Qutub Minar : आगरा का ताजमहल और ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर देश में बहस छिड़ी हुई है। हिंदू संगठनों का कहना है कि ताजमहल एक शिव मंदिर है तो वही ज्ञापवापी मस्जिद में शिवलिंग है। इसी बीच कुतुबमीनार (Qutub Minar surya stambh) को लेकर नई बहस सामने आई है। कुतुबमीनार को लेकर इतिहासकारों ओर पुरातत्व विभाग ने कुछ तथ्यों के आधार पर सवाल उठाए है। कुतुबमीनार को लेकर दावा किया जा रहा है कि यह इमारत कुतुबुद्दीन ऐबक ने नहीं बल्कि खगोल विज्ञानी आचार्य वराह मिहिर ने बनवाई थी। दावा किया जा रहा है कि कुतुबमीनार सूर्य स्तंभ है। कुतुबमीनार में ऐसे कई चिन्ह, शिलालेख है जो इन दावों को सच की ओर ले जाता है।
कुतुबमीनार (Qutub Minar surya stambh) में मंदिरों की घंटियों की आकृति बनी हुई है। इमारत में भगवान गणेश की प्रतिमाएं भी है। इमारत के खंभों पर देवी देवताओं की आकृतियां भी बनी हुई है। कहा जाता है कि कुतुबमीनार (Qutub Minar surya stambh) मुगलों की पहचान है। कुतुबमीनार को कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था लेकिन दावा किया जा रहा है कि कुतुबमीनार (Qutub Minar surya stambh) का निर्माण सम्राट विक्रामादित्य के समय किया गया था। इस विशाल इमारत का निर्माण खगोल विज्ञानी आचार्य वराह मिहिर ने कराया था। इसलिए इस जगह का नाम मिहिरावली पड़ा जिसे आज महरौली के नाम से जाना जाता है। हालांकि कुतुबमीनार (Qutub Minar surya stambh) पर अरबी और फारसी में कुछ आयतें लिखी है। जिनमें कुछ सुलतानों के नाम लिखें है। लेकिन यह नहीं लिखा की कुतुबमीनार (Qutub Minar surya stambh) को किसने बनाया। कहा जाता है कि यह आयतें बाद में लगाई गई थी।
शिलालेख पर लिखा स्वर्ण अक्षरों में मलबे वाली बात
मस्जिद के शिलालेख पर स्वर्ण अक्षरों में लिखा है कि इस मस्जिद को मंदिरों के मलबे से बनाया गया था। लेकिन कुतुबमीनार (Qutub Minar surya stambh) बनाए जाने की ज़िक्र नहीं है। यह मस्जिद कुतुबमीनार (Qutub Minar surya stambh) में प्रवेश करते ही सामने की ओर दिखाई देती है। इस मस्जिद को भारत की सबसे पुरानी मस्जिद माना जाता है। मस्जिद के शिलालेख पर आज भी लिखा है कि इस मस्जिद को 27 मंदिरों को तोड़कर उसके मलबे से बनाया गया है। मस्जिद परिसर में देवी देवताओं की मूर्तियां और घंटियों की आकृति बनी देखी जा सकती है। इन्हें देखकर साफ नजर आता है ये मंदिरों के ही अवशेष हैं। मस्जिद के प्रांगण में बना लौह स्तंभ चौथी शताब्दी का है, जिसे विष्णु स्तंभ कहा जाता है। इस लौहे के स्तंभ का एक रहस्य यह है कि इस पर अभीतक जंग नहीं लगी है। कहा जाता है कि अगर आप इस स्तंभ को अपनी बाहों में ले ले तो आपकी मनोकामना पूरी हो जाती है। हालांकि स्तंभ को लोगों की पहुंच से दूर कर दिया गया है। स्तंभ पर संस्कृत में भी कुछ लिखा हुआ है।
सूर्य स्तंभ हैं कुतुबमीनार!
जिस प्रकार से कुतुबमीनार (Qutub Minar surya stambh) को बनाया गया है, उसे सूर्य स्तंभ माना जाता है। इतिहास के पन्नों को अगर पलटा जाए तो उसमें लिखा है कि इसे कुतुबुद्धीन ऐबक ने बनवाना शुरु किया था। उसके बाद इमारत को अल्तमश और फिरोजशाह तुगलक ने पूरा किया था। लेकिन पुरातत्व एक्सपर्ट्स की माने तो कुतुबमीनार (Qutub Minar surya stambh) सूर्य, सौरमंडल और नक्षत्रों के विश्लेषण के लिए बनाया गया था। कुतुबमीनार (Qutub Minar surya stambh) में बनी खिड़कियां 27 नक्षत्रों की स्टडी के लिए बनाई गई हैं। खिड़कियों को इस तरीके से बनाया गया है ताकि लोग खगोलविज्ञान की पढ़ाई कर सकें।
साल में एक दिन नहीं पड़ती कुतुबमीनार की छाया
कुतुबमीनार (Qutub Minar surya stambh) को लेकर कहा जाता है कि साल में एक बार कुतुबमीनार (Qutub Minar surya stambh) की छाया धरती पर नहीं पड़ती है। खबरों के अनुसार हर साल 21 जून को दोपहर के 12 बजे कुतुबमीनार (Qutub Minar surya stambh) की छाया धरती पर नहीं पड़ती है। क्योंकि इस दिन सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन में प्रवेश करता है। कुतुबमीनार 25 इंच दक्षिण की ओर झुकी हुई है।