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Pitru Paksha 2023: इस दिन से शुरू हो रहे हैं पितृपक्ष, यहां जानें पितरों को तर्पण करने का सही तरीका

29 सितंबर पितृ पक्ष यानि श्राद्ध पक्ष की शुरूआत हो रही है। जिसकी समाप्ति 14 अक्टूबर को पितृमोक्ष अमावस्या पर होगी।

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Preeti Dwivedi
Pitru Paksha 2023: इस दिन से शुरू हो रहे हैं पितृपक्ष, यहां जानें पितरों को तर्पण करने का सही तरीका

Pitru Paksha 2023: 29 सितंबर पितृ पक्ष यानि श्राद्ध पक्ष की शुरूआत हो रही है। जिसकी समाप्ति 14 अक्टूबर को पितृमोक्ष अमावस्या (Pitru Moksha Amavasya 2023) पर होगी। आपको बता दें इस दिन से पितरों के लिए दान और पुण्य कार्य शुरू हो जाएंगे।

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लोग पितृ देव की शांति के लिए तर्पण करेंगे। पर क्या आप जानते हैं इस दिन तर्पण करने के लिए कुशा का ही उपयोग क्यों किया जाता है। यदि नहीं तो चलिए जानते हैं पंडित राम गोविंद शास्त्री के अनुसार ऐसा करने के पीछे तर्क क्या है। साथ ही जानेंगे पितरों को तर्पण करने का स​ही तरीका क्या है।

भगवान विष्णु का स्वरूप हैं कुशा और तिल

ज्योतिषाचार्य पंडित रामगोविंद शास्त्री के अनुसार यदि कुशा को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जात है। इसी तरह काले तिल में भी विष्णु जी का वास होता है। इसलिए इस दिन कुशा से तर्पण करने पर भगवान विष्णु की उपासना कर पितरों को मोक्ष का मार्ग दिलाया जा सकता है। अगर आप भी ऐसा ही करते हैं तो पितर देव आप पर प्रसन्न होकर जल्दी कृपा बरसाते हैं।

इस दिन क्या करें क्या नहीं

पंडित सनत कुमार खम्परिया कहते हैं कि पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2023) में खरीदारी न करने की धारणा लोगों द्वारा स्वयं बनाई गई है। आज तक किसी शास्त्र में ऐसा वर्णित नहीं है कि इस समय कोई शुभ कार्य नहीं किया जाना चाहिए। केवल विवाह संबंधी कार्यों को छोड़कर अन्य सभी तरह के शुभ कार्य इस समय किए जा सकते हैं।

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पितरों को जल देते समय क्या बोलना चाहिए?

जल देते समय ध्यान करें और वसु रूप में मेरे पिता जल ग्रहण करके तृप्त हों। इसके बाद जल जल दें। साथ ही अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें। गोत्रे अस्मत्पितामह (पितामह का नाम) वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।
इस मंत्र से पितामह को भी 3 बार जल दें।

पितरों को अंगूठे से ही क्यों देते हैं

श्राद्ध करते समय पितरों का तर्पण भी किया जाता है। इसमें आपने देखा होगा कि अंगूठे में कुशा लगाकर जलांजलि दी जाती है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार हथेली के अंगूठे के हिस्से वाले भाग से ही तर्पण किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अंगूठे से पितरों को जल देने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। क्योंकि इस हिस्से को पितृ तीर्थ कहते हैं।

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