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Veer Bal Diwas: सिखों के अंतिम गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों के साहस की कहानी बताने के लिए पूरे देश में कार्यक्रम आयोजित

Veer Bal Diwas: दिसंबर की 21 से 27 तारीख ऐसा हफ्ता है जब सिख समुदाय और देश गर्व से भर जाता है। शहीदी दिहाड़े के तौर पर मनाने की परंपरा रही है

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Bansal news
Veer Bal Diwas: सिखों के अंतिम गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों के साहस की कहानी बताने के लिए पूरे देश में कार्यक्रम आयोजित

Veer Bal Diwas: दिसंबर की 21 से 27 की तारीख, यह ऐसा हफ्ता है जब पूरा सिख समुदाय और देश गर्व से भर जाता है। इस पूरे सप्ताह को शहीदी दिहाड़े के तौर पर मनाने की परंपरा चली आ रही है।

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यह चार साहिबजादों और माता गुजरी जी को समर्पित किया गया है, जिन्होंने सिख धर्म की रक्षा के लिए खुद की जान तक कुर्बान कर दी, लेकिन मुगलों के सामने शीश नहीं झुकाया। न अपना धर्म बदला और न ही अंतिम समय तक झुकने को तैयार हुए।

वीर बाल दिवस का इतिहास

मुगल शासनकाल के दौरान पंजाब में सिखों के नेता गुरु गोबिंद सिंह(Veer Bal Diwas) के चार बेटे थे।  उन्हें चार साहिबजादे खालसा कहा जाता था।  1699 में गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की।  धार्मिक उत्पीड़न से सिख समुदाय के लोगों की रक्षा करने के उद्देश्य से इसकी स्थापना की गई थी।

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तीन पत्नियों से गुरु गोबिंद सिंह चार बेटे: अजीत, जुझार, जोरावर और फतेह, सभी खालसा का हिस्सा थे।  उन चारों को 19 वर्ष की आयु से पहले मुगल सेना द्वारा मार डाला गया था।

उनकी शहादत का सम्मान करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल की शुरुआत में 9 जनवरी को घोषणा की थी कि 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस(Veer Bal Diwas) के रूप में मनाया जाएगा।

यह दिन चार साहिबजादों, विशेष रूप से उनके पुत्र जोरावर सिंह और फतेह सिंह के साहस के लिए एक श्रद्धांजलि होगी, जिन्हें तत्कालीन शासक औरंगजेब के आदेश पर मुगलों द्वारा कथित तौर पर मार दिया गया था।

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वीर बाल दिवस का महत्व

वीर बाल दिवस(Veer Bal Diwas) खालसा के चार साहिबजादों के बलिदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है।  अंतिम सिख गुरु गोबिंद सिंह के छोटे बच्चों ने अपने आस्था की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे।

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यह उनकी कहानियों को याद करने का भी दिन और यह जानने का भी दिन है कि कैसे उनकी निर्मम हत्या की गई- खासकर जोरावर और फतेह सिंह की।  सरसा नदी के तट पर एक लड़ाई के दौरान दोनों साहिबजादे को मुगल सेना ने बंदी बना लिया था।

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इस्लाम धर्म कबूल नहीं करने पर उन्हें क्रमशः 8 और 5 साल की उम्र में कथित तौर पर जिंदा दफन कर दिया गया था।

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