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Raipur Collectorate Roof Collapse
Raipur Collectorate Roof Collapse: राजधानी रायपुर के कलेक्टोरेट भवन में 28 सितंबर, रविवार तड़के एक गंभीर हादसा हो गया, जब कमरा नंबर-8 (एंग्लो रिकॉर्ड रूम) की छत भरभराकर गिर गई। ये वही कमरा है जहां आजादी के समय से यानी लगभग 78 साल पुराने जमीन और सरकारी रिकॉर्ड्स को संभालकर रखा गया था। हैरानी की बात यह है कि यह कमरा कलेक्टर कार्यालय से केवल 50 मीटर की दूरी पर है।
सुबह करीब 4:30 बजे यह हादसा हुआ, लेकिन इसकी जानकारी सुबह तक किसी को नहीं थी। चौकीदार ने जब मलबा देखा, तब अधिकारियों को सूचना दी गई। मौके पर एसडीआरएफ की टीम और मजदूर पहुंचे और दिनभर दस्तावेजों को सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट करने का काम चलता रहा।
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एंग्लो रिकॉर्ड सेल कक्ष की जर्जर छत गिरी[/caption]
छत की जर्जर हालत की दी गई थी सूचना
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि करीब एक हफ्ते पहले ही रिकॉर्ड रूम के स्टाफ ने कलेक्टर को सूचित किया था कि कमरे की छत बेहद जर्जर हालत में है। चेतावनी के बावजूद केवल कर्मचारियों को दूसरे कमरों में शिफ्ट किया गया, लेकिन कीमती और ऐतिहासिक दस्तावेज वहीं छोड़ दिए गए। कलेक्टर डॉ. गौरव कुमार सिंह ने बताया कि "कर्मचारियों को पहले ही सुरक्षित स्थान पर भेज दिया गया था। फाइलें सुरक्षित हैं और उन्हें अन्य कमरों में स्थानांतरित किया जा चुका है।"
दस्तावेजों का खजाना था कमरा नंबर-8
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छत के नीचे दबी फाइलें[/caption]
यह कमरा केवल ईंट-पत्थरों का नहीं, बल्कि इतिहास का एक ज़िंदा सबूत था। जमीन के पुराने दस्तावेज, कर्मचारियों के पेंशन रिकॉर्ड, राजपत्रों से जुड़े कागजात, सभी इसी कमरे में रखे गए थे। अपर कलेक्टर मनीष मिश्रा ने बताया कि "हमने सभी दस्तावेजों को सुरक्षित निकाल लिया है और इन्हें रजिस्ट्री विभाग के पास खाली कमरों में रखा गया है।"
इतिहासकार रमेंद्रनाथ मिश्र बताते हैं कि "यह भवन अंग्रेजों ने 1854 में बनवाना शुरू किया था। यह रिकॉर्ड रूम 1915 में अस्तित्व में आया। लेकिन वर्षों से मेंटेनेंस न होने के कारण इसकी हालत खराब होती चली गई।"
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13 साल से अटकी है कंपोजिट बिल्डिंग की योजना
यह कोई पहला संकेत नहीं था कि कलेक्टोरेट की इमारत जर्जर हो चुकी है। 2012 में तत्कालीन कलेक्टर डॉ. रोहित यादव ने पहली बार कंपोजिट बिल्डिंग बनाने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन मंत्रालय में उसे गंभीरता से नहीं लिया गया। 2017 में कलेक्टर ओपी चौधरी ने फिर से प्रस्ताव भेजा। इसके बाद डॉ. बसवराजू, डॉ. एस भारतीदासन, सौरभ कुमार और डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे जैसे कलेक्टर आए और गए, लेकिन प्रस्ताव फाइलों से बाहर नहीं निकल पाया।
अब वर्तमान कलेक्टर डॉ. गौरव कुमार सिंह के कार्यकाल में एक बार फिर कोशिशें तेज हुई हैं। उनके अनुसार, नई बिल्डिंग की ड्राइंग और डिजाइन तैयार हो चुकी है, और लागत अब 11 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है, जो पहले 6 करोड़ रुपये थी।
भगवान भरोसे सरकारी दस्तावेज
इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि सरकारी दस्तावेजों की सुरक्षा अब भगवान भरोसे है। जिन फाइलों में शहर का इतिहास, जमीन की मिल्कियत, सरकारी आदेश और कर्मचारियों का भविष्य दर्ज है, वे एक जर्जर छत के नीचे सहेजे जा रहे हैं।
इस हादसे से साफ-साफ स्पष्ट है कि सरकारें बदलती रहीं, कलेक्टर आते-जाते रहे, लेकिन किसी ने वाकई कलेक्टोरेट के महत्व को नहीं समझा। अब समय आ गया है कि फाइलें केवल कागजों में नहीं, ज़मीन पर उतरें और मजबूत भवन के रूप में आकार लें।
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