Santan Saptami 2024 Date-Tithi-Muhurat-Katha-Puja Vidhi: संतान की लंबी आयु और संतान प्राप्ति के लिए महिलाएं संतान सप्तनी का व्रत रखती हैं।
इस साल संतान सप्तमी व्रत कब रखा जाएगा, अगर इसे लेकर आप भी कंफ्यूज हैं तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि हिन्दू पंचांग (Hindu Panchang) के अनुसार संतान सप्तनी व्रत की सही तिथि(Santan Saptami 2024 Date) क्या है।
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संतान की लंबी आयु के लिए कौन कौन से व्रत होते हैं
ज्योतिषाचार्य पंडित रामगोविंद शास्त्री के अनुसार वैसे तो हिन्दू धर्म (Hindu Dharam) में संतान से जुड़े कई त्योहार आते हैं, लेकिन आप संतान प्राप्ति की कामना लेकर कोई व्रत करना चाहते हैं तो उसके लिए संतान सप्तमी का व्रत (Santan Saptami 2024 Importance) सबसे खास है। यदि आप संतान की दीर्घायु की कामना करते हैं तो इसके लिए हलषष्ठी का व्रत रखा जाता है।
कब है संतान सप्तमी का व्रत(kaise manaye santan saptami)
इस साल संतान सप्तमी का व्रत 10 सितंबर मंगलवार को रखा जाएगा। वो इसलिए क्योंकि वैसे तो सप्तमी तिथि 9 सितंबर को शाम को आ जाएगी, लेकिन उदया तिथि के अनुसार ये व्रत 10 सितंबर को रखा जाएगा, क्योंकि 10 सितंबर को सूर्योदय के समय भी ये तिथि रहेगी।
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संतान सप्तमी मुहूर्त ( Santan Saptami puja muhurat)
संतान सप्तमी दिन: मंगलवार
सप्तमी तिथि प्रारंभ: 9 सितंबर शाम 5 बजे से शुरू होगी।
सप्तमी तिथि समाप्ति: 10 सितंबर को शाम 5:47 बजे तक दिन रहेगी।
संतान सप्तमी की पूजा सामग्री (Santan Saptami puja samgri)
सावन, भादो, क्वांर के महीने में जितने भी व्रत आते हैं उनमें भगवान शिव मां पार्वती और कृष्ण जी की पूजा विशेष रूप से की जाती है। संतान सप्तमी की पूजा (Santan Saptami 2024 katha in Hindi News) में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा होती है।
इस पूजा में शिव जी की पूजा परिवार के साथ की जाती है। इसलिए इनकी या तो प्रतिमा हो या फोटो, किसी को भी लिया जा सकता है।
इसके अलावा है पूजा में लकड़ी की चौकी, कलश, अक्षत, रोली, मौली, केले का पत्ता, श्वेत वस्त्र, फल, फूल ,आम का पल्लव, भोग लगाने के लिए सात-सात पूआ या मीठी पूड़ी, कपूर, लौंग, सुपारी, सुहाग का सामान, चांदी का कड़ा या रेशम का धागा आवश्यक रूप से इसमें शामिल होना चाहिए।
संतान सप्तमी की पूजा विधि (Santan Saptami puja vidhi)
संतान सप्तमी की पूजा के लिए सबसे पहले आप ब्रहृम मुहूर्त में उठकर स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें।
इसके बाद व्रत का संकल्प लेकर दिन की शुरुआत करें।
इसके बाद गुड़ और आटे को मिलाकर सात-सात पुआ, खीर पूजा के लिए तैयार करें।
इसके बाद शिव जी व विष्णु जी की पूजा करें।
निराहार रहते हुए शुद्धता से पूजन का सामान तैयार करें।
फिर गंगाजल से छिड़ककर पूजन स्थल को शुद्ध करें। इसके बाद लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं।
जिस पर शिव परिवार की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें।
इसके सामने कलश की स्थापना करें।
कलश में जल, सुपारी, अक्षत, सिक्का डालकर उस पर आम का पल्लव लगाएं।
जिसके ऊपर एक प्लेट में चावल रखकर एक दीपक उसके ऊपर जला दें।
भगवान को चढ़ाने वाले आटे और गुड़ के 7-7 पुए जिसे महाप्रसाद कहते हैं, इन्हें केले के पत्ते में बांधकर पूजा वाले स्थान पर रख दें।
इसके बाद फल-फूल, धूप दीप से विधिवत पूजा की शुरूआत करें।
पहले चांदी के कड़े को शिव परिवार के सामने रखकर दूध व जल से शुद्ध करके टीका लगाकर भगवान का आशीर्वाद ले लें। इसके बाद चांदी के कड़े को अपने दाहिने हाथ में पहने। इसके बाद संतान सप्तमी व्रत कथा सुने।
चांदी के पुराने कड़े को पूजा के लिए कैसे शुद्ध करते हैं
अगर आप संतान सप्तमी पर पूजा के लिए नया चांदी का कड़ा नहीं खरीद पा रहे हैं तो इसके लिए पुराने कड़े का उपयोग किया जा सकता है। इसके लिए आप पुराने कड़े को गाय के दूध में धो शुद्ध कर सकते हैं।
दोपहर 12:00 बजे के बाद करें पूजा
इस पूजा को दोपहरिया पूजन कहा जाता है। दोपहर में 12 बजे पूजन के साथ व्रत कथा सुने। इसके बाद पूजा के लिए बनाए गए सात-सात पुओं को भगवान को चढ़ाएं। उसमें से सात पूऐ ब्राह्मण को दें। इसके बाद 7 पूए स्वयं प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। इस भोग के साथ ही अपना व्रत खोलें।
संतान सप्तमी व्रत कथा (Santan Saptami vrat katha)
कथा के अनुसार प्राचीन काल में नहुष अयोध्यापुरी का एक प्रतापी राजा था। उस राजा की पत्नी का नाम चंद्रमुखी था। उसके राज्य में ही विष्णुदत्त नामक एक ब्राह्मण रहा करता था। जिसकी पत्नी का नाम रूपवती था। रानी चंद्रमुखी और रूपवती में बहुत गहरा प्रेम था। एक दिन वह दोनों सरयू में स्नान करने गईं। जहां दूसरी स्त्रियां भी स्नान कर रही थीं। उन स्त्रियों द्वारा वहीं पर पार्वती-शिव की प्रतिमा बनाकर विधिपूर्वक उनका पूजन किया।
तब रानी चंद्रमुखी और रूपवती ने उन स्त्रियों से पूजन का नाम तथा विधि के बारे में पूछा। तब एक स्त्री ने बताया, कि यह संतान देने व्रत वाला है। इस व्रत की बारे में सुनकर रानी चंद्रमुखी और रूपवती ने भी इस व्रत को करने का संकल्प किया और शिवजी के नाम का डोरा बांध लिया। परंतु घर पहुंचने पर वह अपने संकल्प को भूल गईं। जिसके कारण मृत्यु के वाद रानी वानरी और ब्राह्मणी मुर्गी की योनि में पैदा हुईं।
कालांतर में दोनों पशु योनि छोड़कर दोबारा मनुष्य योनि में आईं। चंद्रमुखी मथुरा के राजा पृथ्वीनाथ की रानी बनी गई और रूपवती ने फिर एक ब्राह्मण के घर जन्म लिया।
इस जन्म में ईश्वरी नाम से रानी और भूषणा नाम से ब्राह्मणी जानी जाती थी। भूषणा का विवाह राजपुरोहित अग्निमुखी के साथ हुआ। उन दोनों में इस जन्म में भी बहुत प्रेम हो गया। पूर्व जन्म में व्रत भूलने की वजह से इस जन्म में भी रानी की कोई संतान नहीं हुई।
जबकि व्रत को भूषणा ने अब भी याद रखा हुआ था। जिसके कारण भूषणा ने सुन्दर और स्वस्थ आठ पुत्रों ने जन्म दिया। संतान नहीं होने से दुखी रानी ईश्वरी से एक दिन भूषणा मिलने के लिए गई। इस पर रानी के मन में भूषणा को लेकर ईर्ष्या पैदा हो गई और उसने भूषणा बच्चों को मारने का प्रयास किया, परंतु वह बालकों का बाल भी बांका न कर पाई।
इस पर उसने भूषणा को बुलाकर सारी बात बताईं और फिर माफी मांगी और उससे पूछा, कि आखिर तुम्हारे बच्चे मरे क्यों नहीं। भूषणा ने उसे पूर्वजन्म की बात याद दिलाई और साथ ही ये भी कहा कि उसी व्रत के प्रभाव से मेरे पुत्रों को आप चाहकर भी न मार सकीं।
भूषणा के मुख से सारी बात जानने के बाद रानी ईश्वरी ने भी संतान सुख देने वाला यह व्रत विधिपूर्वक किया। तब इस व्रत के प्रभाव से रानी गर्भवती हुईं और एक सुंदर बालक को जन्म दिया। उसी समय से यह व्रत पुत्रप्ति के साथ ही संतान की रक्षा के लिए माना जाता है।
नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारियों पर आधारित हैं। बंसल न्यूज इसकी पुष्टि नहीं करता। अमल में लाने से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर ले लें।
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