Savitribai Phule Jayanti: पिता ने कहा- पढ़ना लड़कियों के लिए पाप है, उन्होंने देश का पहला गर्ल्स स्कूल ही खोल दिया

नई दिल्ली। 20वीं सदी में महिला शिक्षा और महिला अधिकारों की बात करते हुए आपको कई लोग मिल जाएंगे। लेकिन 19वीं सदी में महिलाओं के अधिकारों, कुरीतियों, अशिक्षा और छुआछूत जैसे कई मुद्दों पर लोग बोलने से कतराते थे। खास कर महिलाएं तो बोलती तक नहीं थी। लेकिन उस दौर में एक महिला थी जो पितृसात्मक समाज को आईना दिखा रही थी। नाम था सावित्री बाई फुले। (Savitribai Phule) उन्होंने महिला शिक्षा के लिए काफी संघर्ष किया.
छोटी सी उम्र में हो गई थी शादी
1831 में सतारा जिले के एक छोटे से गांव, नायगांव में जन्मी सावित्रीबाई फुले की शादी महज 9 साल की छोटी सी उम्र में ज्योतिबा फुले (Jyotirao Phule) के साथ कर दी गई थी। उस वक्त ऐसी शादियां काफी प्रचलित थी। लड़का हो या लड़की सभी की शादियां छोटे उम्र में ही कर दी जाती थी। खासकर लड़कियों को तो उस वक्त शिक्षित भी नहीं किया जाता था। सावित्रीबाई भी शादी होने तक अशिक्षित थी। जबकि उनके पति ज्योतिबा फुले तीसरी कक्षा में पढ़ते थे। सावित्री जब अपने पति को पढ़ते देखती तो उन्हें भी पढ़ने का शौक करता, लेकिन जिस दौर में वो पढ़ने का सपना देख रही थीं, उस वक्त भारत में शिक्षा से दलितों को भी दूर रखा जाता था।
पिता ने कहा पढ़ना लड़कियों के लिए पाप है
एक दिन सावित्रीबाई एक किताब को निहार रही थी। तभी उनके पिता ने दूर से देख लिया। वो दौड़कर पास आए और कहा की ये सब पढ़ाई-बढ़ाई बस उच्च जाति के लोगों के लिए है महिलाओं को पढ़ना पाप है। इसके बाद उन्होंने किताब को घर से बाहर फेंक दिया। सावित्री को को ये बातें दिल पर लग गईं। उन्होंने उस किताब को फिर से घर ले आया और प्रण की कि मैं अब शिक्षा जरूर ग्रहण करूंगी। इस काम में उन्हें साथ मिला अपने पति ज्योतिबा फुले का जिन्होंने सावित्रीबाई को घर पर ही पढ़ाया क्योंकि उस वक्त तक देश में कोई भी गर्ल्स स्कूल नहीं था।
देश में पहला गर्ल्स स्कूल सावित्री बाई ने खोला
महज 17 साल की उम्र में 1848 में सावित्रीबाई फूले ने पुणे में देश का पहला गर्ल्स स्कूल खोला था। उन्होंने लड़कियों के लिए कुल 18 स्कूल खोले। लेकिन उस दौर में उनके लिए ये करना इतना आसान नहीं था। लोग उन्हें काफी परेशान किया करते थे। वो जब भी स्कूल पढ़ाने जाती थी तो उच्च वर्ग के कुछ लोग उन पर गंदगी पेंक देते थे ताकि वो गंदे कपड़े में स्कूल ना जा सके। कभी-कभी तो उन्हें पत्थर भी मारा जाता था। लेकिन फिर भी सावित्रीबाई ने अपने कदम पिछे नहीं किए। उन्होंने इसके लिए भी एक काट निकाल लिया था। वो जब भी स्कूल के लिए निकलती थी अपने थैले में एक साड़ी एक्सट्रा रख लेती थी। जिस दिन उनपर गंदगी फेंकी जाती थी वो साड़ी बदल कर स्कूल पहुंच जाया करती थी। सावित्रीबाई फूले भारत की पहली महिला शिक्षक हैं।
उन्होंने ब्राह्मण महिला के बेटे को गोद लिया
सावित्रीबाई महिला शिक्षा की ही बात नहीं करती थीं। वो उस दौरान हर कुरीतियों के विरूद्ध अपनी आवाज बुलंद कर रही थी। चाहे वो छुआ-छुत हो, सतीप्रथा हो, बाल-विवाह हो या विधवा विवाह। उन्होंने अपने पति ज्योतिबा फूले के साथ मिलकर इन कुरीतियों पर जोरदार प्रहार किया। उन्होंने सिर्फ दलितों के लिए ही चेतना नहीं जगाई, बल्कि एक बार तो एक ब्राह्मण महिला काशीबाई को उन्होंने आत्महत्या करने से रोका। काशीबाई गर्भवती थीं और वो अपने हालात से तंग आकर मौत को गले लगाना चाहती थी। जिसके बाद सावित्रीबाई ने उन्हें अपने घर में ले आया और घर पर ही उनकी डिलीवरी करवाई। जन्में बच्चे को उन्होंने अपने दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया और उन्हें पढ़ा-लिखाकर डॉक्टर बनाया।