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Rani Durgavati University VC: रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी के कुलगुरू राजेश वर्मा की नियुक्ति पर हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

Rani Durgavati University VC: जबलपुर की रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी के कुलगुरू डॉ. राजेश वर्मा की प्रोफेसर के रूप में मूल नियुक्ति और कुलगुरू के पद पर नियुक्ति को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। अब उन्हें हाईकोर्ट के नोटिस का जवाब देना होगा।

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Rahul Garhwal
Rani Durgavati University VC Dr Rajesh Verma MP High Court Notice

हाइलाइट्स

  • हाईकोर्ट में रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी का मामला
  • कुलगुरू की नियुक्ति को चुनौती
  • हाईकोर्ट ने नोटिस जारी करके मांगा जवाब
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Rani Durgavati University VC: मध्यप्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर में रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी के कुलगुरू डॉ. राजेश वर्मा की प्रोफेसर के रूप में मूल नियुक्ति और कुलगुरू के पद पर नियुक्ति को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।

हाईकोर्ट ने थमाया नोटिस

मामले पर शनिवार को प्रारंभिक सुनवाई के बाद जस्टिस विवेक जैन की एकलपीठ ने कहा कि इस याचिका में विशुद्ध कानूनी मुद्दा उठाया गया है। कोर्ट ने राज्य सरकार, मप्र लोक सेवा आयोग, उच्च शिक्षा विभाग और रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी के कुलगुरू को नोटिस जारी करके जवाब मांगा है।

[caption id="attachment_781450" align="alignnone" width="630"]rani durgavati university VC Rajesh Verma MP High Court Notice रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी जबलपुर[/caption]

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नियमों के खिलाफ नियुक्ति का आरोप

भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन जबलपुर के जिला अध्यक्ष सचिन रजक और अभिषेक तिवारी ने याचिका दायर कर आरोप लगाया कि डॉ. राजेश वर्मा की नियम विरुद्ध तरीके से प्रोफेसर के पद नियुक्ति हुई थी। UGC गाइडलाइन के अनुसार प्राफेसर के पद पर नियुक्ति के लिए PHD डिग्री मिलने के बाद 10 साल अध्यापन का अनुभव जरूरी है।

डॉ. राजेश वर्मा को 2008 में मिली PHD

[caption id="attachment_781451" align="alignnone" width="370"]Rani Durgavati University VC Dr Rajesh Verma रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी के कुलगुरू डॉ. राजेश वर्मा[/caption]

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता उत्कर्ष अग्रवाल ने दलील दी कि डॉ. राजेश वर्मा को PHD 25 नवंबर 2008 को प्रदान की गई थी। इसके बाद 19 जनवरी 2009 को MPPSC ने प्राध्यापक पद पर नियुक्ति का विज्ञापन जारी किया था। इस पद के लिए PHD डिग्री मिलने के बाद 10 साल पढ़ाने का अनुभव जरूरी था। आवेदन करने वालों के पास यह अनुभव विज्ञापन की अंतिम तारीख यानी 20 फरवरी 2009 तक होना चाहिए था। कुलगुरु की प्रथम नियुक्ति जो कि प्रोफेसर के पद पर हुई है, वो नियम के खिलाफ है।

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कुलगुरू के पद पर नियुक्ति पर सवाल

याचिका में दलील दी गई कि पूर्व में संगीता बारूकर के केस में MPPSC ने शपथ पत्र में कहा था कि प्रोफेसर में नियुक्ति के लिए PHD के बाद कम से कम 10 साल टीचिंग का अनुभव होना चाहिए, जो कि डॉक्टर राजेश वर्मा के केस में नहीं है। तर्क दिया गया कि जब मूल नियुक्ति नियम विरुद्ध है तो कुलगुरू के पद पर नियुक्ति वैधानिक कैसे मानी जा सकती है।

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