नई दिल्ली। भारत में कैदियों को सामान्य आबादी की तुलना में तपेदिक (टीबी) होने का खतरा पांच गुना अधिक है।
लैंसेट पब्लिक हेल्थ पत्रिका में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन में यह बात कही गई है। शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने वर्ष 2000 और 2019 के बीच 195 में से 193 देशों के डेटा का विश्लेषण करते हुए पहली बार जेल में बंद व्यक्तियों में टीबी की दर का अनुमान लगाया।
पत्रिका के जुलाई संस्करण में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि भारत की जेलों में प्रति 100,000 व्यक्तियों पर टीबी के 1,076 मामले थे। पिछले साल विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी वैश्विक तपेदिक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 में देश में तपेदिक के मामले प्रति एक लाख की आबादी पर 210 थे।
शोधकर्ताओं ने पाया कि वैश्विक स्तर पर, सामान्य आबादी की तुलना में जेल में बंद लोगों में टीबी होने का खतरा लगभग 10 गुना अधिक है। शोधकर्ताओं ने देश-स्तर पर तपेदिक के मामलों की दर और जेलों में भीड़भाड़ के बीच एक मजबूत संबंध पाया।
अध्ययन की अगुवाई कर रहे अमेरिका के बोस्टन विश्वविद्यालय के लियोनार्डो मार्टिनेज ने एक बयान में कहा, ‘टीबी और भीड़भाड़ के बीच यह संबंध बताता है कि हिरासत में लिए गए लोगों की संख्या को सीमित करने के प्रयास जेलों में टीबी महामारी से निपटने के लिए एक संभावित सार्वजनिक स्वास्थ्य औजार हो सकते हैं।’’
दुनियाभर के जेलों में बढ़ता टीबी का खतरा
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 193 देशों की जेलों में बंद कैदियों के बीच टीबी के जोखिमों का आकलन किया। शोधकर्ताओं ने पाया कि 2019 में वैश्विक स्तर पर जेलों में बंद लगभग 11 मिलियन (1.1 करोड़) लोगों में से लगभग 125,105 में टीबी का खतरा था। यह दर प्रति एक लाख लोगों में 1,148 मामलों के बराबर की है। वहीं सामान्य आबादी में यह आंकड़ा 127 के करीब का है।
इस अध्ययन में पाया गया कि वैश्विक स्तर पर जेलों में कैदियों में टीबी के निदान की दर 53 फीसदी ही है।
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