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Rat Hole Mining: उत्तराखंड के उत्तरकाशी सिलक्यारा टनल में फंसे मजदूरों के मामले में हर किसी को मजदूरों के निकलने का इंतजार है। वहीं पर रेस्क्यू में दुनियाभर की फौलादी मशीनों के फेल होने के बाद रैट माइनर्स की टीम ने मैन्यूनल खुदाई की है। जिसका नतीजा जल्द ही मिलने वाला है। क्या आपने सोचा है कभी कौन होते है रैट माइनर्स और कैसे करते है काम और बैन करने से जुड़ी बाते
क्या होता है रैट होल माइनिंग?
मैन्युल ड्रिलिंग यानि की हाथों से खुदाई में रैट माइनर्स काम करते है यहां यह वो परंपरागत तकनीक है जिसमें प्रशिक्षित मजदूर विशेष फावड़ों की मदद से चूहों की तरह सुरंग खोदते हैं। इस काम को करने वाली टीम को रैट माइनिंग टीम कहा जाता है। इस टीम के सदस्यों ने टनल की खुदाई का काम कर लिया है। यहां पर इस प्रकार की तकनीक का प्रयोग खासकर पूर्वोत्तर के राज्य मेघालय में होता था।
इसमें रैट माइनर्स गड्ढे खोदकर चार फीट चौड़ाई वाले उन संकरे गड्ढों में उतरते थे जो, जहां केवल एक व्यक्ति की जगह होती है। वे बांस की सीढ़ियों और रस्सियों का इस्तेमाल करके नीचे उतरते थे, फिर गैंती, फावड़े और टोकरियों आदि का उपयोग करके मैन्युअल रूप से कोयला निकालते थे।
टनल में कैसे काम किए माइनर्स
यहां पर टनल में फंसी 41 जिंदगियों को बाहर निकालने का प्रयास सोमवार को छह सदस्यीय रैट माइनर्स की टीम कर रही थी। ऑगर मशीन के फेल होने के बाद हाथ से खोदाई कराने का फैसला किया गया वहीं पर अब श्रमिकों की कुशल टीम रैट होल माइनिंग पद्धति का इस्तेमाल करके हाथ से मलबा हटाने का काम कर रही है।
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एक विशेषज्ञ ने बताया कि एक आदमी खुदाई करता है, दूसरा मलबा इकट्ठा करता है और तीसरा उसे बाहर निकालने के लिए ट्रॉली पर रखता है। विशेषज्ञ मैन्युअली मलबे को हटाने के लिए 800 मिमी पाइप के अंदर काम कर रहे हैं। कहा गया कि इस दौरान एक फावड़ा और अन्य विशेष उपकरण का उपयोग किया जा रहा है। ऑक्सीजन के लिए एक ब्लोअर भी लगा है।
आखिर NGT ने क्यों किया था बैन
आपको बता दें, रैट माइनिंग जहां पर काफी प्रचलन में रही है वहीं पर इस तकनीक को NGT ने 2014 में बैन कर दिया था। जिसके पीछे कारण था कि, इस तरीके से होने वाली खुदाई से सुरक्षा खतरे उत्पन्न हो जाते थे माइनर्स बिना किसी सुरक्षा उपाय के गड्ढों में उतरकर काम करते है और कई बार हादसों का शिकार हो जाते थे। ऐसे कई मामले भी आए जहां बरसात में रैट होल माइनिंग के कारण खनन क्षेत्रों में पानी भर गया, जिसके चलते श्रमिकों की जानें गईं।
इसे लेकर ही रैट माइनिंग के इस काम को साल 2014 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने मेघालय में प्रतिबंध लगा दिया था।
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