अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्थाओं में बहुपक्षीय मंच सहयोग, संवाद और साझा निर्णय लेने के माध्यम बने यह विचार सुनने में तो बेहतर लग सकता है, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि महाशक्तियां बहुपक्षीय मंचों का इस्तेमाल, बहुपक्षीय नाकेबंदी की तरह करने लगी हैं, जहां ताकत और मोर्चाबंदी के संदेश देकर प्रतिद्वंदिता को बढ़ाया जाता है। यह शक्ति प्रदर्शन का एक वैश्विक तरीका भी हो गया है। शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन यानी एससीओ से पुतिन और जिनपिंग ने अमेरिका और यूरोप को यह बताया कि अमेरिकी बादशाहत को चुनौती देने के लिए समांतर व्यवस्था तैयार है।
टैरिफ से भारत परेशान, चीन खुश
जिनपिंग के लिए पश्चिमी खेमा परेशानियां बढ़ाता रहा है और भारत से पश्चिम की नजदीकियां उसे आशंकित करती रही हैं। ट्रम्प के टैरिफ संकट से भारत का परेशान होना चीन को रास आया। लिहाजा भारत के प्रधानमंत्री के लिए रेड कार्पेट भी बिछाया गया और खासकर से उन्हें सवारी भी कराई गई। अब प्रधानमंत्री मोदी की बारी थी, उन्होंने शी जिनपिंग को शानदार स्वागत के लिए धन्यवाद तो दिया, लेकिन इस बहुपक्षीय मंच का इस्तेमाल उन्होंने आईना दिखाने के लिए किया। अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद का जिक्र कई बार किया और भारत के साथ चीन को भी उससे पीड़ित बताया।
पीएम मोदी की जिनपिंग को नसीहत
प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की मौजूदगी में शी जिनपिंग को नसीहत दे डाली की आतंकवाद के आका शैतान पाकिस्तान का पक्ष लेने से कोई फायदा होने वाला नहीं है।ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को मिलने वाली चीनी मदद के खिलाफ इससे बेहतर अभिव्यक्ति नहीं हो सकती थी, जो चीन की भूमि से ही हुई। अब बात शंघाई की थी तो उन्होंने एस का मतलब सुरक्षा बताया और सभी को संप्रभुता के सम्मान की सीख दी। जाहिर है इस बार भारत का निशाना सीधा चीन पर था,जो इस कार्यक्रम का मुख्य आयोजन भी था।
भारत को आपत्ति
गौरतलब है कि चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा यानि सीपेक चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का सबसे अहम हिस्सा है। यह गलियारा काशगर (चीन) से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक लगभग तीन हजार किलोमीटर लंबा है, जिसमें सड़कें, रेलमार्ग, ऊर्जा परियोजनाएं और औद्योगिक कॉरिडोर शामिल हैं।
भारत को इस परियोजना पर कई कारणों से गंभीर आपत्तियां हैं। सीपेक का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र से होकर गुजरता है। यह क्षेत्र भारत का अभिन्न हिस्सा है,जबकि पाकिस्तान ने इस पर अवैध कब्ज़ा कर रखा है। चीन का यहां पर निवेश करना भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय दावे के सीधे उल्लंघन के रूप में देखा जाता है। भारत ने इस कारण चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का बहिष्कार किया है। चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत बताकर अपना दावा करता है। अक्साई चिन क्षेत्र जो लद्दाख का हिस्सा है,इस पर चीन ने 1962 युद्ध के बाद कब्ज़ा कर लिया था,यह भारत की संप्रभुता का सीधा उल्लंघन है। चीन अरुणाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को सामान्य वीज़ा देने के बजाय स्टेपल्ड वीज़ा जारी करता है। इसका सीधा अर्थ है कि वह इन क्षेत्रों को भारत का हिस्सा मानने से इंकार करता है,यह भारत की क्षेत्रीय अखंडता पर उल्लंघन है। संप्रभुता के उल्लंघन पर चीन को खरी-खरी कह कर प्रधानमंत्री ने यह संदेश भी दे दिया की यदि भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करने की चीन कोशिशें करता रहा तो दोनों देशों के संबंध सामान्य होने की बातें इस सम्मिट के साथ ही खत्म हो जाएगी।
भारत ने नहीं छोड़ा मौका
अब शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन की यह पूरी बिसात तो अमेरिका के लिए बिछाई गई थी और भारत इस अवसर को कैसे छोड़ सकता था। डोनाल्ड ट्रम्प ने पारंपरिक अमेरिकी कूटनीति, सहयोग और वैश्विक नेतृत्व की अवधारणा से हटकर अमेरिका फर्स्ट नीति अपनाई है। इस दृष्टिकोण को वर्चस्ववादी शैली कहा जा सकता है,जिसने न केवल अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को चुनौती दी है बल्कि अमेरिका की परंपरागत छवि पर भी सवाल खड़े कर दिए है। ट्रम्प ने संयुक्त राष्ट्र,विश्व व्यापार संगठन और पेरिस जलवायु समझौते जैसे बहुपक्षीय संस्थानों और समझौतों की आलोचना की है। इससे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग कमजोर हुआ और वैश्विक शासन प्रणाली पर अविश्वास बढ़ा है।
पीएम ने ट्रंप को दिखाया आईना
ट्रम्प ने मुक्त व्यापार की जगह संरक्षणवाद पर जोर दिया है तथा चीन और भारत पर ऊंचे आयात शुल्क लगा दिए है। यह नीति विश्व व्यापार के उदारीकरण की अवधारणा को चुनौती देती है,जो अमेरिका के नेतृत्व में ही पनपी थी। ट्रम्प का वर्चस्ववाद बहुपक्षीय संस्थाओं, मुक्त व्यापार और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला है। उन्होंने अमेरिका को वैश्विक नेतृत्वकर्ता की भूमिका से हटाकर,अपने हितों पर केंद्रित राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत किया है। इससे अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में अस्थिरता बढ़ी और यूरोप से एशिया तक नई शक्ति संतुलन की बहस छिड़ गई है। बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रम्प को भी आईना दिखा दिया।
भारत और चीन के बीच अविश्वास काफी गहरा
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक खेल सिद्धांत होता है, ये हमें यह समझने में मदद करता है कि प्रतिस्पर्धी और सहयोगी परिस्थितियों में लोग कैसे निर्णय लेते हैं और उनके सामूहिक परिणाम क्या होते हैं। यह केवल गणितीय मॉडल ही नहीं है, बल्कि राजनीति, अर्थशास्त्र और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में रणनीति बनाने का एक प्रभावी उपकरण भी है। शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन से चीन का शक्ति प्रदर्शन सही समय पर हुआ,पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी को इसमें शामिल करवाकर दोस्ती भी निभाई और क्वाड के कमजोर होने के रणनीतिक संदेश भी दे दिए। प्रधानमंत्री मोदी ने पहलगाम हमलें को घोषणा पत्र का भाग बनाकर भारत की महत्ता को बता दिया। रही बात इस आयोजन के परिणाम की तो अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में यह माना जाता है की यहां कोई भी परिणाम अंतिम नहीं होता। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की प्रकृति ही गतिशील है। इसमें परिणाम कभी अंतिम नहीं होते, क्योंकि यह क्षेत्र हितों,शक्ति-संतुलन और बदलती परिस्थितियों पर आधारित है। यही कारण है कि देशों के बीच संबंध समय-समय पर नए समीकरण गढ़ते हैं। रही बात भारत और चीन की तो दोनों देशों में अविश्वास इतना गहरा है की इसे पाटना इतना आसान नहीं है।
( लेखक विदेशी मामलों के जानकार हैं )