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Pakistan Saudi Military Agreement
Pakistan Saudi Military Agreement: शिया-सुन्नी विभाजन इस्लामिक इतिहास की सबसे पुरानी और गहरी दरारों में से एक है। यह दरार केवल धार्मिक मान्यताओं तक सीमित नहीं रही, बल्कि समय के साथ यह अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और भू-राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करने वाली शक्ति बन गई है।
हाल ही पाकिस्तान और सऊदी अरब ने सामूहिक सुरक्षा के नाम पर एक सैन्य गठबंधन किया है। सामूहिक सुरक्षा का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और स्थिरता को मजबूत करना होता है। इसमें गुटबंदी नहीं होती, लेकिन पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय मान्यताओं को ध्वस्त करके इस्लामिक दुनिया के दो फाड़ कर दिए हैं। इससे दुनिया में शिया और सुन्नी विवाद हिंसक होने का खतरा बढ़ गया है !
समझौते में कतर, यूएई के भी शामिल होने की उम्मीद
दरअसल, पाकिस्तान और सऊदी अरब ने जो ऐतिहासिक रक्षा समझौता किया है, उसमें सबसे अहम बात यह है कि, अगर दोनों में से किसी भी देश पर हमला होता है तो, उसे दूसरा देश भी ऐसे हमले को खुद पर हमला मानेगा। इस समझौते में कतर और यूएई के भी शामिल होने की उम्मीद है। आने वाले समय में तुर्की और मिस्र भी इस गठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं।
इस्लामिक एकता का झंडाबरदार बताता रहा पाकिस्तान
कहने को यह देश इजराइल से अपनी सुरक्षा करने के लिए लामबंद हो रहे हैं, लेकिन इसमें सुन्नी बाहुल्य देशों के शामिल होने से पाकिस्तान की इस्लामिक एकता की कलई भी खुल गई है। पाकिस्तान जो खुद को हमेशा इस्लामिक एकता का झंडाबरदार बताता रहा है, उसकी यह नीति शिया-बहुल देशों से दूरी और अविश्वास को और गहरा करने वाली है।
ईरान, अजरबैजान से रहे पाकिस्तान के रणनीतिक संबंध
ईरान, इराक, अजरबैजान, बहरीन और यमन शिया बहुल देश है। पाकिस्तान के ईरान और अजरबैजान से रणनीतिक संबंध रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान ने इन देशों से ऐसी कोई सुरक्षा संधि नहीं की है। इसका प्रमुख कारण ईरान की अमेरिका से प्रतिद्वंदिता है।
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पाकिस्तान के अजरबैजान से रणनीतिक संबंध रहे हैं।[/caption]
रक्षा समझौता कर विभाजन को और ज्यादा गहरा किया
ईरान और सऊदी अरब के बीच इस्लामी दुनिया के नेतृत्व के लिए प्रतिद्वंदिता का इतिहास बहुत पुराना है। पाकिस्तान ने सुन्नी धुरी से रक्षा समझौता करके विभाजन को और ज्यादा गहरा कर दिया है। भू-राजनीतिक दृष्टि से यह ध्रुवीकरण अत्यंत गंभीर परिणाम देता है।
वैश्विक शक्ति संतुलन का हिस्सा बन चुका धार्मिक विभाजन
मध्य पूर्व में चल रहे अनेक संघर्ष जैसे सीरिया का गृहयुद्ध, यमन का संघर्ष, इराक की अस्थिरता, इस विभाजन की ही उपज हैं। ईरान और सऊदी अरब अपने-अपने गुटों को समर्थन देकर नेतृत्व की प्रतिस्पर्धा में लगे हुए हैं। अमेरिका और पश्चिमी शक्तियां अक्सर सुन्नी गुट के साथ खड़ी दिखाई देती हैं, जबकि रूस और चीन ईरान को संतुलनकारी शक्ति के रूप में देखते हैं। इस प्रकार यह धार्मिक विभाजन वैश्विक शक्ति संतुलन का हिस्सा बन चुका है।
वैश्विक शांति-स्थिरता पर पड़ सकता है नकारात्मक प्रभाव
पाकिस्तान और सऊदी अरब का रक्षा समझौता शिया-सुन्नी विवाद को हिंसक बना सकता है ! यह इस्लामी दुनिया के भीतर हिंसा और गृहयुद्ध को बढ़ावा देगा ! जिसका असर पाकिस्तान के अंदर भी देखने को मिल सकता है। शिया और सुन्नी के नाम पर बने आतंकवादी संगठन इस सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को वैचारिक खाद-पानी की तरह इस्तेमाल करते हैं और अब इससे दुनिया भर में द्वंद बढ़ने की आशंका भी बढ़ेगी। इसका प्रभाव वैश्विक शांति और स्थिरता पर नकारात्मक रूप से पड़ सकता है।
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पाकिस्तान और सऊदी अरब का रक्षा समझौता शिया-सुन्नी विवाद को हिंसक बना सकता है ![/caption]
सुन्नी धुरी की ओर झुक जाएगा मध्य पूर्व का शक्ति संतुलन
ईरान की सबसे बड़ी चिंता यह होगी, कि पाकिस्तान, सऊदी अरब, कतर और यूएई जैसे देशों के बीच हो रहे रक्षा गठबंधन से उसकी क्षेत्रीय शक्ति और प्रभाव सीमित हो जाएगी। यह गठबंधन सामूहिक सुरक्षा की अवधारणा का दावा करता है, लेकिन वास्तव में यह सुन्नी बहुल देशों का गुट है। यदि भविष्य में तुर्की और मिस्र भी, इसमें शामिल होते हैं, तो मध्य पूर्व का शक्ति संतुलन पूरी तरह सुन्नी धुरी की ओर झुक जाएगा।
इन ताकतों को अस्थिर कर सकता है सुन्नी देशों का गठबंधन
ईरान स्वयं को शिया जगत का नेतृत्वकर्ता मानता है। उसकी इराकी, मिलिशिया, लेबनान का हिज्बुल्लाह और यमन के हूथी विद्रोही इस क्षेत्रीय प्रभाव का हिस्सा हैं। सऊदी अरब के निशाने पर यह संगठन पहले ही रहे है, ऐसे में सुन्नी देशों का गठबंधन इन ताकतों को अस्थिर करने का प्रयास कर सकता है। यह गठबंधन आर्थिक और रणनीतिक स्तर पर भी ईरान के लिए चुनौती है। खाड़ी क्षेत्र के तेल गैस संसाधनों और समुद्री व्यापार मार्गों पर ईरान का प्रभाव सीमित होगा और इसे ईरान कभी स्वीकार नहीं करेगा।
पाक-सऊदी की तर्ज पर ईरान-रूस में समझौता होगा या नहीं ?
यह भी दिलचस्प है कि इजराइल से सबसे बड़ा खतरा ईरान को रहा है। ईरान ने इजराइल को बखूबी जवाब भी दिया है, लेकिन ईरान के शिया बाहुल्य होने से पाकिस्तान और सऊदी अरब ने उसे आसानी से दरकिनार कर दिया। सुन्नी देशों को लामबंद कर अमेरिका दुनिया में निरंतर मजबूत हो रहा है। अब देखना यह है की पाकिस्तान और सऊदी की तर्ज पर ईरान और रूस की बीच कोई समझौता होगा या नहीं ?
रूस-ईरान ने जनवरी में किया था रणनीतिक साझेदारी संधि
इस वर्ष जनवरी में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान ने मास्को में बीस वर्षीय व्यापक रणनीतिक साझेदारी संधि पर हस्ताक्षर किए थे। इस रणनीतिक साझेदारी को पश्चिमी प्रतिबंधों और सैन्य खतरों के खिलाफ ईरान और रूस के बीच एक मजबूत गठबंधन के रूप में देखा गया था।
पाक-सऊदी गठबंधन से ईरान की असुरक्षा स्वाभाविक
सुन्नी देशों के बीच व्यापक सुरक्षा संबंध बनने से और उसे अमेरिका का समर्थन मिलने से पुतिन भी चिंतित होंगे। इस्लामिक जगत में स्थिरता और शांति तभी संभव है, जब शिया—सुन्नी शक्ति संतुलन कायम रहे। यदि कोई गुट विशेष दूसरे पर हावी होने की कोशिश करेगा तो यह विभाजन और गहरा होगा और उसका परिणाम गृहयुद्ध, सांप्रदायिक हिंसा तथा अंतर्राष्ट्रीय तनाव के रूप में सामने आएगा। पाकिस्तान और सऊदी अरब गठबंधन से ईरान की असुरक्षा स्वाभाविक है। जाहिर है, रूस और ईरान के साथ इस प्रकार का रक्षा समझौता करके शिया दुनिया का रक्षा कवच बन सकता है।
(लेखक विदेशी मामलों के जानकार हैं)
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