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पांढुर्णा के गोटमार मेले में पत्थरों की बौछार: 220 से ज्यादा हुए घायल, 4 की हालत नाजुक, इलाज के लिए अस्पताल रेफर

Pandhurna Gotmar Mela: पांढुर्णा के गोटमार मेले में पत्थरों की बौछार: 32 से ज्याद हुए घायल, 4 की हालत नाजुक, इलाज के लिए अस्पताल रेफर

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Preetam Manjhi
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Pandhurna Gotmar Mela:  मध्य प्रदेश के पांढुर्णा की जाम नदी पर गोटमार मेला शुरू हो गया है। सुबह 10 बजे से शुरू हुए इस मेले में अभी तक 220 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं।

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वहीं 4 की हालत बेहद नाजुक बताई जा रही है। सभी को इलाज के लिए सिविल हॉस्पिटल रेफर किया गया है। लोगों की सुरक्षा के लिए 4 स्वाथ्य शिवर भी लगाए गए हैं। मौके पर 6 जिलों का पुलिस बल तैनात किया गया है।

आपको बता दें कि जाम नदी की पुलिया पर पांढुर्णा और सावनगांव के लोगों के बीच पत्थरों की जमकर बौछार हो रही है। मेले में ये खेल शाम तक चलेगा।

https://twitter.com/BansalNewsMPCG/status/1830905574701109395

(गोटमार मेले से जुड़ी ये चर्चित कहानियां...)

युद्ध में पत्थर के इस्तेमाल से आज भी ये परंपरा

गोटमार मेले को लेकर पहली कहानी पिंडारी यानी कि आदिवासी समाज से जुड़ी हुई है। ऐसा माना जाता है कि कई हजारों साल पहले जाम नदी के किनारे पिंडारी समाज का एक प्राचीन किला था।

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इस किले में आदिवासी समाज और शक्तिशाली सेना रहती थी। इसका सेनापति दलपत शाह था। एक बार महाराष्ट्र के भोसले राजा की सेना ने पिंडारी किले पर हमला बोल दिया, जिसमें भोसले राजा परास्त हो गया। तब से ही यहां पत्थर मारने की परंपरा चली आ रही है।

ऐसा कहा जाता है कि युद्ध के बाद जनता ने सेनापति का नाम बदलकार दलपत शाह की जगह राजा जाटबा नरेश कर दिया था। आज भी यहां राजा जाटबा कि समाधि मौजूद है।

यही वजह है कि आज भी ये पांढुर्णा नगर पालिका में जाटवा वार्ड के नाम से जाना जाता है। इस वार्ड में करीब 600 से ज्यादा लोगों की आबादी है।

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प्रेमी जोड़े की याद में आयोजित किया जाता है गोटमार मेला

बुजुर्गों की मानें तो पांढुर्णा का युवक और सावरागांव की युवती एक-दूसरे से प्रेम करते थे। दोनों शादी करना चाह रहे थे, लेकिन दोनों गांव के लोग ने इस प्रेम कहानी से काफी नाराज थे, जिसकी वजह से पोला त्योहार के दूसरे दिन भाद्रपक्ष अमावस्या की सुबह भाग गए थे।

भागते समय दोनों प्रेमी जाम नदी में फंस गए थे। दोनों ने यहां से निकलने की काफी कोशिश की थी, लेकिन इसी बीच दोनों गांव के लोग इकट्ठा हो गए और पत्थरों से मारने लगे। इससे प्रेमी जोड़े की मौत हो गई थी। तभी से उनकी याद में ये गोटमार मेले को आयोजित किया जाता है।

ऐसे होती है मेले की शुरुआत

गोटमार मेले की शुरुआत से पहले चंडी माता की पूजा की जाती है। पहले चंडी माता का नाम लेकर गोटमार खिलाड़ी मंदिर में जाकर पुजा-अर्चना करते हैं। इसके बाद जाम नदी के बीचों-बीच पेड़ को लगाया जाता है। फिर नदी के दोनों तरफ से पत्थर बरसाते हैं।

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ये परिवार 4 पीढ़ी से कर रहा झंडा स्थापित

इस मेले में पलाश रूपी झंडे का काफी महत्व माना जाता है। इस झंडे को जाम नदी के बीचों-बीच स्थापित किया जाता है, जिसे जंगल से लाने की परंपरा 4 पीढ़ियों से सावरगांव के सुरेश कावले का परिवार निभा रहा है।

आपको बता दें कि सालभर पहले जंगल के पलाश रूपी झंडे को इस मेले के लिए चुना गया था। गोटमार मेले के दिन इसे सुबह नदी के बीचों-बीच स्थापित किया जाता है।

मेले में अब तक इतने लोगों ने गंवाई जान

पांढुर्णा के इस गोटमार मेले में पत्थरों की बौछार में सन 1995 से 2023 तक 13 लोग जान गंवा चुके हैं। इसका रिकॉर्ड आज भी है।

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