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भूल से भी नहीं करनी चाहिए शिवलिंग की पूरी परिक्रमा, जानिए क्या है कारण

भगवान शिव के मंदिर और उनके शिवलिंग की पूरी परिक्रमा करना वर्जित माना गया है। आइए जानते हैं, आखिर ऐसी क्या वजह है?

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Shyam Nandan
भूल से भी नहीं करनी चाहिए शिवलिंग की पूरी परिक्रमा, जानिए क्या है कारण

हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं के मूर्तियों और विग्रहों की परिक्रमा करने की एक सनातन और अक्षुण्ण परंपरा है। आज केवल शास्त्र ही नहीं बल्कि विज्ञान भी इस मान्यता को मानता है कि मंदिरों, देव-स्थलों, यज्ञ स्थान और मूर्तियों की परिक्रमा से शारीरिक और मानसिक लाभ होता है।

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क्यों करते हैं मंदिर और भगवान की परिक्रमा

सनातन धर्म में पूजा-स्थल और मंदिरों की परिक्रमा लगाना शुभ होता है। हिन्दू धर्म के ग्रंथों के अनुसार, मंदिर और भगवान की परिक्रमा करने से व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा (Positive Energy) प्रवेश करती है। जब इस इस पॉजिटिव एनर्जी को कोई घर लेकर जाते हैं, तो वह ऊर्जा घर में पहुंच जाती है। यह घर में सौभाग्य और सुख-शांति लाता है।

मंदिर और भगवान के एक परिक्रमा 360 डिग्री की होती है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार यह सौरमंडल के सभी नौ ग्रहों, नक्षत्र मंडल के 27 नक्षत्रों और 12 राशियों का प्रतिनिधित्व करता है। मंदिर और देव विग्रह की परिक्रमा से व्यक्ति के ग्रह और नक्षत्र शांत हो जाते हैं और शुभ फल का योग बनाते हैं। व्यक्ति की बुद्धि और मन में निष्ठा और एकाग्रता बढ़ जाती है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान की परिक्रमा करने से व्यक्ति के पाप दूर हो जाते हैं।

शिवलिंग की परिक्रमा आधी क्यों की जाती हैं?

जहां सभी देवी-देवताओं के मंदिरों और उनकी मूर्तियों की पूरी परिक्रमा की जाती हैं, वहीं देवाधिदेव भगवान शिव के मंदिर और उनके शिवलिंग की परिक्रमा अधूरी ही करने की परंपरा है। भगवान शिव के मंदिर और उनके शिवलिंग की पूरी परिक्रमा करना वर्जित माना गया है। आइए जानते हैं, आखिर ऐसी क्या वजह है, जिससे आशुतोष भगवान भोलेनाथ की परिक्रमा आधी ही लगाई जाती है।

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शिवलिंग की आधी परिक्रमा का धार्मिक कारण

हिन्दू धर्मग्रंथों के मुताबिक़, शिवलिंग की आधी परिक्रमा के पीछे धार्मिक कारण है। शिवलिंग भगवान शंकर और देवी पार्वती दोनों का संगम है। यानी, महादेव शिव के प्रतीक चिह्न शिवलिंग को शिव और शक्ति दोनों प्रतीक माना गया है।

जब शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं, तो चढ़ाया हुआ जल जहां से निकलता है, उसे जलाधारी कहते हैं। शिव पुराण में उल्लिखित है कि जलाधारी को लांघना वर्जित है। शिवलिंग का जलाधारी शक्ति-स्वरूपा देवी पार्वती का प्रतीक है। इसे लांघने से व्यक्ति को कई प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। यही कारण है कि शिवलिंग की आधी परिक्रमा लगाई जाती है।

शिवलिंग की सही परिक्रमा लगाने का नियम

आपने गौर किया होगा कि आमतौर पर मंदिर और मूर्ति की परिक्रमा हमेशा दाईं तरफ से बाईं ओर लगाई जाती है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार, शिवलिंग की परिक्रमा का नियम बिलकुल अलग है।

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सनातन धर्मग्रंथों के अनुसार, शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बाईं ओर से आरंभ करनी चाहिए। इसके बाद जब परिक्रमा आधी हो जाए, यानी जलाधारी का मुहाना आ जाए तो उसके बाद अपनी स्थान पर लौट जाना चाहिए।

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