Rath Yatra 2023: ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथजी का मंदिर सारी दुनिया में प्रसिद्ध है। भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित यह मंदिर हिन्दुओं के प्रमुख चार धाम में से एक है। भगवान श्रीकृष्ण को यहां श्री जगन्नाथ के नाम से पूजा जाता है। जगन्नाथ का अर्थ है- संसार का स्वामी।
जगन्नाथ पुरी का महत्व
कहते हैं, जीवन में हर हिन्दू को कम-से-कम एकबार जगन्नाथ पुरी की तीर्थयात्रा कर उनका दर्शन अवश्य करना चाहिए। मान्यता है कि उनके दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि इस हर साल लाखों भक्त मंदिर में उनके दिव्य रूप के दर्शन के लिए आते हैं।
पुरी रथयात्रा कब मनाया जाता है?
जगन्नाथ पुरी का एक मुख्य आकर्षण यहां की रथयात्रा है। यह रथयात्रा दुनिया की सबसे प्राचीन रथ यात्राओं में से एक है। यह हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन निकाली जाती है। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार यह जुलाई महीने (Rath Yatra 2023) में पड़ता है।
साल 2023 में यह रथयात्रा महोत्सव (Rath Yatra 2023) 20 जून दिन मंगलवार को शुरू होकर अगले 10 दिनों तक चलेगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की ग्यारस के दिन समाप्त होता है। इस दौरान पुरी में लाखों की संख्या में श्रद्धालु भक्त और लोग आते हैं और इस महा-आयोजन का हिस्सा बनते हैं।
पुरी रथयात्रा का आयोजन
रथयात्रा महोत्सव के दिन भगवन कृष्ण, उसके बड़े भाई बलराम और उनकी बहन सुभद्रा को तीन अलग-अलग रथों में बैठाकर गुंडीचा मंदिर ले जाया जाता है। तीनों रथों को भव्य रूप से सजाया जाता है। इसकी तैयारियां महीनों पहले से शुरू हो जाती हैं।
विशेष लकड़ी का उपयोग
रथ के निर्माण में नीम के पेड़ की एक विशेष लकड़ी का उपयोग किया जाता है। इस ख़ास लकड़ी को दारु कहा जाता है। इस लकड़ी के चयन के लिए खास समिति का गठन किया जाता है जो वृक्षों का चयन करती है और फिर उसे रथ निर्माण के लिए भेजती है।
रथयात्रा महोत्सव
गुंडीचा मंदिर पहुंचने के अगले दिन तीनों प्रतिमाओं को मंदिर में स्थापित किया जाता है। फिर एकादशी तक वे वहीं रहते है। इस दौरान पुरी में भव्य और विशाल मेला लगता है। तरह तरह के आयोजन होते है। महाप्रसाद की वितरण होता है।
एकादशी के दिन जब रथों को वापस लाया जाता है, तो उस दिन भी भगवान के जयघोष से पुरी गुंजायमान हो जाती है। इस दिन को बहुड़ा कहते हैं। इसके बाद भगवान जगन्नाथ सहित सभी प्रतिमाओं मंदिर के गर्भ में स्थापित कर दी जाती हैं।
विदेशों में रथयात्रा का आयोजन
आपको बता दें, साल में केवल एकबार ही प्रतिमाओं को उनकी जगह से उठाया जाता है। भारत में रथयात्रा का आयोजन 100 से भी ज्यादा नगरों और कस्बों में होता है। केवल यही नहीं, भारत से बाहर विदेशी शहरों में भी इसका आयोजन होता है। जिसमें डबलिन, लन्दन, मेलबर्न, पेरिस, न्यूयॉर्क, सिंगापूर, टोरेन्टो, मलेशिया मुख्य कैलिफ़ोर्निया मुख्य हैं। इसके अलावा बांग्लादेश में भी रथयात्रा का बहुत बड़ा आयोजन होता है।
रथयात्रा को स्नान यात्रा भी कहते हैं
धार्मिक अनुष्ठानों के अनुसार भगवान जगन्नाथ को ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा पर 108 घड़ों से स्नान करवाया जाता है। सबसे खास बात यह है कि स्नान के लिए जिस कुएं से जल निकाला जाता, वह साल में सिर्फ एक बार ही खुलता है। मान्यता है कि स्नान के बाद के बाद भगवान अस्वस्थ हो जाते हैं। इसलिए इस यात्रा को स्नान यात्रा भी कहा जाता है। इसके बाद भगवान 15 दिन के लिए एकांतवास पर चले जाते हैं।
पुरी रथयात्रा का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिषीय रूप से जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा का संबंध बृहस्पति ग्रह से जुड़ा है। बृहस्पति ज्ञान, ध्यान और समृद्धि के प्रतीक हैं। जगन्नाथ रथयात्रा के दौरान लोग भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और देवी सुभद्रा को उनके मंदिर से बाहर निकालते हैं और रथ पर बिठा कर उनको भ्रमण पर ले जाते हैं। मान्यता है कि यह बृहस्पति ग्रह की गति का प्रतिनिधित्व करता है।
एक और ज्योतिषीय संबंध यह है कि यह त्योहार चातुर्मास की शुरुआत का प्रतीक है। चातुर्मास चार महीने की अवधि का होता है। इसका आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि इस दौरान भगवान विष्णु नींद की स्थिति में प्रवेश करते हैं। उनके भक्त उनके जागने तक उनकी आराधना और तपस्या में लीन रहते हैं।
जगन्नाथ रथयात्रा का धार्मिक महत्व
जगन्नाथ रथयात्रा का ज्योतिषीय महत्व से भी अधिक धार्मिक महत्व है। पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार भगवान श्री जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर देखने की इच्छा जाहिर की। जिसके बाद जगन्नाथ भगवान ने अपने भाई बलभद्र (बलराम) के साथ उन्हें रथ पर बैठाकर, पूरे नगर के लिए निकल पड़े। माना जाता है कि तब से इस रथयात्रा को निकालने की परंपरा चली आ रही है।
मान्यता है कि रथयात्रा आयोजन के दौरान जो भी व्यक्ति उनके रथ की रस्सी को खींचता और छूता है। उसके इस जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। वह मोक्ष प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है।
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