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Pakistan Vs Sindhudesh: पाकिस्तान के जन्म के कुछ वर्षों बाद ही सिंधी छात्रों ने पंजाबी कवि मोहम्मद इकबाल की तस्वीरें जला दीं थी। इकबाल वह व्यक्ति थे जिन्हें भारतीय मुसलमानों के लिए एक स्वतंत्र राज्य की कल्पना करने का श्रेय दिया जाता है और इसलिए वे पाकिस्तानी राष्ट्रवाद के एक प्रमुख प्रतीक थे। वास्तव में सिंध प्रान्त को पाकिस्तानी पहचान कभी मंजूर ही नहीं हुई। एक प्रमुख सिंधी राष्ट्रवादी, अल्लाह बक्स सूमरो ने एक अलगाववादी सिंधी राष्ट्रवादी जीएम सैयद को आगाह करते हुए कहा था कि आपको पता चल जाएगा कि हमारी मुश्किलें पाकिस्तान बनने के बाद शुरू होंगी, जब आपको पंजाबी नौकरशाही और पाकिस्तानी सेना का सामना करना पड़ेगा।
जीएम सैयद ने किया था विद्रोह
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जीएम सैयद वही व्यक्ति थे जिन्होंने सिंध के पाकिस्तान में जाने का समर्थन करने के लिए वोट दिया था, जिनकी वजह से पाकिस्तान अस्तित्व में आया और सिंध पाकिस्तान का पहला प्रांत बना था। यह भी दिलचस्प है कि बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद 1972 में सैयद ने ही पाकिस्तानी सत्ता के खिलाफ विद्रोह किया और सिंधुदेश नामक एक अलग राष्ट्र की मांग की थी।
उन्होंने जय सिंध तहरीक की स्थापना करके और सिंधुदेश की अवधारणा प्रस्तुत करके सिंधी राष्ट्रवाद को एक नई दिशा दी। बाद में पाकिस्तानी सरकार ने आतंकवादी,राज्य-विरोधी और तोड़फोड़ गतिविधियों के लिए कई राष्ट्रवादी समूहों और संगठनों को गैरकानूनी घोषित कर दिया था। लेकिन सिंध के नेता पाकिस्तान की खिलाफत क्यों करने लगे, यह जानना भी बहुत दिलचस्प है।
पाकिस्तान की सेना में नहीं थे सिंधी
जब पाकिस्तान बना तब सिंध की प्रति व्यक्ति आय पंजाब की तुलना में 40 फीसदी अधिक थी। पाकिस्तान की सेना में उस दौरान सिंधियों का नामोनिशान नहीं था। आज भी पाकिस्तान की सेना में 60 फीसदी पंजाबी और बाकी पख्तून तथा पठान है। विभाजन के तुरंत बाद,कई सिंधियों को यह एहसास हुआ कि पाकिस्तान के निर्माण का मतलब उनके लिए आजादी नहीं, बल्कि एक अलग तरह का प्रभुत्व था। यह आशंका सच साबित हुई और विभाजन के तुरंत बाद, सिंध को अपनी विशिष्ट क्षेत्रीय पहचान खोनी पड़ी थी।
अंग्रेजों के शासन में सिंध में नहीं चलती थी ऊर्दू
अंग्रेजी शासन के दौरान सिंध में उर्दू का प्रयोग नहीं होता था। लेकिन पाकिस्तान बनते ही उर्दू को सिंध पर थोप दिया गया। विभाजन के बाद सिंध को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा जो समृद्ध हिंदुओं के पलायन, बड़ी संख्या में बेसहारा मोहाजिरों के आगमन और विनाशकारी बाढ़ के कारण हुआ। इस दौरान पंजाबियों के प्रभुत्व वाले पाकिस्तान के हुक्मरान विभिन्न जातीय समूहों की क्षेत्रीय पहचान को कमजोर करने के तरीके ढूंढ रहे थे और उन्होंने इस दिशा में आगे बढ़ते हुए चार प्रान्तों की एक-इकाई योजना लागू कर पंजाब को सब पर हावी कर दिया। इस योजना पर सिंधी प्रतिक्रिया जबरदस्त और स्पष्ट थी। समुदाय ने इसे छोटे प्रांतों पर पंजाबी प्रभुत्व स्थापित करने और उनकी क्षेत्रीय स्वायत्तता और जातीय पहचान को नकारने के प्रयास के रूप में देखा।
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मुख्यमंत्री पीरजादा अब्दुस सत्तार बर्खास्त
1953-54 में सिंध के मुख्यमंत्री पीरजादा अब्दुस सत्तार ने इस योजना का विरोध किया तो उन्हें बहुमत का समर्थन हासिल था, लेकिन इससे नाराज पंजाबी लॉबी ने निर्वाचित मुख्यमंत्री को बर्खास्त कर दिया। सिंध राष्ट्रवाद के उभार को रोकने के लिए उर्दू को राष्ट्रीय भाषा के रूप में बढ़ावा देने में तेजी लाई गई और नगर पालिका प्रशासन में सिंधी भाषा के प्रयोग को व्यवस्थित रूप से हतोत्साहित किया गया। 1958 में शिक्षा के माध्यम के रूप में सिंधी की जगह उर्दू ने ले ली। कोटरी बैराज के निर्माण के बाद 1950 के दशक में प्रांत में बसने वाले पंजाबियों की संख्या अचानक बढ़ गई जब नई सिंचित भूमि सेना के पेंशनभोगियों को आवंटित कर दी गई जिनमें से ज्यादातर पंजाबी मूल के थे।
सिंधियों के सबसे बड़े नेता जुल्फिकार अली भुट्टो
सिंधियों के सबसे बड़े नेता जुल्फिकार अली भुट्टो को माना जाता है। हालांकि उनके बारे में यह भी कहा जाता है की वे पंजाबियों के हाथों में खेलते थे। जुलाई 1977 में आम चुनाव के विवादित परिणामों के बाद हफ्तों तक चली अशांति के बाद, जनरल जिया उल-हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो की निर्वाचित सरकार को अपदस्थ कर दिया। जिया ने मार्शल लॉ लागू कर दिया, संविधान को निलंबित कर दिया और दो साल के भीतर ही एक संदिग्ध मुकदमे के बाद भुट्टो को फांसी पर लटका दिया। अधिकांश सिंधियों के लिए, जिया का सैन्य शासन एक कब्जा करने वाली सेना के रूप में माना जाता था, मुख्यतः इसलिए क्योंकि सेना में सिंधियों का प्रतिनिधित्व कम था। सिंधी राष्ट्रवाद का उभार रोकने के लिए जिया-उल-हक ने मोहाजिरों का खूब उपयोग किया तथा सिंध को हिंसा और रक्तपात में झोंक दिया था।
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सिंध पाकिस्तान का सबसे विकसित प्रांत, हाशिए पर निवासी
खनिज, मिट्टी, नदियों और प्राकृतिक साधनों की दृष्टि से सिंध पाकिस्तान का सबसे विकसित प्रांत है, जबकि इसके मूल निवासी बलूचों के बाद सबसे अधिक हाशिए पर हैं। एक सम्पन्न क्षेत्र की बर्बादी की आठ दशकों की सिंध प्रदेश की यात्रा बड़ी दर्दनाक रही है। यही कारण है की जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सिंध के भारत में शामिल होने की भविष्य की संभावना पर बात की तो शफी बुरफत के नेतृत्व वाले सिंधी राष्ट्रवादी समूह जेय सिंध मुत्तहिदा महाज (जेएसएमएम) ने इसका स्वागत किया।
( लेखक विदेशी मामलों के जानकार हैं )
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