचने में उनको रास्ते में कोई परेशानी न हो इसलिए उनके साथ यह सभी चीजें रख दी जाती है।

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