हाइलाइट्स
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दालों और खाद्य तेलों के इम्पोर्ट पर अभी 1 लाख 58 हजार करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं।
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भारत में दाल और तेल इंडोनेशिया, मलेशिया, रूस, यूक्रेन, अर्जेंटीना से इम्पोर्ट होता है।
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आयात को कम करने वर्ष 2018-19 से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-तिलहन संचालित हो रहा है।
Agriculture in Budget 2024: अंतरिम बजट में सीसेम, सूरजमूखी और सरस जैसे तिलहनों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता पर जोर दिया गया है।
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि दालों और खाद्य तेलों के इम्पोर्ट पर अभी 1 लाख 58 हजार करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। ये पैसा भारतीय किसानों को मिलना चाहिए जो विदेशों में जा रहा है।
इन देशों में जा रहा हमारे किसान के हक का पैसा
धान-गेहूं एक्सपोर्ट करके हम जो कमाते हैं उससे अधिक हम दालों और खाद्य तेलों के इम्पोर्ट पर खर्च कर देते हैं। जो पैसा भारतीय किसानों को मिलना चाहिए वो पैसा इंडोनेशिया, मलेशिया, रूस, यूक्रेन, अर्जेंटीना, म्यांमार और मोजांबिक जैसे देशों के किसानों की जेब में जा रहा है।
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लंबे समय तक उपेक्षित रही दलहन और तिलहन फसलें
भारत में दलहन और तिलहन फसलें लंबे समय से उपेक्षित ही रही हैं। तिलहन की खेती बढ़ाने की बजाय इम्पोर्ट का रास्ता ही अपनाया।
जिसका नतीजा यह हुआ कि आज हम इन दालों और खाद्य तेलों को मिलाकर 1 लाख 58 हजार करोड़ रुपये से अधिक रकम खर्च कर रहे हैं।
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पांच साल में 98 लाख मीट्रिक टन बढ़ा उत्पादन
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार 2018-19 में तिलहन फसलों का उत्पादन 315.22 लाख मीट्रिक टन था, जो 2022-23 में बढ़कर 413.55 लाख मीट्रिक टन हो गया है।
यानी पांच साल में 98 लाख मीट्रिक टन उत्पादन बढ़ा लिया है। सरकार अब इसे और बढ़ाने की कोशिश में जुटी हुई है।
पहले से मिशन-तिलहन हो रहा संचालित
केंद्र सरकार तिलहनों के उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि करके खाद्य तेलों के आयात को कम करने के लिए वर्ष 2018-19 से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-तिलहन संचालित कर रही है।
तिलहन फसलों में मूंगफली, सोयाबीन, रेपसीड और सरसों, सूरजमुखी, कुसुम, तिल, नाइजर, अलसी और अरंडी आते हैं।
सरकार ने ऑयल पाम क्षेत्र का विस्तार करके खाद्य तेलों की उपलब्धता बढ़ाने के उद्देश्य से अगस्त 2021 में राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन ऑयल पाम भी शुरू किया है।