रायसेन। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 50 किलोमीटर दूर रायसेन का किला (Raisen Fort) स्थित है। जिसका इतिहास काफी शानदार है। किला प्राचीन वास्तुकला और गुणवत्ता का एक अद्भुत प्रमाण है। कई शताब्दियां बीत जाने के बाद भी किला उसी शान से खड़ा है, जैसे पहले था। इस किले और यहां पर शासन करने वाले राजाओं के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। इतिहास के पन्नों को जब हम पलटते हैं तो पाते हैं कि यहां शासन कर रहे राजा ने खुद ही अपनी पत्नी का सिर काट दिया था। राजा ने ऐसा इसलिए किया ताकि वो अपनी पत्नी को प्रोटेक्ट कर सके।
किले में 9 द्वार और 13 बुर्ज हैं
रायसेन किले का निर्माण पहाड़ की चोटी पर सन् 1200 ईस्वी में बलुआ पत्थर से कराया गया था। किले के चारों तरफ बड़ी-बड़ी चट्टानों की दीवारें हैं। इन दीवारों में नौ द्वार और 13 बुर्ज हैं। मालूम हो कि इस फोर्ट का शानदार इतिहास रहा है। यहां कई राजाओं ने शासन किया है, जिनमें एक शेरशाह सूरी (Sher Shah Suri) भी था। कहा जाता है कि शेरशाह सूरी को इस किले को जितने में पसीने छूट गए थे। तारीखे शेरशाही के मुताबिक शेरशाह चार महीने की घेराबंदी के बाद भी इस किले को नहीं जीत पाया था।
शेरशाह ने धोखे से किले को जीता था
ऐसे में उसने किले को जीतने के लिए तांबे के सिक्कों को गलवाया और उससे तोपें बनवाईं। इन तोपों के बदौलत ही शेरशाह किला जीतने में कामयाब हो पाया था। हालांकि, इतिहासकार मानते हैं कि शेरशाह ने इस किले को जीतने के लिए 1543 ईस्वी में धोखे का सहारा लिया था। उस वक्त इस किले पर राजा पूरनमल का शासन था। राजा को जैसे ही पता चला कि उनके साथ धोखा हुआ है और कभी भी शेरशाह सूरी किले पर हमला कर सकता है। ऐसी स्थिति उन्होंने दुश्मनों से अपनी पत्नी रानी रत्नावली को बचाने के लिए उनका सिर खुद ही काट दिया था।
पारस पत्थर का रहस्य
किले से और भी कई कहानियां जुड़ी हैं। कहा जाता है कि कभी इस किले के राजा रहे राजसेन के पास ‘पारस पत्थर’ (The Philosopher’s Stone) था, जो लोहे को भी सोना बना सकता था। इस रहस्यमय पत्थर के लिए कई युद्द भी हुए थे, लेकिन जब राजा राजसेन हार गए, तो उन्होंने इस पारस पत्थर को किले में ही स्थित एक तालाब में फेंक दिया। राजसेन के बाद कई राजाओं ने इस किले को खुदवाकर पारस पत्थर को खोजने की कोशिश की, लेकिन उन्हें कभी भी सफलता नहीं मिली।
जिन्न करता है पत्थर की रक्षा
स्थानीय लोगों के बीच मानना है कि इस पारस पत्थर की रक्षा एक जिन्न करता है। जिसने भी इस पत्थर को खोजने की कोशिश की उसने अपना मानसिक संतुलन खो दिया। लोग आज भी पारस पत्थर को खोजने की कोशिश करते हैं। लोग यहां रात के समय पारस पत्थर की तलाश में तांत्रिकों को अपने साथ लेकर आते हैं, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगती है।
पुरातत्व विभाग क्या कहता है?
वहीं पारस पत्थर को लेकर पुरातत्व विभाग (Archaeological Survey of India) का कहना है कि अब तक ऐसा कोई भी सबूत नहीं मिला है, जिससे पता चले कि पारस पत्थर इसी किले में मौजूद है। लोग कही-सुनी कहानियों की वजह से यहां चोर-छिपे पारस पत्थर ढूंढने आते हैं।