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World Heart Day: दिल की बीमारियां अब सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित नहीं हैं। आजकल युवाओं और बच्चों में भी हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट के मामले तेजी से बढ़े हैं। इस रिपोर्ट में हम जानेंगे कि हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट में क्या अंतर है और दिल को स्वस्थ रखने के लिए किन आदतों पर ध्यान देना जरूरी है।
शुरुआती लक्षण जिन्हें न करें नजरअंदाज
- सीने में दबाव या भारीपन
- अचानक ठंडा पसीना आना
- सांस फूलना
- चक्कर आना
- असामान्य थकान
ये सभी लक्षण दिल की बीमारी की ओर इशारा कर सकते हैं। अगर ये लक्षण बार-बार नजर आएं तो तुरंत डॉक्टर से जांच करानी चाहिए।
हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट में अंतर
हार्ट अटैक क्या है?
हार्ट अटैक तब होता है जब हृदय तक खून पहुंचाने वाली धमनियों (arteries) में ब्लॉकेज हो जाता है। यह ब्लॉकेज आमतौर पर कोलेस्ट्रॉल और फैट के जमाव (plaque) की वजह से होता है। जब धमनियों में खून का बहाव रुक जाता है, तो हृदय की मांसपेशियों तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती और हार्ट मसल्स को नुकसान होने लगता है। हार्ट अटैक धीरे-धीरे भी हो सकता है और इसके लक्षणों में सीने में दर्द, सांस फूलना, ठंडा पसीना और थकान शामिल हैं।
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कार्डियक अरेस्ट क्या है?
कार्डियक अरेस्ट हार्ट अटैक से अलग और ज्यादा खतरनाक स्थिति है। इसमें दिल की धड़कन अचानक रुक जाती है और ब्लड सर्कुलेशन पूरी तरह बंद हो जाता है। यह स्थिति बहुत तेजी से बढ़ती है और मरीज बेहोश होकर गिर जाता है। अगर तुरंत CPR (Cardio Pulmonary Resuscitation) और मेडिकल सपोर्ट न मिले तो कुछ ही मिनटों में मौत हो सकती है। यही वजह है कि कार्डियक अरेस्ट को "सडन कार्डियक डेथ" भी कहा जाता है।
क्या लक्षण भी अलग होते हैं?
जी हाँ, हार्ट अटैक के लक्षण धीरे-धीरे सामने आते हैं, जैसे सीने में दर्द, सांस फूलना और थकान। जबकि कार्डियक अरेस्ट अचानक होता है, जिसमें मरीज बेहोश होकर गिर सकता है और सांस लेना बंद हो जाता है।
कोरोना के बाद क्यों बढ़े मामले?
विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना वायरस का प्रभाव केवल फेफड़ों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उसने सीधे तौर पर हृदय और ब्लड वेसल्स को भी प्रभावित किया। संक्रमण के बाद शरीर में सूजन (inflammation) और खून के थक्के (blood clots) बनने की संभावना बढ़ गई, जिससे दिल पर अतिरिक्त दबाव पड़ा। इसके अलावा पोस्ट-कोविड स्ट्रेस, लंबे समय तक घर में रहकर बनी निष्क्रिय जीवनशैली, बढ़ता मोटापा और डायबिटीज जैसी बीमारियों ने भी हार्ट डिजीज का खतरा कई गुना बढ़ा दिया।
स्ट्रेस और मोटापे का असर
स्ट्रेस हार्ट हेल्थ के लिए बेहद खतरनाक है। तनाव के कारण ब्लड प्रेशर और हार्मोनल बदलाव दिल की धड़कनों को प्रभावित करते हैं। वहीं मोटापा कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर को बढ़ाता है, जिससे हार्ट अटैक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
बच्चों और युवाओं में बढ़ता खतरा
आजकल बच्चे भी जंक फूड, स्क्रीन टाइम और फिजिकल एक्टिविटी की कमी के कारण दिल की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। यही वजह है कि युवाओं और यहां तक कि स्कूल जाने वाले बच्चों में भी हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट के केस बढ़ रहे हैं।
हार्ट अटैक आने पर क्या करें?
- मरीज को तुरंत बैठा दें और ढीले कपड़े पहनाएं। स
- तुरंत इमरजेंसी मेडिकल हेल्प कॉल करें। स
- अगर उपलब्ध हो तो एस्पिरिन चबाने को दें।
- CPR (कार्डियो पल्मोनरी रिससिटेशन) दिल की धड़कन चालू रखने में मदद करता है।
दिल की सेहत कैसे जांचें?
बिना अस्पताल गए भी अगर आप बार-बार थकान, सीने में दर्द, तेज धड़कन या सांस फूलने जैसे लक्षण महसूस करते हैं तो यह हार्ट हेल्थ की चेतावनी हो सकती है। नियमित ECG और ब्लड टेस्ट कराना बेहद जरूरी है।
डाइट और एक्सरसाइज
दिल के लिए हेल्दी डाइट में फल, सब्जियां, साबुत अनाज, ओट्स, बादाम, अखरोट और कम फैट वाले डेयरी प्रोडक्ट शामिल होने चाहिए। रोजाना 30 मिनट तेज चाल से चलना, योग और कार्डियो एक्सरसाइज दिल को मजबूत बनाते हैं।
किस उम्र से कराएं चेकअप?
विशेषज्ञों का मानना है कि 30 साल की उम्र के बाद हर व्यक्ति को नियमित हार्ट चेकअप और ECG कराना शुरू कर देना चाहिए। खासकर अगर परिवार में हार्ट डिजीज का इतिहास है तो यह और भी जरूरी है।
हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट जानलेवा हैं लेकिन शुरुआती लक्षणों की पहचान और सही समय पर इलाज से इनसे बचाव संभव है। हेल्दी लाइफस्टाइल, संतुलित आहार, नियमित एक्सरसाइज और समय-समय पर चेकअप ही आपके दिल की सबसे बड़ी सुरक्षा है।
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