Sambhal Mandir Story: उत्तरप्रदेश के संभल के श्री कार्तिक महादेव मंदिर (भस्म शंकर मंदिर) में मंगलवार, 17 दिसंबर की सुबह पहली आरती की गई। मंदिर में भक्तों ने भगवान शिव की आरती करने के बाद हनुमान जी की पूजा- अर्चना की और हनुमान चालीसा का पाठ किया। मंदिर में 46 साल के अंतराल बाद सुबह की पहली आरती हुई है।
क्या हुआ था 46 साल पहले?
29 मार्च 1978 को याद करते ही संभल का हर इंसान सहम उठता है। आरोप है कि डिग्री कॉलेज में सदस्यता न मिलने पर मंजर शफी ने खौफनाक साजिश रची और साथियों संग मिलकर जिले को दंगे की आग में झोंक दिया। एक दर्जन के करीब हिंदुओं को जान गंवानी पड़ी। दो महीने तक जिले में कर्फ्यू लगा रहा। 169 केस दर्ज किए गए। बाद में खुफिया विभाग ने दंगे पर एक गोपनीय रिपोर्ट तैयार की।
क्या था गोपनीय रिपोर्ट में ?
इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 1978 में संभल नगरपालिका कार्यालय के पास महात्मा गांधी मेमोरियल डिग्री कॉलेज हुआ करता था। कॉलेज के संविधान के अनुसार मैनेजमेंट कमेटी 10 हजार रुपए दान लेकर संस्था का लाइफटाइम मेम्बर बना सकती थी। मुस्लिम समुदाय में दबदबा कखने वाले मंजर शफी, कॉलेज मैनेजमेंट कमेटी में लाइफटाइम मेम्बर बनना चाहते थे। इस बीच ट्रक यूनियन की तरफ से कॉलेज को 10 हजार का रुपए का चेक दिया गया। इस पर मंजर शफी के साइन थे। शफी के दावे पर ट्रक यूनियन के पदाधिकारियों ने ये लिखित में दे दिया कि उनकी ओर से किसी को इसके लिए अधिकृत नहीं किया गया है। इस पर कॉलेज की मैनेजिंग कमेटी के उपाध्यक्ष (जो उस समय एसडीएम के पद पर भी थे) ने शफी को मेम्बर नहीं बनाया। इसके बाद आरोप-प्रत्यारोप के साथ तल्खी शुरू हो गई।
ऐसे शुरू हुआ दंगा
25 मार्च को होली के समय दो स्थानों पर दोनों संप्रदायों में तनाव बढ़ गया। एक होली जलने के स्थान पर खोखा बना लिया गया तो दूसरी जगह चबूतरा बना लिया गया। फिर किसी तरह बातचीत कर मामला कंट्रोल में आया। तीन दिन बाद 28 मार्च को कॉलेज में स्टूडेंट्स को उपाधि दिए जाने का प्रोग्राम था। उसी दिन कुछ मुस्लिम छात्राएं प्राचार्य से मिलीं और उपाधियों को आपत्तिजनक बताया। मामला बढ़ा तो फिर 29 मार्च को घेराव हुआ और इसमें अराजक तत्व शामिल हो गए। आरोप है कि इसमें मंजर शफी भी पहुंचे। अचानक बाजार बंद कराया जाने लगा। इसी बीच तेजी से अफवाह फैली कि मंजर शफी को मार दिया गया है। मस्जिद तोड़ी जा रही है और फिर देखते- देखते ही दंगा फैल गया।
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ऐसे मंदिर का पता चला
दंगे की वजह से मुस्लिम बाहुल्य इलाके से हिंदू परिवार पलायन करने लगे। औने-पौने दामों में मकान बेचने लगे। कुछ दिनों में ही पूरे क्षेत्र से सभी हिंदू छोड़ कर चले गए। खग्गू सराय निवासी 82 साल के विष्णु शंकर रस्तोगी ने बताया कि कार्तिक महादेव मंदिर रस्तोगी समाज का था। 1978 के दंगों के बाद यहां जो 40-45 रस्तोगी परिवार के लोग रह रहे थे वो यहां से मंदिर बंद करके चले गए थे।
वर्तमान में संभल के डीएम डॉ. राजेंद्र पेन्सिया ने बताया कि इस इलाके में बिजली चोरी की घटनाएं बहुत हो रही थीं। इस इलाके में लोग घुसते नहीं थे। जब हम यहां पर आए तो हमें यहां एक मंदिर मिला। इसे हम साफ करवा रहे हैं। यहां पर एक कुआं भी मिला है, जिसके ऊपर रैंप बनाया गया था। किसी ने हमें बताया कि रैंप के नीचे कुआं है, तो हमने उसे हटवाया। इसके बाद हमें नीचे कुआं मिला। पूरे संभल में सभी जाति धर्म के लोग रहते हैं, लेकिन यहां (दीपा सराय) पर केवल मुस्लिम आबादी है। हम मंदिर की सफाई करवा रहे हैं। यह जिस समाज का मंदिर है, उसे हम सौंपेंगे। वह जैसा इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं, वैसा कर सकते हैं। कब्जा करने वाले लोगों को भूमाफिया के रूप में मार्क करेंगे।
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