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विजयादशमी उत्सव में बोले मोहन भागवत: निर्भरता मजबूरी न बने, पहलगाम हमले से दोस्त-दुश्मनों का पता चला

RSS Vijayadashami 2025: नागपुर में विजयादशमी उत्सव पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पहलगाम आतंकी हमले, राष्ट्रीय सुरक्षा, नक्सलवाद, स्वदेशी, युवाओं की देशभक्ति और समाज परिवर्तन पर विस्तार से अपने विचार रखे।

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anjali pandey
विजयादशमी उत्सव में बोले मोहन भागवत: निर्भरता मजबूरी न बने, पहलगाम हमले से दोस्त-दुश्मनों का पता चला

RSS Vijayadashami 2025: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने इस बार विजयादशमी उत्सव और अपने स्थापना शताब्दी वर्ष के अवसर पर नागपुर के रेशमबाग मैदान में भव्य रूप से कार्यक्रम आयोजित किया। इस कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे। परंपरा के अनुसार उत्सव की शुरुआत संघ प्रमुख मोहन भागवत की शस्त्र पूजा से हुई।

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मोहन भागवत ने कही ये बात

अपने संबोधन में मोहन भागवत ने सबसे पहले पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इस घटना में आतंकियों ने धर्म पूछकर हिंदुओं की हत्या की, लेकिन हमारी सेना और सरकार ने पूरी तैयारी के साथ उसका सख्त जवाब दिया। भागवत ने कहा कि इस हमले ने हमें यह सिखाया कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में हमें हमेशा सतर्क रहना चाहिए और यह समझना होगा कि कौन दोस्त है और कौन दुश्मन। उन्होंने कहा कि हमारी सेना का शौर्य पूरी दुनिया ने देखा है और इसी से यह संदेश जाता है कि भारत अपनी सुरक्षा के प्रति सजग और समर्थ है।

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संघ प्रमुख ने जोर देकर कहा कि हम सबके प्रति मित्रभाव रखते हैं और आगे भी रखेंगे, लेकिन अपनी सुरक्षा के प्रति लापरवाह नहीं हो सकते। उन्होंने नक्सलवाद का भी उल्लेख किया और कहा कि शासन-प्रशासन की कठोर कार्रवाई से नक्सल गतिविधियां काफी हद तक कमजोर हुई हैं। उन्होंने चेताया कि किसी भी प्रकार के उग्रवाद को पनपने नहीं देना है। साथ ही उन्होंने वैश्विक उथल-पुथल, पड़ोसी देशों में हिंसक आंदोलनों और अराजकता की ओर इशारा करते हुए कहा कि हिंसा कभी भी स्थायी परिवर्तन का रास्ता नहीं हो सकती।

अमेरिका के टैरिफ पर बोले मोहन भागवत

मोहन भागवत ने आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि अमेरिका के टैरिफ जैसे फैसले हमें यह सिखाते हैं कि भारत को आत्मनिर्भर और स्वदेशी उत्पादन पर आधारित बनाना होगा। उन्होंने कहा कि किसी भी देश की मजबूरी उसकी निर्भरता से पैदा होती है, और हमें यह गलती नहीं दोहरानी चाहिए। उन्होंने फ्रांस की क्रांति का उदाहरण देते हुए कहा कि कई बार क्रांतियां निरंकुशता में बदल जाती हैं, इसलिए बदलाव का रास्ता अहिंसा और धैर्यपूर्ण होना चाहिए।

उन्होंने समाज और व्यवस्था पर भी अपने विचार रखे। भागवत ने कहा कि समाज जैसा होता है, वैसी ही व्यवस्थाएं चलती हैं। यदि हमें व्यवस्था में सुधार चाहिए तो समाज के आचरण में बदलाव लाना होगा। व्यक्ति के परिवर्तन से समाज में परिवर्तन आता है और समाज में बदलाव से ही व्यवस्था बदलती है। इसी क्रम से दुनिया में व्यापक परिवर्तन लाया जा सकता है।

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युवाओं में देशभक्ति की भावना पहले से अधिक-मोहन भागवत

युवाओं के विषय में उन्होंने कहा कि आज भारत के युवाओं में देशभक्ति की भावना पहले से कहीं अधिक प्रबल हुई है। पूरी दुनिया भारत की ओर उम्मीद से देख रही है। उन्होंने कहा कि एकदम से बड़ा मोड़ लेने पर गाड़ी पलट सकती है, इसलिए हमें धीरे-धीरे, छोटे-छोटे बदलावों के जरिए आगे बढ़ना होगा। भारत की जिम्मेदारी है कि वह पूरी दुनिया को सृष्टि की रक्षा करने वाला धर्ममार्ग दिखाए।

Gen Z प्रदर्शनों पर बोले मोहन भागवत

मोहन भागवत ने भारत के पड़ोसी देशों में हो रही अशांति की घटनाओं पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि जब कोई सरकार जनता और उनकी समस्याओं से दूर रहती है, तो असंतोष पैदा होता है और उसके खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो जाते हैं। हालांकि, भागवत ने यह भी स्पष्ट किया कि हिंसक प्रदर्शन कभी भी किसी के लिए फायदेमंद नहीं होते। उन्होंने हाल ही में नेपाल में हुए Gen Z आंदोलन का उदाहरण दिया, जिसमें युवाओं ने सरकार के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन किए थे।

मोहन भागवत ने अपने भाषण में कहा, श्रीलंका में, फिर बांग्लादेश में और हाल ही में नेपाल में हमने ऐसे हालात देखे हैं। जब प्रशासन जनता से दूर रहता है, संवेदनशील नहीं होता और उनकी स्थिति को ध्यान में रखकर नीतियां नहीं बनाता, तो असंतोष बढ़ता है। लेकिन उस असंतोष को हिंसा के जरिए व्यक्त करना किसी के भी हित में नहीं है।

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उन्होंने इतिहास का उदाहरण देते हुए कहा कि दुनिया में अब तक जितनी भी तथाकथित क्रांतियां हुईं, वे अपने उद्देश्यों को पूरा करने में असफल रही हैं। उन्होंने फ्रांस की क्रांति का जिक्र करते हुए कहा कि राजा के खिलाफ आंदोलन तो हुआ, लेकिन परिणामस्वरूप नेपोलियन बादशाह बन गया और वही व्यवस्था कायम रही। इसी तरह, जितनी भी साम्यवादी क्रांतियां हुईं, आज वे सभी देश पूंजीवादी व्यवस्था पर चल रहे हैं।

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