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पंचनद के तट पर रेत कला का प्रदर्शन: सैंड आर्टिस्ट हिमांशु शेखर परिदा ने पांच नदियों के संगम पर पहली बार जादू बिखेरा

Panchnad Sand art MP: पंचनद के तट पर पहली बार रेत कला का प्रदर्शन, सैंड आर्टिस्ट हिमांशु शेखर परिदा ने पांच नदियों के संगम पर पहली बार जादू बिखेरा

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BP Shrivastava
Panchnad Sand art MP

Panchnad Sand art MP: पंचनद (Panchnad ) के ऐतिहासिक तट पर, जहां चंबल, यमुना, सिंध, पहुज और क्वारी नदियों का संगम होता है। यहां एक अनूठा इतिहास रचा गया। चंबल संग्रहालय के बैनर तले आयोजित इस कार्यक्रम में प्रसिद्ध सैंड आर्टिस्ट हिमांशु शेखर परिदा (Sand Artist Himanshu Shekhar Parida) ने अपनी रेत कला का जादू बिखेरा। यह पहला अवसर था जब पंचनद (Panchnad ) के तट पर रेत कला का अद्भुत प्रदर्शन किया गया।

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https://twitter.com/BansalNewsMPCG/status/1877429384899899661

आर्ट में इनका किया समावेश

हिमांशु शेखर परिदा, भारतीय सैंड आर्ट के क्षेत्र में जाना माना चेहरा हैं। उन्होंने अपने अद्वितीय कौशल और रचनात्मकता से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके द्वारा बनाई गई कलाकृतियां जैसे कि "Welcome to Chambal," "पान सिंह तोमर (चंबल मैराथन)," डॉल्फिन, इंडियन स्कीमर, मिट्टी के पहाड़, बीहड़, फिल्म क्लैपबोर्ड, मगरमच्छ और चंबल म्यूजियम ने न केवल पर्यटकों को चकित किया, बल्कि क्षेत्र के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को भी उजागर किया।

आर्टिस्ट ने कहा- चंबल में पर्यटन को बढ़ावा मिले

पंचनद में रेत पर बनाई गई कलाकृति में आर्टिस्ट परिदा ने मध्य प्रदेश डकैती और अपहरण प्रभावित क्षेत्र अधिनियम, 1981 को समाप्त करने की वकालत की। उनका कहना था कि चंबल अब डकैतों के खतरों से मुक्त है, और ऐसे कानूनों को निरस्त कर क्षेत्र में शांति और पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिए।

अतिथियों ने चंबल घाटी में रेत कला की संभावनाओं पर किया मंथन

इस आयोजन में विशेष अतिथि के रूप में मूर्ति कला प्रवक्ता आनंद कुमार, डॉ. आर.के. मिश्रा, सौरभ अवस्थी, दीपक सिंह परिहार, दीप्ति अवस्थी, प्रत्यूष रंजन द्विवेदी, महेंद्र सिंह निषाद, आदिल खान, देव सिंह निषाद, डॉ. कमल कुशवाहा, सूरज सिंह, मोनू ठाकुर, अजय कुमार उपस्थित रहे। उन्होंने ना केवल रेत कला के इस अद्भुत प्रदर्शन की सराहना की, बल्कि चंबल घाटी के इतिहास और इसकी संभावनाओं पर भी विचार-विमर्श किया।

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चंबल घाटी: डकैतों से शांति तक का सफर

चंबल घाटी का नाम आते ही डकैतों और उनके आतंक की छवि उभरती है। बीते वर्षों में यहां का इतिहास रक्तरंजित और डरावना रहा है। 13-14 मार्च 2007 की रात मुरैना के बीहड़ों में चौरेला, इटावा निवासी जगजीवन परिहार गैंग के खात्मे के बाद चंबल क्षेत्र में शांति स्थापित हुई। लेकिन 17 साल बाद भी मध्य प्रदेश डकैती और अपहरण प्रभावित क्षेत्र अधिनियम, 1981 लागू है।

डॉ. राना ने कहा- कोई दस्यु गिरोह लिस्टेड नहीं, फिर भी विशेष कानून लागू

चंबल संग्रहालय के महानिदेशक डॉ. शाह आलम राना ने कहा, "मार्च 2023 में मध्य प्रदेश विधानसभा के रिकॉर्ड के अनुसार, राज्य में अब कोई भी दस्यु गिरोह सूचीबद्ध नहीं है। फिर भी, यह विशेष कानून लागू है, जो कि पुलिसिया मनमानी का साधन बन चुका है।" उन्होंने बताया कि इस कानून के तहत डकैतों को शरण देने, भोजन और हथियारों की आपूर्ति करने वालों पर मामले दर्ज होते हैं, जिसमें जमानत मिलना लगभग असंभव है।

'चंबल में पर्यटन की असीम संभावनाएं'

डॉ. राना ने यह भी कहा कि चंबल घाटी अब डाकुओं से पूरी तरह मुक्त हो चुकी है, और यहां पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं। बीहड़, नदियों का संगम, दुर्लभ वन्यजीव और ऐतिहासिक स्थल; इसे एक आदर्श पर्यटन स्थल बनाते हैं। लेकिन, जब तक डकैती अधिनियम जैसे कानून लागू रहेंगे, बाहरी लोग यहां निवेश करने या इसे पर्यटन स्थल के रूप में बढ़ावा देने से कतराते रहेंगे।

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क्या है डकैती अधिनियम

साल 1981 में लागू हुआ यह अधिनियम चंबल के चार जिलों, ग्वालियर, शिवपुरी, पन्ना, रीवा और सतना में प्रभावी है। इसका उद्देश्य डकैतों से जुड़े अपराधों को रोकना और पुलिस को विशेष अधिकार देना था। इस कानून के तहत पुलिस को डकैतों की संपत्ति जब्त करने, मुखबिरों को सुरक्षा देने और विशेष अदालतें स्थापित करने का अधिकार मिला है।

हालांकि, वर्तमान स्थिति में इस कानून की प्रासंगिकता पर सवाल उठ रहे हैं। स्थानीय निवासी और विशेषज्ञ मानते हैं कि जब देश में भारतीय दंड संहिता (IPC) जैसी व्यापक और प्रभावी प्रणाली है, तो अलग से इस तरह के कानून की आवश्यकता नहीं है।

रेत कला और सामाजिक संदेश का संगम

इस आयोजन का मुख्य आकर्षण ना केवल हिमांशु शेखर परिदा की रेत कला थी, बल्कि उनके द्वारा दिए गए सामाजिक संदेश भी थे। उन्होंने अपनी कलाकृतियों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण, चंबल की जैव विविधता, और क्षेत्र के पुनरुत्थान का संदेश दिया।

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पंचनद का यह आयोजन ना केवल कला और संस्कृति का अद्भुत प्रदर्शन था, बल्कि चंबल घाटी के पुनरुत्थान की दिशा में एक कदम भी था। यह संदेश देता है कि चंबल, जो कभी डकैतों और खून-खराबे के लिए कुख्यात था, अब कला, संस्कृति और पर्यटन का केंद्र बन सकता है।

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चंबल घाटी के लोग और यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को देखने आने वाले पर्यटक, इस बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि यह क्षेत्र अपने पुराने दागों को मिटाकर एक नई पहचान बनाए। इस दिशा में, हिमांशु शेखर परिदा जैसे कलाकारों और चंबल संग्रहालय जैसे संस्थानों का योगदान सराहनीय है।

पर्यटन के जानकारों का मानना है कि यह आयोजन चंबल घाटी के पुनरुत्थान की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा और इससे पंचनद तट पर कला, संस्कृति और पर्यटन की नई संभावनाओं के द्वार खुलेंगे।

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Panchnad Sand art MP banks of Panchnad Sand art Sand Artist Himanshu Shekhar Parida
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