हाइलाइट्स
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हार्टफुलनेस के मुख्यालय में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी समारोह
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RSS के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत मुख्य वक्ता
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हर घर-हर दिल में ध्यान का दीया जलना जरूरी : दाजी
Shree Krishna Janmashtami Heartfulness: श्री कृष्ण के जीवन चरित्र से जुड़ने और उनकी भक्ति का योग्य साधक बनने के लिए हर व्यक्ति को अपने जीवन में तीन तप करना जरूरी है। यह तीन तप हैं शरीर, मन और बुद्धि की पवित्रता। जो भी व्यक्ति जीवन की हर परिस्थिति में श्री कृष्ण के चरित्र का अनुसरण और उनका सतत स्मरण करते हुए अपने शरीर मां और बुद्धि में पवित्रता कायम रखते हुए कर्म करेगा, उसके सभी कार्य पवित्र होंगे और वह दुनिया को भी पवित्र करेगा। उसके चित्त में खुद श्री कृष्ण का भी वास होगा।
यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने अंतर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक संस्था हार्टफुलनेस श्री रामचंद्र मिशन के हैदराबाद स्थित इंटरनेशनल सेंटर हेडक्वार्टर कान्हा शांति वनम में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के संबंध में व्यक्त किया।
भारत को ऐसी महाशक्ति नहीं बनाना
भागवत ने कहा कि दुनिया में भारत अभी ऊपर उठ रहा है। हमारी सेनाएं कितनी शक्तिशाली हैं, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हाल ही में पूरी दुनिया ने देखा है। लेकिन हमें भारत को दुनिया की ऐसी महाशक्ति नहीं बनाना है जैसी महाशक्तियां और उनके कृत्य दुनिया अभी देख रही है। ये तीनों महाशक्तियां दुनिया को बेहतर और खुशहाल बनाने की दिशा में अपना कैसा और क्या योगदान दे रही हैं यह सब देख ही रहे हैं। हमें यह सोचना और तय करना है कि हम नई महाशक्ति बनने पर दुनिया की बेहतरी के लिए क्या नया और अलग करेंगे।
हमारे लिए मध्य मार्ग ही बेहतर
हमें पूंजीवाद और साम्यवाद के झंझट में नहीं पड़ना है क्योंकि हम इनका हश्र देख रहे हैं। हमने देखा है कि कोई भी वाद एकतरफा यानी एक पक्षीय ही होता है। इसी कमी के चलते चाहे साम्यवाद हो या पूंजी विवाद उसको लेकर दुनिया में तरह-तरह के विवाद और झंझट होती रही है। दरअसल, दुनिया में जो कुछ भी अच्छा और बुरा है वह सब सर्वशक्तिमान ईश्वर का बनाया हुआ है। हमें अच्छे और बुरे इन दोनों के बीच के उपद्रव को छोड़ते हुए मध्य मार्ग पर चलना है। हमारे उपनिषदों में भी यह बताया गया है कि सिर्फ भौतिक ज्ञान के रास्ते पर चलना अंधकार की ओर ले जाता है।
विद्या और अविद्या में संतुलन जरूरी
भारत को विद्या और अविद्या दोनों के बीच संतुलन बनाकर मध्य मार्ग पर आगे बढ़ाना है। दरअसल, विद्या का लक्ष्य अमरत्व की प्राप्ति करना जबकि अविद्या का लक्ष्य भौतिक शरीर को चलाने के लिए मृत्यु पर विजय (निरामय) प्राप्त करना है। ऐसे मध्यम मार्ग में व्यक्ति के साथ-साथ समूह और सृष्टि की सत्ता भी महत्वपूर्ण होती है। ऐसी व्यवस्था में किसी व्यक्ति का बड़ा होना तभी सार्थक माना जाता है जब उसके सार्थक योगदान से समाज भी बड़ा होता है, तरक्की करता है। इस व्यवस्था में बड़ा होने का अर्थ सिर्फ सक्सेसफुल (सफल) होना नहीं बल्कि समाज और देश के लिए मीनिंगफुल (सार्थक) होना भी है। दरअसल, पूरी दुनिया को अभी यह समझ नहीं आ रहा है कि कैसे इन दोनों का लाभ लेते हुए मध्य मार्ग अपनाकर आगे बढ़ा जा सकता है। हमें पूरी दुनिया को यही रास्ता दिखाने के लिए भारत को सशक्त बनाना है।
क्या हम भी श्री कृष्ण बन सकते हैं ?
श्रोताओं के बीच यह सवाल रखते हुए RSS के मुखिया डॉ. भागवत ने स्पष्ट किया कि इस जीवन में श्री कृष्ण के जीवन चरित्र के आदर्श का अनुसरण करना बहुत श्रमसाध्य और कष्ट साध्य भी है। ऐसे में एक जीवन में श्री कृष्ण बनने की संभावना कम है, लेकिन हमारे लिए महत्वपूर्ण यह है कि हम अपने जीवन में उनके आदर्श की बातों का अनुसरण करते हुए कुछ कदम तो आगे चलें। उन्होंने इसके लिए 40 मील दूर एक ऊंची पहाड़ी पर लक्ष्य का उदाहरण दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि हम एक बार में 40 मील दूर ऊंची चोटी पर स्थित लक्ष्य पर पहुंचने में सक्षम नहीं है तो हमें कम से कम रोजाना उसे दिशा में सौ-सौ कदम चलने का प्रयास तो करना ही चाहिए।
यदि ऐसा करते हुए हमें थकान या कष्ट महसूस हो तो बीच में थोड़ा विश्राम भी ले सकते हैं, लेकिन हमें उसे लक्ष्य की दिशा में अपनी यात्रा निरंतर के साथ चालू रखनी चाहिए। जन्म-जन्मांतर की इस साधना में हर व्यक्ति को रोजाना कुछ कदम तो उस ओर बढ़ने का प्रयास करना ही चाहिए। ऐसा करें तो हम एक दिन अवश्य श्री कृष्ण की तरह बन पाएंगे।
‘ऐसे बड़ा बनेगा भारत’
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि सृष्टि के संचालन और इसकी रक्षा के लिए हर एक को ऐसा प्रयास करना होगा। इसी उपक्रम को हम धर्म की रक्षा भी कह सकते हैं। इसलिए भगवान कहते हैं कि इसी धर्म रक्षा के लिए बार-बार धरती पर आता हूं। हम भी धर्म की स्थापना के इस पावन कार्य में थोड़ा-थोड़ा हाथ बंटा सकते हैं और दुनिया के बड़े से बड़े कष्ट का समाधान कर सकते हैं। श्रीमद् भागवत गीता में परम योगेश्वर श्री कृष्ण के कर्म और वचन का उदाहरण हम सबके सामने है। श्री कृष्ण के चरित्र में इतनी शक्ति है कि इस इसका अनुसरण करके न सिर्फ हम बड़े बनेंगे बल्कि भारत बड़ा बनेगा और पूरी दुनिया को भी सुखी और सुंदर बनाने में सक्षम होगा।
श्री कृष्ण ने जीवनभर किया कठोर परिश्रम
श्री कृष्ण के जीवन में बचपन से ही कष्ट और चुनौतियां का जिक्र करते हुए RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि श्री कृष्णा मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के ही अवतार माने जाते हैं। उनका जन्म जेल के अंदर हुआ और जब उनका जन्म हुआ तो उस समय उनके माता-पिता दोनों को ही जेल की कोठरी में डाल दिया गया। बचपन के सब संकट भोगने के बाद श्री कृष्ण द्वारकाधीश बने इसके बाद में सुख और वैभव से रह सकते थे, लेकिन नहीं रहे। क्योंकि धर्म की मर्यादा नष्ट हो रही थी, इसलिए धर्म की पुनर्स्थापना के लिए उन्होंने स्वयं के आचरण का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए जीवनभर कठोर परिश्रम किया। वे इतने शक्ति संपन्न थे कि वह जहां भी अपनी एक नजर डालते वहां अपने आप सब कुछ ठीक हो जाता, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि समय की विधि और विधान होता है। इसके अनुसार ही वे स्वयं आते हैं और लोग उनकी कृति का अनुसरण करेंगे। लोगों के सामने आदर्श आचरण का उदाहरण प्रस्तुत हो क्योंकि सनातन धर्म पद्धति में माना जाता है कि यथा राजा तथा प्रजा यानी जैसा आचरण राजा का होता है प्रजा भी वैसा ही करती है।
‘सब कुछ ईश्वर की प्रेरणा और शक्ति से होता है’
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि जरासंध और कौरवों के शासन के अत्याचारों से जनता को छुटकारा दिलाने और फिर से धर्म की मर्यादा की स्थापना के लिए श्री कृष्ण सब कुछ करते हुए भी किनारे रहे। दरअसल, भगवान यह नहीं चाहते कि आप अपनी मनमानी करते चलो और बीच-बीच में मैं आकर सब कुछ ठीक कर दूं। ईश्वर आते हैं और दूसरों से करवाते हैं, लेकिन करता का श्रेय खुद नहीं लेते। सब कुछ उनकी प्रेरणा आशीर्वाद और शक्ति से ही होता है, लेकिन वह कभी खुद श्रेय नहीं लेते। श्री कृष्ण ने तो महाभारत में नेतृत्व भी नहीं किया बल्कि नेतृत्व पांडवों को सौंप दिया और वह खुद अर्जुन के रथ के सारथी बने रहे। वे सिर्फ पांडवों को युद्ध के लिए नीति और युक्ति बताते रहे। आज के समय में हम सभी को उनके चरित्र से यह सीखना और सोचना चाहिए। श्री कृष्ण कालक्रम के अनुसार हम सब के सबसे निकट हैं। उस समय द्वापर खत्म हो रहा था और कलयुग आ रहा था। उन्होंने आने वाले समय को ध्यान में रखते हुए ही अपना जीवन रूप रखा। श्रीमद् भागवत गीता भारतीय चिंतन का सर्वोच्च बिंदु है।
हर घर और दिल में ध्यान की दीया जलना जरूरी : दाजी
इस अवसर पर हार्टफुलनेस के मुख्य गाइड कमलेश डी पटेल दाजी ने कहा कि आज बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जो सब कुछ होते हुए भी दुखी हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके मन में शांति और एकाग्रता का भाव नहीं है। इसका कारण उनका इच्छाओं और लालसाओं के पीछे भागना है। यदि हमारी इच्छाएं ईश्वर या गुरु की इच्छाओं से जोड़ दी जाए तो आपको मां की शांति और एकाग्रता जरूर मिलेगी। यदि आप ईश्वर या किसी गुरु की शरणागति में आ जाते हैं तो इसके बाद आपको फिर और किसी संगत की जरूरत नहीं पड़ती। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जब तक हर दिल और हर घर में ध्यान का दीया नहीं जलेगा तब तक दुनिया में अपेक्षित शांति और सद्भाव की स्थापना नहीं हो पाएगी।