Munawwar Rana: मशहूर शायर मुनव्वर राना का रविवार को निधन हो गया है। देर रात दिल का दौरा पड़ने से राना की मौत हो गई। राना पिछले कई दिनों से लखनऊ के पीजीआई में भर्ती थे। मौत की खबर से रायबरेली में शोक की लहर है।
शायर के परिवार में उनकी पत्नी, चार बेटियां और एक बेटा है। राना के बेटे तबरेज ने बताया कि बीमारी के कारण वह 14 से 15 दिनों तक अस्पताल में भर्ती थे।
#WATCH | Lucknow, Uttar Pradesh: Mortal remains of poet Munawwar Rana brought to his residence, earlier visuals pic.twitter.com/LZFRTE4BLV
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) January 15, 2024
उन्हें पहले लखनऊ के मेदांता और फिर एसजीपीजीआई में भर्ती कराया गया, जहां उन्होंने रविवार रात अंतिम सांस ली।
मुन्नवर राणा के ‘मां’ के लिए लिखे कुछ बेहतरीन शेर
–ज़रा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाये,
दिये से मेरी मां मेरे लिए काजल बनाती है
–छू नहीें सकती मौत भी आसानी से इसको
यह बच्चा अभी मां की दुआ ओढ़े हुए है
–यूं तो अब उसको सुझाई नहीं देता
लेकिन मां अभी तक मेरे चेहरे को पढ़ा करती है
–वह कबूतर क्या उड़ा छप्पर अकेला हो गया
मां के आंखें मुंदते ही घर अकेला हो गया
–चलती फिरती हुई आंखें से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है
–सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते
–मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू
मुद्दतों मां ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
–लबों पे उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक मां है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
–अब भी चलती है जब आंधी कभी ग़म की ‘राना’
मां की ममता मुझे बांहों में छुपा लेती है
–गले मिलने को आपस में दुआएँ रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे मां रोज़ आती हैं
–ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया
मां ने आंखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
–इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है
–मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊं
मां से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊं
–लिपट को रोती नहीं है कभी शहीदों से
ये हौंसला भी हमारे वतन की मांओं में है
–ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी मां सजदे में रहती है
–यारों को मसर्रत मेरी दौलत पे है लेकिन
इक मां है जो बस मेरी ख़ुशी देख के ख़ुश है
–तेरे दामन में सितारे होंगे तो होंगे ऐ फलक़
मुझको अपनी मां की मैली ओढ़नी अच्छी लगी
–जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
मां दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है
–घेर लेने को जब भी बलाएँ आ गईं
ढाल बनकर मां की दुआएँ आ गईं
–‘मुनव्वर’ मां के आगे यूं कभी खुलकर नहीं रोना
जहां बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
–मुझे तो सच्ची यही एक बात लगती है
कि मां के साए में रहिए तो रात लगती है
सुर्खियों में आए मुनव्वर
मुनव्वर राना कई मौकों पर चर्चा और सुर्खियों का हिस्सा बने। साल 2015 में यूपी स्थित नोएडा के दादरी में अखलाक की मॉब लिंचिंग में हत्या के बाद उन्होंने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया था।
वहीं साल 2014 मई में तत्कालीन सपा सरकार ने राना को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी का अध्यक्ष नियुक्त किया था। हालांकि उन्होंने अकादमी में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया था।
कई पुरस्कारों से किया गया था सम्मानित
उन्हें कई सम्मानों और पुरस्कारों से नवाजा गया था, जिनमें अमीर खुसरो पुरस्कार, मीर तकी मीर पुरस्कार, गालिब पुरस्कार, डॉ. जाकिर हुसैन पुरस्कार और सरस्वती समाज पुरस्कार सहित अन्य पुरस्कार शामिल हैं।
दुनिया भर में हैं उनके मुरीद
हिंदुस्तान के सबसे मशहूर शायरों में शुमार किए जाने वाले मुनव्वर राना की नज्म ‘‘मां” का उर्दू साहित्य जगत में एक अलग स्थान है। उर्दू शायरी की मशहूर शख्सियत रहे राणा की शायरी को पसंद करने वाले लोग दुनिया भर में हैं।
मंचों पर मुनव्वर राणा की उपस्थिति बेहद खास होती थी। मंचीय आयोजनों में मां पर उनकी उनकी शायरी के बिना कोई भी कवि सम्मेलन और मुशायरा मुकम्मल नहीं होता था।
वहीं उनके रचनाकर्म में बेटियों और मुहाजिर की पीड़ा जैसे विषयों ने लोगों को बेहद प्रभावित किया।
आज सुपुर्द-ए-खाक किए जाएंगे राना
राना को आज उनकी वसीयत के मुताबिक लखनऊ में सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा। सोमैया ने बताया कि उनके परिवार में उनकी मां, चार बहनें और एक भाई हैं।
हिंदुस्तान के सबसे मशहूर शायरों में शुमार किए जाने वाले मुनव्वर राना की नज्म ‘मां’ का उर्दू साहित्य जगत में एक अलग स्थान है।
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