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Navratri Special Temple: इस मंदिर में नहीं है मां की मूर्ति, आंखों पर पट्टी बांधकर भक्त करते हैं पूजा

Navratri Special Temple 2025: शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व आज से शुरू हो गया है। इस वर्ष नवरात्रि 22 सितंबर 2025 से शुरू होकर 1 अक्टूबर 2025 को समाप्त होगी।

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Anjali Pandey
Navratri Special Temple: इस मंदिर में नहीं है मां की मूर्ति, आंखों पर पट्टी बांधकर भक्त करते हैं पूजा

Amba Mata Worship: शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व आज से शुरू हो गया है। इस वर्ष नवरात्रि 22 सितंबर 2025 से शुरू होकर 1 अक्टूबर 2025 को समाप्त होगी। यह पर्व कुल 10 दिनों तक मनाया जाता है और इन दिनों देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि के दौरान देशभर के मंदिरों में भक्तों का तांता देखने को मिलता है, लेकिन राजस्थान और गुजरात की सीमा पर स्थित अम्बाजी मंदिर का महत्व कुछ अलग ही है।

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कहां है ये मंदिर  

[caption id="attachment_899683" align="alignnone" width="767"]publive-image कहां है ये मंदिर  [/caption]

गुजरात का अंबाजी शक्तिपीठ भी उन स्थलों में शामिल है, जहां माता सती का हृदय गिरा था। पुराणों के अनुसार, पहले यह क्षेत्र अंबिका वन के नाम से जाना जाता था। माता सती का हृदय गिरने के कारण यह स्थान अंबाजी माता मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हो गया। अम्बाजी मंदिर माउंट आबू से लगभग 45 किलोमीटर दूर और गुजरात के बनासकांठा जिले में स्थित एक प्राचीन शक्तिपीठ है। यह मंदिर अम्बा माता को समर्पित है और इसे 51 शक्तिपीठों में शामिल किया गया है। अन्य मंदिरों के विपरीत, अम्बाजी मंदिर में देवी की कोई मूर्ति या छवि नहीं है। यहां पूजा का मुख्य केंद्र “श्री विजय यंत्र” है, जिसे मंदिर के देवता के रूप में पूजित किया जाता है। यह यंत्र बेहद पवित्र माना जाता है और कोई भी भक्त नग्न आंखों से इसे सीधे नहीं देख सकता। इसी वजह से यहां भक्तों को आंखों पर पट्टी बांधकर पूजा करनी पड़ती है। साथ ही, मंदिर परिसर में फोटोग्राफी सख्त वर्जित है।

कब से शुरू हुई थी यह प्रक्रिया 

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अम्बाजी मंदिर का जीर्णोद्धार 1975 में शुरू हुआ और यह प्रक्रिया आज भी जारी है। सफेद संगमरमर से निर्मित यह भव्य मंदिर वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व के लिए पर्यटकों और श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है। मंदिर का शिखर 103 फीट ऊंचा है और इसे 358 स्वर्ण भंडारों से सजाया गया है, जो इसे और भी आकर्षक बनाते हैं। मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गब्बर पर्वत पर देवी का एक और प्राचीन मंदिर है।

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भक्तों को चढ़नी पड़ती 999 सीढ़ियां

गब्बर पर्वत पर ही मां अम्बाजी का मूल स्थान माना जाता है। इस चोटी तक पहुंचने के लिए भक्तों को 999 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मान्यता है कि यहां एक पत्थर पर मां के पैरों के निशान बने हुए हैं। अम्बाजी के दर्शन के बाद भक्तों को गब्बर पर्वत पर स्थित मंदिर अवश्य देखने की सलाह दी जाती है। यह स्थान भक्तों के लिए आध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ कठिन साधना का प्रतीक भी है।

हर साल भाद्रवी पूर्णिमा के दिन मंदिर में विशेष मेला आयोजित किया जाता है। इस दिन देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु पैदल चलकर या विभिन्न मार्गों से मंदिर पहुंचते हैं और मां अम्बाजी की पूजा में भाग लेते हैं। नवरात्रि के दौरान मंदिर को दुल्हन की तरह सजाया जाता है और भक्तों के लिए विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। यह त्योहार केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

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किस लिए लोकप्रिय है मंदिर 

अम्बाजी मंदिर की विशिष्टता इसका पवित्र “श्री विजय यंत्र” और मूर्ति रहित पूजा पद्धति है। भक्तों का मानना है कि यंत्र की पूजा से मानसिक शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि आती है। मंदिर के आसपास की प्राकृतिक सुंदरता और पर्वतीय क्षेत्र इसे पर्यटन के लिए भी लोकप्रिय बनाते हैं। माउंट आबू की ठंडी हवा और आसपास के हरियाली भरे वातावरण में नवरात्रि के दिन श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक अनुभव और भी यादगार बन जाता है।

विशेष रूप से, नवरात्रि के दौरान अम्बाजी मंदिर का महत्व बढ़ जाता है। देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु व्रत, भक्ति और साधना के माध्यम से देवी दुर्गा की कृपा पाने के लिए यहां आते हैं। मंदिर का वातावरण भक्तों को मानसिक शांति, ऊर्जा और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। नवरात्रि के दिन मंदिर में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान और पूजा विधियां इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती हैं।

अम्बाजी मंदिर केवल राजस्थान और गुजरात की सीमा पर स्थित एक शक्तिपीठ ही नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा, भक्ति और परंपरा का जीवंत उदाहरण है। नवरात्रि में यहां आने वाले हर भक्त के लिए यह अनुभव आध्यात्मिक उन्नति और मानसिक शांति का प्रतीक बन जाता है।

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