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हाइलाइट्स
मध्यप्रदेश कैबिनेट मीटिंग
गोंड राजा भभूत सिंह को समर्पित कैबिनेट मीटिंग
शिवाजी महाराज से होती थी राजा भभूत सिंह की तुलना
Raja Bhabhut Singh: नर्मदापुरम के पचमढ़ी में सीएम मोहन यादव की कैबिनेट बैठक लेंगे। पचमढ़ी के राजभवन में होने वाली कैबिनेट मीटिंग गोंड राजा भभूत सिंह को समर्पित होगी। गोंड राजा भभूत सिंह ने पचमढ़ी के पहाड़ी इलाके का इस्तेमाल शासन चलाने, सुरक्षा करने और अपनी संस्कृति को बचाने के लिए किया। अंग्रेज उनके नाम से कांपते थे। राजा भभूत सिंह के रणकौशल की तुलना शिवाजी महाराज से की जाती है।
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राजा भभूत सिंह का केंद्र रहा है पचमढ़ी
पचमढ़ी गोंड शासक राजा भभूत सिंह की ऐतिहासिक भूमिका का केंद्र रहा है। उन्होंने इस पहाड़ी इलाके का इस्तेमाल शासन चलाने, सुरक्षा करने और अपनी संस्कृति को बचाने के लिए किया। पचमढ़ी एक शानदार जगह है। यह भगवान भोलेनाथ की नगरी के नाम से भी जानी जाती है। यहां धूपगढ़ चोटी है, जो समुद्र तल से लगभग 1,350 मीटर (4,429 फीट) की ऊंचाई पर है। धूपगढ़ से सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बहुत ही सुंदर होता है। ये गोंड साम्राज्य की ताकत और प्रकृति को बचाने के नजरिए को भी दिखाता है।
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राजा भभूत सिंह ने समाज को किया था एकजुट
राजा भभूत सिंह ने जल, जंगल, जमीन और अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए समाज को एकजुट किया। उन्होंने अंग्रेजों और बाहरी हमलावरों का सामना किया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, राजा भभूत सिंह ने महान स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे की सहायता की। तात्या टोपे के कहने पर, वे देश की आजादी की मशाल लेकर सतपुड़ा की सुंदर वादियों में निकल पड़े।
सतपुड़ा की वादियों में आजादी की मशाल
उन्होंने सतपुड़ा की वादियों में आजादी की मशाल जलाई। राजा भभूत सिंह ने अंग्रेजों को धोखा देते हुए अक्टूबर 1858 के आखिरी हफ्ते में तात्या टोपे के साथ ऋषि शांडिल्य की तपोभूमि साँडिया के पास नर्मदा नदी पार की। भभूत सिंह और तात्या टोपे ने नर्मदांचल में आजादी के आंदोलन की योजना बनाई। पचमढ़ी में सतपुड़ा की गोद में तात्या टोपे ने अपनी फौज के साथ भभूत सिंह से मिलकर 8 दिनों तक डेरा डाला और आगे की तैयारी करते रहे। हर्राकोट के जागीरदार भभूत सिंह का जनजातीय समाज पर बहुत अधिक प्रभाव था। उन्होंने जनजातीय समाज को स्वतंत्रता आंदोलन के लिए तैयार किया।
घने जंगलों और पहाड़ियों को अच्छे से जानते थे भभूत सिंह
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राजा भभूत सिंह को सतपुड़ा के घने जंगलों और पहाड़ियों की पूरी जानकारी थी। उन्होंने जनजातीय समाज को एकजुट करके उनके साथ मिलकर गोरिल्ला युद्ध (छुपकर हमला करने की रणनीति) से अंग्रेजों का मुकाबला किया। राजा भभूत सिंह का रणकौशल (युद्ध करने की कला) बहुत ही जबरदस्त था। वे पहाड़ियों के हर रास्ते से वाकिफ थे, जबकि अंग्रेज फौज पहाड़ी रास्तों से अनजान थी। भभूत सिंह की फौज अचानक उन पर हमला करती और गायब हो जाती। इससे अंग्रेज बहुत परेशान हो गए थे।
शिवाजी महाराज की तरह था राजा भभूत सिंह का रणकौशल
इतिहास के अनुसार राजा भभूत सिंह का युद्ध कौशल शिवाजी महाराज के जैसा था। शिवाजी महाराज की तरह, राजा भभूत सिंह सतपुड़ा पर्वतों के सभी पहाड़ी रास्तों से परिचित थे। जब देनवा घाटी में राजा भभूत सिंह का मुकाबला अंग्रेजी मिलिट्री और मद्रास इन्फेंट्री की टुकड़ी से हुआ, तो अंग्रेजी सेना को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा।
भभूत सिंह को पकड़ने के लिए अंग्रेजों ने ली मद्रास इन्फेंट्री की मदद
भभूत सिंह को पकड़ने के लिए अंग्रेजों को मद्रास इन्फेंट्री को बुलाना पड़ा था। राजा भभूत सिंह अपनी सेना के साथ 1860 तक लगातार अंग्रेजों से लड़ते रहे। अंग्रेज लगातार हारते रहे। वे 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों को परेशान करने वाले के रूप में भी जाने जाते हैं।
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