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Pradosh Vrat: प्रदोष व्रत क्या है, क्यों रखा जाता है? जानिए व्रत के नियम, दिन के अनुसार होने वाले लाभ

प्रदोष व्रत भगवान शिव की आराधना का विशेष व्रत है, जो हर महीने की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है. जानिए इसे करने के नियम और होने वाले लाभ

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Shyam Nandan
Pradosh Vrat: प्रदोष व्रत क्या है, क्यों रखा जाता है? जानिए व्रत के नियम, दिन के अनुसार होने वाले लाभ

Pradosh Vrat Kya Hai: सनातन हिन्दू धर्म में हिन्दू मास की हर तिथि का विशेष महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत होता है। इसी तिथि की संध्या काल को ‘प्रदोष काल’ कहा जाता है। त्रयोदशी तिथि ‘तेरह’ की संख्या से जुड़ी होने के कारण बहुत से हिन्दू-समुदायों में अशुभ माना जाता है। लेकिन, इस तिथि को देवाधिदेव महादेव भगवान शंकर को समर्पित किया गया है, ताकि अशुभ भी शुभ और शिव हो जाए।

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प्रदोष का व्रत क्यों रखा जाता है – Pradosh Vrat Kyon Rakha Jata Hai

सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार, कलयुग में प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) बहुत मंगलकारी और फलदायी है। त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और साधक को मनचाहा फल देते हैं। परिवार में धन-धान्य की कमी नहीं रहती है। साधक के परिवार के सभी सदस्य नीरोग, प्रसन्नचित्त और सदैव प्रगति के पथ पर अग्रसर होते हैं।

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प्रदोष व्रत के नियम क्या हैं - Pradosh Vrat Ke Niyam

-- सनातन धर्म के ग्रंथों के अनुसार, त्रयोदशी तिथि यानी प्रदोष व्रत ((Pradosh Vrat)) के दिन साधक या साधिका को प्रातः काल में स्नान-ध्यान कर आशुतोष भगवान शिव का स्मरण करना चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

-- पूजा या आराधना स्थल पर भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र को स्थापित कर सनातन विधि-विधान और पूर्ण भक्ति-भाव से पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

-- सुबह से लेकर शाम तक निराहार रहना चाहिए यानी दिन भर का उपवास करना चाहिए। बिना जल ग्रहण किए यानी निर्जला उपवास और भी विशेष फलदायी माना गया है।

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-- व्रत की संध्या में पुनः भगवान शिव की पूजा और आरती करने के बाद केवल फलहार करना चाहिए। नमक का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए

-- प्रदोष व्रत के दिन पूर्ण-ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इस दौरान तन, मन और चित्त में लोभ, ईर्ष्या और क्रोध जैसे विकारों को नहीं लाना चाहिए।

-- त्रयोदशी तिथि के अगले दिन यानी चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव का विधि-विधान से पूजा करने के बाद भोजन ग्रहण करना चाहिए।

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-- साधक या साधिका को प्रदोष व्रत के दिन सत्संग और कीर्तन का आयोजन करना चाहिए। दिन भर भगवान शिव के मंत्रों का जाप करना चाहिए।

-- साधक या साधिका को प्रदोष व्रत के दिन मांसाहार और बिलकुल नहीं करना चाहिए। तामसिक भोजन और पदार्थ जैसे प्याज, लहसुन, मांस, मसूर, उड़द, तंबाकू और मदिरा का सेवन कतई नहीं करना चाहिए।

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प्रदोष व्रत करने से क्या लाभ होता है - BenefitsBenefits of Pradosh Vrat

-- प्रदोष व्रत ((Pradosh Vrat)) करने से व्यक्ति का स्वास्थ्य हमेशा उत्तम रहता है। तनाव से मुक्ति मिलती है। बिगड़े हुए काम बन जाते हैं। घर और परिवार में सुख-शान्ति और धन-धान्य में वृद्धि होती है।

-- जो लोग संतानहीन हैं। इस व्रत को पूर्ण विधि-विधान से करने पर उनको को शीघ्र ही संतान की प्राप्ति होती है।

-- जो लोग शत्रुओं से परेशान रहते हैं। उन्हें प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए। यह व्रत करने से शत्रुओं शिकस्त मिलती है।

-- जिनकी कुंडली में कोई ग्रह-दोष होता है। उन्हें भी यह उत्तम व्रत करना चाहिए। इसे करने से ग्रह-दोष समाप्त हो जाते हैं।

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प्रदोष व्रत से लाभ - Benefits of Pradosh Vrat

हिन्दू पंचांग के अनुसार त्रयोदशी तिथि महीने के दोनों पक्षों (कृष्ण और शुक्ल) में आती है। यह तिथि सप्ताह के किसी दिन भी हो सकती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, सप्ताह से सातों दिनों के अनुसार इस व्रत के फल अलग-अलग होते हैं।

रविवार प्रदोष व्रत: इस दिन प्रदोष व्रत करने व्यक्ति सदा स्वस्थ और नीरोग रहता है और दीर्घायु होता है।

सोमवार प्रदोष व्रत: सोमवार भगवान का सबसे प्रिय दिन है। इस दिन यह व्रत करने से मनुष्य को इच्छित और अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।

मंगलवार प्रदोष व्रत: मंगलवार को प्रदोष व्रत रखने से बीमार और रोगियों को रोग से मुक्ति मिलती है और स्वस्थ-लाभ होता है। जिनके सिर पर कर्ज होता है, उसका बोझ जल्दी ही उतर जाता है।

बुधवार प्रदोष व्रत: इस दिन प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति की सभी प्रकार की कामना सिद्ध होती है।

वृहस्पतिवार प्रदोष व्रत: जो लोग शत्रुओं के परेशान हैं, वृहस्पतिवार के दिन प्रदोष व्रत करने से शत्रु का नाश होता है।

शुक्र प्रदोष व्रत: शुक्रवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को ‘शुक्र प्रदोष व्रत’ कहते हैं। इस दिन को यह व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि होती है। दांपत्य जीवन सुखमय और विलासिता भरा होता है।

शनि प्रदोष व्रत: शनिवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को ‘शनि प्रदोष व्रत’ कहते हैं। इस दिन को यह व्रत करने से साधक और साधिका संतान रत्न की प्राप्ति होती है।

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प्रदोष व्रत कब से शुरू किया जाता है - When to Begin Pradosh Vrat

सनातन धर्म के परम्परा में महाशिवरात्रि और श्रवण मास में शिव की पूजा के बाद प्रदोष व्रत को महादेव शंकर की पूजा का अचूक और सर्वोत्तम दिन माना गया.

शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत को किसी भी हिन्दू महीने के किसी भी पक्ष की त्रयोदशी तिथि से शुरू किया जा सकता है. लेकिन फाल्गुन मास और श्रावण मास की त्रयोदशी तिथि से इस व्रत को करना विशेष फलदायी माना गया है. इसे कम से कम 11 या 21 त्रयोदशी तिथियों तक करना चाहिए.

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प्रदोष व्रत कौन रख सकता है - Who can do Pradosh Vrat

प्रदोष व्रत ((Pradosh Vrat)) के करने के लिए किसी को मनाही नहीं है. इसे हर उम्र के समर्थ और स्वस्थ स्त्री और पुरुष कर सकते हैं. अन्य हिन्दू व्रतों की तरह

प्रदोष व्रत के दिन क्या नहीं करना चाहिए - What Not To Do on Pradosh Vrat

-- व्रत के दिन दिन और रात में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए।

-- नमक का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए।

-- प्रदोष व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का नियम नहीं तोड़ना चाहिए।

-- व्रत के दौराना इस दौरान तन, मन और चित्त में लोभ, ईर्ष्या और क्रोध जैसे विकारों को नहीं लाना चाहिए।

-- प्रदोष व्रत के दिन मांसाहार और अन्य तामसिक भोजन का त्याग करना चाहिए।

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