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Privatization of Banks : सरकारी बैंकों के निजीकरण को लेकर RBI का बड़ा बयान!

Privatization of Banks : सरकारी बैंकों के निजीकरण को लेकर RBI का बड़ा बयान! Privatization of Banks Big statement of RBI regarding privatization of public sector banks vkj

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Bansal News
Privatization of Banks : सरकारी बैंकों के निजीकरण को लेकर RBI का बड़ा बयान!

Privatization of Banks : इन दिनों देश की कुछ सरकारी बैंकों का निजीकरण (Privatization of Banks) को लेकर चर्चा काफी तेज है। सरकारी बैंकों का निजीकरण एक बड़ा आर्थिक सुधार माना जा रहा है। लेकिन हाल ही में रिजर्व बैंक ने अपने एक बयान में कहा है कि सरकारी बैंकों का तेजी से निजीकरण (Privatization of Banks)  करना सही नहीं होगा। अगस्त बुलेटिन में छपे एक लेख के अनुसार सरकारी बैंक फाइनेंशियल इन्क्लूजन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ऐसे में बैंकों का निजीकरण (Privatization of Banks) करने के फैसले को सोच समझकर लेना चाहिए। क्योंकि निजी बैंकों मुनाफा बढ़ाने पर ध्यान देते है लेकिन सरकारी बैंक सामाजिक लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करते हैं।

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78 प्रतिशत जनधन खाते सरकारी बैंकों में

मार्च 2021 तक के आंकड़ों में दावा किया गया है कि सरकारी बैंक (Privatization of Banks) की शाखाएं निजी बैंकों की अपेक्षा 33 प्रतिशत से अधिक है। वही निजी बैंक के मामले में ये आंकड़ा करीब 21 प्रतिशत हैं। सरकारी बैंक ग्रामीण इलाकों में काफी आगे हैं। आंकडों के अनुसार जनधन योजना के 45 करोड़ खातों में से करीब 78 प्रतिशत खाते सरकारी बैंकों में ही हैं तो वही 60 प्रतिशत खाते ग्रामीण और अर्ध शहरी इलाकों में हैं। लेख में यह भी दावा किया गया है कि निजी बैंक उसी को कर्ज देते है जो आर्थिक तौर पर मजबूत हो, लेकिन सरकारी बैंक उनको भी कर्ज बांटते है जिनका कारोबार विपरीत हो। आरबीआई (RBI) का कहना है कि बैंकों के निजीकरण (Privatization of Banks) से ही आर्थिक तरक्की नहीं हो जाती जैसे कि इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को कर्ज बांटने में सरकारी बैंक, निजी बैंकों के मुकाबले (Privatization of Banks)  कहीं आगे ठहरते हैं।

आएंगे अच्छे दिन

लेख में कहा गया है कि बैंकों के निजीकरण (Privatization of Banks) को नए नजरिये से भी देखने की जरूरत है। निजीकरण हर समस्या का हल है क्योंकि आंकड़ों को देखा जाए तो निजीकरण (Privatization of Banks) होने पर मुख्य उद्देश्य मुनाफा बढ़ाना ही हो जाता है। लेकिन सरकारी बैंकों का मकसद मुनाफा नहीं बल्कि सामाजिक उद्देश्यों को पूरा करना भी होता है। कमजोर बैलेंसशीट के बावजूद भी सरकारी बैंकों को लेकर लोगों का भरोसा डिगा नहीं है। बीते कुछ साल में आपसी विलय के बाद सरकारी बैंक मजबूत हो रहे हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर लेंडिंग का भार भी सरकारी बैंकों से कम होगा। ऐसे में सरकारी बैंका का जल्दबाजी में निजीकरण (Privatization of Banks)  ठीक नहीं है। सरकार को धीरे-धीरे निजीकरण की ओर बढ़ना होगा।

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