Parivartini Vaman Parshva Ekadashi Dol Gyaras 2025: वैसे तो एकादशी हर माह दो बार आती है। लेकिन भाद्र पद की एकादशी बेहद खास होती है। इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं।
इस वर्ष एकादशी यानी ग्यारस का व्रत 3 सितंबर बुधवार को है। हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि कब से शुरू होगी, इस दिन मुहूर्त क्या है, इसका क्या महत्व है, जानते हैं ज्योतिषाचार्य पंडित रामगोविंद शास्त्री से।
परिवर्तिनी एकादशी इसलिए कहलाती है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु अपनी योग-निद्रा में करवट लेते हैं, अर्थात अपनी शयन मुद्रा बदलते हैं। इस ‘परिवर्तन’ के कारण ही इस एकादशी को ‘परिवर्तिनी एकादशी’ कहा जाता है। यह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है, और इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करना शुभ माना जाता है।
परिवर्तिनी एकादशी नाम क्यों पड़ा
हिन्दू धर्म और मान्याताओं के अनुसार चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु योग निद्रा में क्षीर सागर में शयन करते हैं लेकिन इसी एकादशी पर वे अपनी शयन मुद्रा में बाईं से दाईं ओर करवट बदलते हैं। इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। चूंकि परिवर्तन का अर्थ बदलना होता है।
धर्म के अनुसार देव विष्णु की शयन मुद्रा में बदलाव को ‘परिवर्तन’ के संकेत के रूप में देखा जाता है। यही कारण है कि इसे इस एकादशी को ‘परिवर्तिनी एकादशी’ कहा जाता है।
परिवर्तिनी एकादशी के और क्या नाम हैं
हिन्दू पंचांग और कैलेंडर के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi in Hindi News) को जलझूलनी एकादशी (Jaljhulini Ekadashi 2025) भी कहते हैं। वो इसलिए क्योंकि इस दिन भगवान जलबिहार के निकलते हैं। इसके अलावा इसे पार्श्व एकादशी, पद्म एकादशी और वामन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
भगवान विष्णु लेते हैं करवट
ऐसा भी कहा जाता है कि जब भगवान देवशयनी एकादशी पर शयनलोक में गए भगवान जलझूलनी एकादशी को करवट लेते हैं। इसके बाद फिर वे दीपावली के बाद देवउठनी एकादशी पर निंद्रालोक से बाहर आते हैं।
जलझूलनी एकादशी का महत्व
हिन्दू पंचांग के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा की जाती है।
ऐसा माना जाता कि इस दिन देवशयनी एकादशी से अब तक चार महीने भगवान विष्णु जो चार माह के सो चुके हैं, वो करवट लेते हैं।
परिवर्तिनी एकादशी के दिन किए जाने वाले उपाय
ऐसी मान्यता है कि परिवर्तनी एकादशी या डोल ग्यारस के दिन विष्णु, शंकर और पार्वती के साथ गणेश जी की अराधना करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं।
इस पूजा से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी और कई जगह इसे कर्मा एकादशी भी कहते हैं।
कई जगह इसे बहनें अपने भाइयों के लिए भी इस व्रत को रखती हैं।
कब है डोल ग्यारस
हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि 3 सितंबर की सुबह 3:53 पर आएगी। यानी उदया तिथि में ही सूर्योदय होगा। इसलिए परिवर्तिनी एकादशी 3 सितंबर को ही मानी जाएगी। इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं।
डोल ग्यारस मुहूर्त
एकादशी प्रारंभ
3 सितंबर बुधवार की सुबह 3:53 पर प्रारंभ
एकादशी समाप्ति
4 सितंबर सुबह गुरुवार की सुबह 4:21 तक
नोट: इस लेख में दी गई जानकारियां सामान्य सूचनाओं पर आधारित है। बंसल न्यूज इसकी पुष्टि नहीं करता। अमल में लाने से पहले विशेषज्ञ की सलाह ले लें।