Santan Saptami 2023: संतान की लंबी आयु और स्वास्थ्य की कामना के लिए किया जाने वाला संतान सप्तमी के व्रत को लेकर यदि आप भी कंफ्यूज हैं तो आपको बता दें ये आज और कल दोनों ही दिन रखा जा सकता है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार संतान सप्तमी गुरूवार को दोपहर में शुरू होकर शुक्रवार को दोपहर तक रहेगी।
इस दिन मनाएंगे संतान सप्तमी (kaise manaye santan saptami)
ज्योतिषाचार्य पंडित राम गोविंद शास्त्री के अनुसार इस बार संतान सप्तमी का त्योहार गुरूवार और शुक्रवार दोनों दिन मनाया जाएगा। ऐसा इसलिए होगा क्योकि शुक्रवार को दोपहर सप्तमी तिथि मिनट तक षष्ठी तिथि है इसके तुरंत बाद सप्तमी तिथि लग जाएगी। यानि मध्यांत व्यापनी तिथि में आने के कारण इस बार सप्तमी शुक्रवार को दोपहर 1ः35 बजे तक मनाई जा सकती है। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को संतान सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह 21 और 22 सितंबर को किया जाएगा। इसे माता पिता अपनी संतान के सुख समृद्धि व रक्षा के लिए रखते हैं।
ये है मुहूर्त ( Santan Saptami puja muhurat)
सप्तमी तिथि प्रारंभ: 21 सितंबर दोपहर 2:14 मिनट पर शुरू होगी।
सप्तमी तिथि समाप्ति: 22 सितंबर को दोपहर 1ः35 बजे तक दिन रहेगी।
संतान सप्तमी की पूजन सामग्री Santan Saptami puja samgri
शिव जी की परिवार प्रतिमा अवश्य होना चाहिए। इसके अलावा लकड़ी की चौकी, कलश, अक्षत, रोली, मौली, केले का पत्ता, श्वेत वस्त्र, फल, फूल ,आम का पल्लव, भोग लगाने के लिए सात-सात पूआ या मीठी पूड़ी, कपूर, लौंग, सुपारी, सुहाग का सामान, चांदी का कड़ा या रेशम का धागा आवश्यक रूप से इसमें शामिल होना चाहिए।
ये रही पूजन विधि ( Santan Saptami puja vidhi)
ब्रहृम मुहूर्त में उठकर स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें। इसके बाद शिव जी व विष्णु जी की पूजा करें। तत्पश्चात संतान सप्तमी व्रत तथा पूजन का संकल्प लें। निराहार रहते हुए शुद्धता से पूजन का सामान तैयार करें। इस पूजन में गुड़ से बने सात पुआ, खीर। फिर गंगाजल से छिड़ककर पूजन स्थल को शुद्ध करें। इसके बाद लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं।
जिस पर शिव परिवार की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें।
इसके सामने कलश की स्थापना करें। कलश में जल, सुपारी, अक्षत,1 रुपए का सिक्का, डालकर उस पर आम का पल्लव लगाएं। जिसके ऊपर एक प्लेट में चावल रखकर एक दीपक उसके ऊपर जला दें। फिर भगवान को चढ़ाने वाले आटे और गुड़ के 7-7 पुए जिसे महाप्रसाद कहते हैं, इन्हें केले के पत्ते में बांधकर वहां पर रख दें।
इसके बाद फल-फूल, धूप दीप से विधिवत पूजन करते हुए पूजा की शुरूआत करें। यदि चांदी की नया कड़ा बनवाया है तो ठीक है, यदि पुराना उपयोग कर रहे हैं तो पहले चांदी के कड़े को शिव परिवार के सामने रखकर दूध व जल से शुद्ध करके टीका लगाकर भगवान का आशीर्वाद ले लें। इसके बाद चांदी के कड़े को अपने दाहिने हाथ में पहने। इसके बाद संतान सप्तमी व्रत कथा सुने।
दोपहर 12:00 बजे के बाद करें पूजा
पूजन के साथ व्रत कथा सुनने के बाद पूजा के लिए बनाए गए सात-सात पुओं को भगवान को चढ़ाएं। उसमें से सात पूयें ब्राह्मण को दें। इसके बाद 7 पूयें स्वयं प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। इस भोग के साथ ही अपना व्रत तोड़ें।
संतान सप्तमी व्रत कथा Santan Saptami vrat katha
कथा के अनुसार प्राचीन काल में नहुष अयोध्यापुरी का एक प्रतापी राजा था। उस राजा की पत्नी का नाम चंद्रमुखी था। उसके राज्य में ही विष्णुदत्त नामक एक ब्राह्मण रहा करता थाए जिसकी पत्नी का नाम रूपवती था। रानी चंद्रमुखी और रूपवती में बहुत गहरा प्रेम था। एक दिन वह दोनों सरयू में स्नान करने गईं। जहां दूसरी स्त्रियां भी स्नान कर रही थीं। उन स्त्रियों द्वारा वहीं पर पार्वती-शिव की प्रतिमा बनाकर विधिपूर्वक उनका पूजन किया।
तब रानी चंद्रमुखी और रूपवती ने उन स्त्रियों से पूजन का नाम तथा विधि के बारे में पूछा। तब एक स्त्री ने बताया कि यह संतान देने व्रत वाला है। इस व्रत की बारे में सुनकर रानी चंद्रमुखी और रूपवती ने भी इस व्रत को करने का संकल्प किया और शिवजी के नाम का डोरा बांध लिया। परंतु घर पहुंचने पर वह अपने संकल्प को भूल गईं। जिसके कारण मृत्यु के वाद रानी वानरी और ब्राह्मणी मुर्गी की योनि में पैदा हुईं।
कालांतर में दोनों पशु योनि छोड़कर दोबारा मनुष्य योनि में आईं। चंद्रमुखी मथुरा के राजा पृथ्वीनाथ की रानी बनी गई और रूपवती ने फिर एक ब्राह्मण के घर जन्म लिया। इस जन्म में ईश्वरी नाम से रानी और भूषणा नाम से ब्राह्मणी जानी जाती थी। भूषणा का विवाह राजपुरोहित अग्निमुखी के साथ हुआ। उन दोनों में इस जन्म में भी बहुत प्रेम हो गया। पूर्व जन्म में व्रत भूलने की वजह से इस जन्म में भी रानी की कोई संतान नहीं हुई।
जबकि व्रत को भूषणा ने अब भी याद रखा हुआ था। जिसके कारण भूषणा ने सुन्दर और स्वस्थ आठ पुत्रों ने जन्म दिया। संतान नहीं होने से दुखी रानी ईश्वरी से एक दिन भूषणा मिलने के लिए गई। इस पर रानी के मन में भूषणा को लेकर ईर्ष्या पैदा हो गई और उसने भूषणा बच्चों को मारने का प्रयास किया। परंतु वह बालकों का बाल भी बांका न कर पाई।
इस पर उसने भूषणा को बुलाकर सारी बात बताईं और फिर माफी मांगी और उससे पूछा कि आखिर तुम्हारे बच्चे मरे क्यों नहीं। भूषणा ने उसे पूर्वजन्म की बात याद करवाई और साथ ही ये भी कहा कि उसी व्रत के प्रभाव से मेरे पुत्रों को आप चाहकर भी न मार सकीं। भूषणा के मुख से सारी बात जानने के बाद रानी ईश्वरी ने भी संतान सुख देने वाला यह व्रत विधिपूर्वक किया। तब इस व्रत के प्रभाव से रानी गर्भवती हुई और एक सुंदर बालक को जन्म दिया। उसी समय से यह व्रत पुत्रण्प्राप्ति के साथ ही संतान की रक्षा के लिए माना जाता है।
नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारियों पर आधारित हैं। बंसल न्यूज इसकी पुष्टि नहीं करता। अमल में लाने से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर ले लें।
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