नई दिल्ली। उड़ीसा के साथ Rath Yatraही देश के कई राज्यों में भगवान जगन्नाथ स्वामी की रथयात्रा आज निकाली जाएगी। आपको बता दें उड़ीसा की रथयात्रा देश ही Jagannath Rath Yatra 2022 नहीं पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। उड़ीसा में निकलने वाली इस यात्रा में भगवान अपनी मौसी के घर जाएंगे। यहां 15 दिन आराम करके फिर इनकी वापसी होगी। इस दौरान ये सेवादारों के अलावा भक्तों को दर्शन नहीं देते।
15 दिन बाद भगवान की वापसी होगी। पर ये यात्रा क्यों Jagannath Rath Yatra 2022 निकाली जाती है। इससे जुड़ी कुछ जरूरी बातें हैं जो आपको पता होनी चाहिए। अगर आप भी जगत के नाथ की रथ यात्रा का हिस्सा बनने का प्लान बना रहे हैं, तो इससे पहले इससे जुड़ी इन खास बातों को एक बार आपको जान लेना चाहिए। जानें इस यात्रा से जुड़ी कुछ रोचक बातें…
चार धामों में से एक है जगन्नाथ यात्रा —
हमारे हिन्दू धर्म में चार धाम यात्रा का विशेष महत्व होता है। इन्हीं में से एक है चारों धाम यात्रा। यह यात्रा भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। इस धाम से हर साल रथयात्रा निकाली जाती है, जिसे जगन्नाथ रथयात्रा के नाम से जाना जाता है। आपको बता दें इस साल इस यात्रा की रथयात्रा 1 जुलाई से शुरू हो रही है। (Jagannath Rath Yatra) ऐसा माना जाता है कि इसमें शामिल होने मात्र से सभी तीर्थों का पुण्य मिल जाता है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आयोजित होने वाली इस यात्रा से जुड़ी खास बातें आपको भी जानना जरूरी है।
तीन रथ होते हैं तैयार —
इस यात्रा में भगवान श्री कृष्ण बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ शामिल होते हैं। इस रथ यात्रा के लिए तीन पवित्र रथों को तैयार किया जाता है।इतना ही नहीं इनके रंग भी अलग—अलग होते हैं। आपको बता दें भगवान श्री कृष्ण के रथ का रंग हमेशा पीला या लाल होता है। उनके रथ को गरुड़ध्वज कहा जाता है। तो वहीं बलराम जी के रथ का रंग लाल और हरा होता है, जिसे तालध्वज कहते हैं। इन दोनों के अलावा बहन सुभद्रा जी के रथ का रंग काला या नीला रखा जाता है।
मौसी के घर जाते हैं भगवान जगन्नाथ
पुराने समय से ये मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के जरिए अपनी मौसी के मंदिर जाते हैं। रथयात्रा को गुंडीचा मंदिर तक ले जाया जाता है. कहते हैं कि तीनों देव और देवी यहां आकर आराम करते हैं। यहां आकर भी श्रद्धालु भगवान श्री कृष्ण की आराधना में लीन हो जाते हैं। भगवान श्री कृष्ण की जगन्नाथ यात्रा आषाढ़ माह की द्वितीय तिथि से शुरू होती है। जिसके बाद भगवान शुल्क पक्ष के 11वें दिन वे अपने द्वार लौट आते हैं।
सोने की झाड़ू से रास्ता होता है साफ —
आपको बता दें यात्रा के शुरू होने पर गजपति राजा यहां आकर रथयात्रा की शुरुआत करते हैं। इतना ही नहीं सोने की झाड़ू से भगवान के जाने तक का रास्ता साफ करते हैं। लेकिन यात्रा की सबसे क्या आपको पता है कि यात्रा के समाप्त होने के बाद भी कुछ दिनों तक भगवानों की प्रतिमाएं रथों में ही स्थापित रहती हैं। भगवान श्री कृष्ण, बलराम जी और देवी सुभद्रा जी के लिए मंदिर के द्वार एकादशी पर खोले जाते हैं। प्रतिमाओं को यहां लाने के बाद स्नान कराया जाता है और विधि के तहत पूजा-पाठ किया जाता है।
भगवान जगन्नाथ का हुआ था जन्म —
आपको बता दें स्नान पूर्णिमा को ज्येष्ठ पूर्णिमा भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान जगन्नाथ का जन्म हुआ था। भगवान जगन्नाथ को भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रत्नसिंहासन से उतार कर पास में बने स्नान मंडप में ले जाते हैं। यही वो स्थान है जहां स्नान कक्ष में ले जाने के बाद 15 दिनों के लिए भगवान को विशेष कक्ष में रखा जाता है। ये वो समय अवधि है जहां भगवान 15 दिनों तक सेवकों के अलावा किसी को दर्शन नहीं देते हैं। इतना ही नहीं 15 दिन के बाद जब भगवान कक्ष से बाहर आते हैं तो भक्तों को दर्शन देते हैं। इसी के बाद अगले दिन भगवान भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं।
ऐसा कुआं, जो साल में खुलता है एक बार –
ऐसी मान्यता है कि जिस कुए के पानी से भगवान जगन्नाथ स्वामी को स्नान कराया जाता है वो साल में एक बार खुलता है।
इतना ही नहीं यहां 108 घड़ों के पानी से भगवान को स्नान कराया जाता है।
हर साल नीम की लकड़ियों से भगवान की प्रतिमा बनाई जाती है।
भगवान जगन्नाथ के साथ बलराम और सुभद्रा की भी प्रतिमा नीम की लकड़ियों से ही बनाई जाती है।
भगवान जगन्नाथ के रथ की ऊंचाई 45.6 फुट होती है। जिसे नंदीघोष भी कहा जाता है।
बलराम के रथ का नाम ताल ध्वज और सुभद्रा के रथ का नाम दर्पदलन रथ होता है।
भगवान जगन्नाथ स्वामी के रथ का निर्माण कार्य अक्षय तृतीया से शुरू हो जाता है। जो आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि तक पूरी तरह से तैयार हो जाता है।