नई दिल्ली। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि स्मार्टफोन से कैंसर का खतरा है। अगर मनुष्य लगातर 10 साल तक हर रोज 17 मिनट तक मोबाइल का इस्तेमाल करता है तो उसमें कैंसर की गांठ बनने का खतरा है। वैज्ञानिकों ने इस दावे को मोबाइल फोन और इंसान की सेहत से जुड़ी 46 तरह की रिसर्च के विश्लेषण के बाद किया है।
रेडिएशन DNA को डैमेज कर रहा है
रिसर्च का विश्लेषण कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया है। उनका कहना है कि, मोबाइल सिग्नल से निकलने वाला रेडिएशन शरीर में स्ट्रेस प्रोटीन को बढ़ाता है जो DNA को डैमेज करता है। शोधकर्ताओं ने अमेरिका, स्वीडन, ब्रिटेन, साउथ कोरिया, न्यूजीलैंड और जापान हुए रिसर्च के आधार पर यह दावा किया है। रिसर्च के अनुसार, दुनियाभर में तेजी से मोबाइल फोन यूजर्स बढ़े हैं। बतादें कि 2011 तक 87 फीसदी घरों में केवल एक ही मोबाइल फोन था। लेकिन 2020 तक औसतन 1 परिवार में तीन मोबाइल फोन इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
मोबाइल फोन का कम करें इस्तेमाल
शोधकर्ता जोएल मॉस्को विट्स का कहना है कि लोगों को मोबाइल फोन का इस्तेमाल कम करना चाहिए। खासकर मोबाइल को अपने शरीर से दूर ही रखना चाहिए जितना हो सके लैंडलाइन का इस्तेमाल करना चाहिए। हालांकि कई जानकार, ‘मोबाइल फोन के इस्तेमाल से कैंसर होता है’ इस चीज को विवादास्पद मानते हैं। वहीं इस चीज को लेकर मॉस्कोविट्ज कहते हैं कि वायरसलेस डिवाइस रेडिएशन एनर्जी को अधिक एक्टिव बनाती है।
अमेरिका ने 1990 में रिसर्च फंडिंग पर लगा दी थी रोक
ऐसा होने पर कोशिकाओं के काम करने के रास्ते में बाधा पैदा होती है। इस कारण से शरीर में स्ट्रेस प्रोटीन और फ्री-रेडिकल्स बनते हैं। इससे DNA भी डैमेज हो सकता है। साथ ही मौत का भी खतरा बना रहता है। बतादें कि रेडियोफ्रीक्वेंसी रेडिएशन का सेहत पर क्या असर होता है इस विषय पर ज्यादा रिसर्च नहीं हो पाया है। क्योंकि अमेरिकी सरकार ने 1990 में ही रिसर्च के लिए दी जाने वाली फंडिंग पर रोक लगा दी थी। लेकिन साल 2018 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायर्नमेंटल हेल्थ साइंस की रिसर्च में ये सबूत मिले थे कि मोबाइल फोन के रडिएशन से कैंसर हो सकता है। हालांकि, तब एफडीए ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इस शोध को इंसानों पर नहीं अप्लाय किया जा सकता ।